घर छोड़ के मत जाओ कही घर न मिलेगा

     पने व अपने परिवार के लिये जीविकोपार्जन की तलाश में बाहर निकलना अथवा अप्रवासी बनना प्रकृति का बनाया एक ऐसा चक्र है जिससे पृथ्वी का शायद कोई भी प्राणी अछूता नहीं। रोज़ी रोटी की तलाश में सभी प्राणियों को अपने अपने घरों से निकलकर बाहर जाना ही होता है। चूँकि प्रकृति ने मानव को अतिरिक्त सोच बुद्धि व योग्यता से नवाज़ा है इसलिये वह अपने अप्रवासन का रास्ता अपनी आर्थिक हैसियत,अपनी भविष्य की मनोकमनायें,कमाई का स्तर सुविधाजनक राज्य,देश व ठिकाने आदि बहुत कुछ देखकर तय करता है। गत पांच दशकों से अमेरिका,कनाडा व ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भारत के अप्रवासियों के लिये आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। रोज़गार के अतिरिक्त भारतीय मुद्रा के मुक़ाबले डॉलर्स की कीमतों में भारी अंतर,सुरक्षित,साफ़ सुथरा,वातावरण,शुद्धता,ईमानदारी,भ्रष्टाचार मुक्त वातावरण,सामाजिक सुरक्षा,बच्चों की शिक्षा व बुज़ुर्गों की सुरक्षा जैसी अनेक बातें भारतीयों को इन देशों में आने के लिये आकर्षित करती हैं।

    अप्रवासन करने वालों में एक वर्ग जो उच्च शिक्षा प्राप्त वैज्ञानिक,शोधार्थी,इंजीनियर्स,डॉक्टर्स,स्पेस वैज्ञानिक आदि जैसे क्षेत्रों से जुड़ा होता है। ऐसे प्रतिभाशाली लोगों के लिये तो लगभग पूरी दुनिया के दरवाज़े हमेशा खुले रहते हैं। दूसरा वर्ग शिक्षा हासिल करने की ग़रज़ से या शिक्षा हासिल करने के बहाने इन देशों में जाता है और वहीँ का होकर रह जाता है। और तीसरा वर्ग पैसों के बल पर इन देशों में जाना चाहता है। और यही वर्ग आसानी से विदेश भेजने वाले एजेंटों के जाल में फंसकर कबूतरबाज़ी या डंकी रुट का शिकार हो जाता है। ऐसे कई लोग जहाँ संपन्न परिवारों के होते हैं वहीं अनेक ऐसे भी होते हैं जिन्होंने अपने घर का सोना,ज़मीन आदि बेचकर या गिरवी रखकर एजेंटों को मुंह मांगी रक़म दी होती है। यहां उस वर्ग का उल्लेख करना भी बेहद ज़रूरी है जो सत्ता में या तो शीर्ष पदों पर है या जिसके ऊँचे रसूख़ हैं या फिर उच्चाधिकारी वर्ग यहाँ तक कि वह वर्ग भी जोकि देश के युवाओं को "मेक इन इण्डिया " और रोज़गार मांगो मत बल्कि रोज़गार दो,यहाँ तक कि शिक्षित लोगों के पकोड़ा बेचने को भी रोज़गार मानता है ऐसे अनेक लोगों के बच्चे या तो विदेशों में उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं या फिर वहां बड़े व्यवसाय कर रहे हैं। कई 'राष्ट्रभक्त महामनवों ' की संतानें तो विदेशी नागरिकता तक लिये बैठी हैं।               

      बहरहाल, अतिवाद की ओर तेज़ी से बढ़ते विश्व में अमेरिका ने एक बार फिर अतिविवादित व्यक्ति डोनाल्ड ट्रंप को अपना राष्ट्रपति चुन लिया है। उनके आलोचक ट्रम्प को एक नस्लवादी, कट्टरपंथी तथा एक स्त्री-द्वेषी और एक विदूषक के रूप में देखते हैं। सच पूछिये तो ऐसे व्यक्ति का पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बनने का विचार ही शांतिप्रिय दुनिया के लिये चिंता पैदा करने तथा दुनिया की नींद हराम करने के लिए पर्याप्त है। ट्रंप जहाँ कई देशों को अपनी 'गिद्ध दृष्टि' से देख रहे हैं वहीं ट्रंप प्रशासन द्वारा ब्राज़ील, ग्वाटेमाला, पेरू और होंडुरास के लोगों को भी  'अवैध ' बताकर अमेरिकी सैन्य विमान से ही उनके देश वापस भेजा गया है। भारत भी उन्हीं दुर्भाग्यशाली देशों में एक है जिसके 'अवैध' बताये जा रहे 104 अमेरिकी प्रवासी अमेरिकी मालवाहक सैन्य विमान में भरकर बड़ी ही अपमानजनक स्थिति में वापस भारत लाये जा चुके हैं। ख़बर यह भी है कि इसी तरह के 487 भारतीयों की एक और खेप अमेरिका किसी भी समय भारत वापस भेज सकता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक़ इस समय अमेरिका में लगभग 7. 25 लाख लोग ऐसे रह रहे हैं जिनको 'अवैध प्रवासी' के रूप में चिन्हित किया जा चुका है। इस तरह के लगभग 1700 'अवैध प्रवासी' भारतीयों को अमेरिका में हिरासत में लेकर उन्हें डिटेंशन सेंटर में भी डाला जा चुका है।

     वीज़ा,इमिग्रेशन,नागरिकता आदि देने या इनसे सम्बंधित क़ानून बनाने का हर देश का अपना अधिकार है। परन्तु ट्रंप की वापसी के बाद जिस अपमानजनक तरीक़े से भारतीय युवाओं को निकला जा रहा है और सरकार द्वारा उसपर लीपा पोती की जा रही है और भारतीय युवाओं के अपमान को लेकर कोई शिकायत अमेरिका के समक्ष दर्ज नहीं कराई जा रही है उसे लेकर भारतीय युवाओं में निराशा ज़रूर है। ख़ासतौर से इस बात के मद्दे नज़र कि प्रधान मंत्री मोदी अपने को ट्रंप का दोस्त बताते हैं। यहाँ तक कि उनके पिछले चुनाव में अमेरिका जाकर 'अबकी बार ट्रंप सरकार ' का नारा भी लगवाते हैं ? ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि आख़िर ट्रंप ने भी उस दोस्ती की लाज क्यों नहीं रखी? क्यों हमारे युवाओं के हाथों में हथकड़ी  पैरों में बेड़ियाँ व ज़ंजीरें मुंह पर मास्क आदि लगाकर सैन्य विमान में बिठाकर बड़ी ही कष्टदायक स्थिति में उन्हें भारत भेजा गया ? क्या वजह थी कि जिस तरह रूस-यूक्रेन जंग के कारण यूक्रेन से वापस आने वाले युवाओं के लिये ऑपरेशन गंगा चलाया गया था और मंत्रियों द्वारा विमान में घुसकर उनका स्वागत किया गया था उसी तरह भारत अपने विमान भेजकर उन तथाकथित 'अवैध अप्रवासियों' को वापस क्यों नहीं बुलाता ? ख़ासकर यह सवाल इसलिये और भी पूछा जा रहा है कि जब कोलंबिया के कथित अवैध प्रवासियों को अमेरिकी सैन्य विमान द्वारा कोलंबिया वापस भेजने की घोषणा की गई तो कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेड्रो द्वारा इसका सख़्त विरोध किया गया। उसी समय राष्ट्रपति पेड्रो ने कहा कि वो अपने नागरिकों की 'गरिमा' को बरक़रार रखना चाहते हैं। इसके फ़ौरन कोलंबिया वायु सेना के दो विमान अमेरिका गए और वो अपने नागरिकों को ससम्मान लेकर राजधानी बोगोटा वापस पहुंचे। क्या भारत अपने नागरिकों के सम्मान के लिये ऐसा नहीं कर सकता था ?

     आज जब अमेरिकी डॉलर का मूल्य 87.79 ,कनाडा डॉलर का मूल्य 61.31 एवं ऑस्ट्रेलिया डॉलर का 54.97 रुपये है ऐसे में इन देशों में काम की तलाश में कौन जाना नहीं चाहेगा ? वैसे भी जब भारत सरकार स्वयं यह कह कर अपनी पीठ थपथपाये  कि हम भारत के 80 करोड़ लोगों को मुफ़्त राशन दे रहे हैं इसी से साफ़ हो जाता है कि इस सरकार ने आम लोगों को किस स्थिति में पहुंचा दिया है। यहाँ तक कि 'रेवड़ी आवंटन ' तो अब भारत के मुख्य चुनावी एजेंडे में शामिल हो चुका है। ऐसे में प्रतिभाओं का पालयन तो हो ही रहा है साथ ही आम आदमी भी चाहे अपनी ज़मीन,सोना,मकान आदि गिरवी रखकर या बेचकर इन देशों में जाना चाहते हैं। उन्हें विश्वास होता है कि उनका व उनके परिवार का भविष्य भारत में सुरक्षित नहीं। देश में आर्थिक अनिश्चितता का जो वातावरण है उससे वे वाक़िफ़ हैं तभी विदेशी एजेंटों के झांसे में आकर विदेश यात्रा हेतु कई ग़लत व ग़ैर क़ानूनी क़दम उठा लेते हैं। इनमें कई लोगों को तो अवैध तरीक़े से सीमा पार करने हेतु जंगलों व ख़तरनाक समुद्री रास्तों से गुज़रना होता है। कई युवा तो अपनी जान भी गँवा बैठते हैं। लिहाज़ा जहाँ भारत को विश्व की महाशक्ति बनने का सपना दिखाने वालों की यह ज़िम्मेदारी है कि वह अपने देश में ही अधिक से अधिक ऐसे अवसर उपलब्ध करायें ताकि पलायन पर नियंत्रण किया जा सके और इसतरह के अपमान से युवाओं को बचाया जा सके। दूसरी तरफ़ युवाओं को भी भारत में ही रहकर हर सरकारों पर रोज़गार के अवसर उपलब्ध करने का दबाव बनाना चाहिये। साथ ही संतोष व मान सम्मान का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिये। डॉ बशीर बद्र साहब ने ठीक ही कहा है कि-'भीगी हुई आँखों का ये मनज़र न मिलेगा'। घर छोड़ के मत जाओ कहीं घर न मिलेगा।

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