गौ-आधारित प्राकृतिक खेती—समय की मांग

राजकुमार चाहर
 

     आत्मनिर्भर भारत हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का सपना है। आत्मनिर्भर तभी बन सकते हैं, जब हमारी कृषि, हमारा हर एक किसान आत्मनिर्भर हो। ऐसा तभी संभव है जब हम रासायनिक कृषि की जगह प्राकृतिक कृषि के सिद्धांतों को आत्मसात करें एवं प्राकृतिक खेती को एक जनांदोलन का स्वरूप दें। भारतीय संस्कृति में आदिकाल से ही कृषि में गौ उत्पादों जैसे गोबर और गौमूत्र का प्रयोग होता रहा है। ऋग्वेद में कहा गया है— “गावो विश्वस्य मातरः” अर्थात गाय विश्व की माता है और यह विश्व का पोषण करनेवाली है। विष्णु पुराण में कहा गया है— “सर्वेषामेव भूताना गावः शरणमुत्तमम्” अर्थात् सभी प्राणियों के लिए सर्वोत्तम आश्रय है। समयांतर में भारत की कृषि पद्धति में अत्यधिक परिवर्तन हुआ है। भारत की लगातार बढ़ती जनसंख्या के कारण उत्पादन क्षमता बढ़ाने के दबाव में अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों, हानिकारक कीटनाशकों एवं अधिकाधिक भूजल उपयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति, उत्पादन, भूजल स्तर और मानव स्वास्थ्य में निरंतर गिरावट आई है।

     किसान बढ़ती लागत एवं बाजार पर निर्भरता के कारण खेती छोड़ रहे थे और आत्महत्या तक करने पर मजबूर हो रहे थे, परंतु मोदीजी की किसान हितेषी नीतियों और गौ आधारित प्राकृतिक कृषि पर निरंतर किए जा रहे कार्यों के कारण देश किसान खुशहाल हो रहा है। वर्तमान समय में ऐसी कृषि पद्धति की आवश्यकता बनती है, जिसमें लागत कम हो, उपज अधिक हो, उत्पन्न खाद्यान्न की गुणवत्ता उच्च कोटि की हो, मानव स्वास्थ्य अच्छा बना रहे एवं पर्यावरण भी समृद्ध बना रहे। गौ-आधारित प्राकृतिक खेती में खेत के लिए बाजार से कुछ भी नहीं खरीदना, अपितु कृषक के पास उपलब्ध संसाधनों द्वारा देसी गाय आधारित कृषि पर बल देना है। प्राकृतिक कृषि भारत के लिए कोई नई चीज़ नहीं है। यह प्राचीनकाल से भारतीय संस्कृति, भारतीय सभ्यता और हमारी परंपराओं का अंग है। हमारे वेदों, पुराणों, उपनिषदों में प्राकृतिक खेती के ज्ञान का खजाना मिलता है। यह खेती हमारी जड़ों से जुड़ी है। हमारे पूर्वज सदियों पहले से प्राकृतिक खेती करते रहे हैं।
 

प्राकृतिक खेती को अपनाना है, धरती माता को सुरक्षित बनाना है
 

भारत तो स्वभाव और संस्कृति से कृषि आधारित देश रहा है। इसीलिए जैसे-जैसे हमारा किसान आगे बढ़ेगा, वैसे-वैसे हमारा देश आगे बढ़ेगा। प्राकृतिक खेती समृद्धि का साधन होने के साथ ही साथ हमारी धरती मां का सम्मान और सेवा भी है। हमारे प्रधानमंत्री मोदीजी कहते हैं कि जब आप प्राकृतिक खेती करते हैं तो आप धरती माता की सेवा करते हैं, मिट्टी की क्वालिटी उसकी उत्पादकता की रक्षा करते हैं, जब आप प्राकृतिक खेती करते हैं तो आप प्रकृति और पर्यावरण की सेवा करते हैं, जब आप प्राकृतिक खेती करते हैं तो आपको गौ माता की सेवा का भी सौभाग्य मिलता है।
 

प्राकृतिक खेती किसानों के लिए समृद्धि का मार्ग

 

प्राकृतिक खेती पद्धति किसानों के लिए समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती है। जिस तरह जंगल में पौधे प्राकृतिक रूप से फलते-फूलते हैं, उसी तरह खेतों में किसान गौ-आधारित प्राकृतिक पद्धति खेती करके उत्पादन बढ़ाने के साथ ही अपनी जमीन की ऊर्वरा शक्ति भी बढ़ा सकते हैं। आज भारत सरकार खाद पर लगभग ढाई लाख करोड़ रुपए सालाना सब्सिडी दे रही है, जबकि यही राशि देश में विकास के अन्य कार्यों में उपयोग हो सकती है। यदि किसान प्राकृतिक खेती को अपनाएंगे तो इससे रासायनिक खेती से होने वाले नुकसान से भी बचा जा सकेगा। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती से किसानों की आय में वृद्धि भी संभव है और इसमें 70 प्रतिशत तक जल की बचत भी होती है।
 

जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का समाधान

 

वर्ष 1977 में राष्ट्र संघ ने ग्लोबल वार्मिंग के संबंध में चेताया था, इसके बावजूद ग्लोबल वार्मिंग की समस्या निरंतर बढ़ती जा रही है, परंतु मोदीजी के नेतृत्व में निरंतर जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में विश्व स्तर ऐतिहासिक कार्य किया गया। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का प्रभावी समाधान प्राकृतिक खेती है। आवश्यकता है कि यह बात हर किसान तक पहुंचाई जाए और किसान हर प्रकार से प्राकृतिक खेती को न केवल अपनाएं, बल्कि उसका अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार कर इसको जनांदोलन बनाएं।
 

रासायनिक खाद-कीटनाशक के उपयोग से बढ़ रहे हैं कैंसर जैसे रोग

 

भूमि की उर्वरा शक्ति ऑर्गेनिक कार्बन पर निर्भर करती है। हरित क्रांति के सूत्रपात केंद्र पंतनगर की भूमि में वर्ष 1960 में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा 2.5% थी जो आज घटकर 0.6% रह गई है। इसकी मात्रा 0.5% से कम होने पर भूमि बंजर हो जाती है। रासायनिक खाद और कीटनाशक का अंधाधुंध उपयोग फसलों को जहरीला बना देता है। इसी कारण कैंसर जैसे गंभीर रोगों के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने और जहरीले तत्वों से मानव जाति को बचाने के लिए गौ आधारित प्राकृतिक खेती ही सबसे प्रभावी समाधान है। गौ आधारित प्राकृतिक खेती के लिए खाद और कीटनाशक देसी गाय के गोबर और मूत्र से बनते हैं। इनमें दाल का बेसन, मुट्ठी भर मिट्टी और 200 लीटर पानी मिलाना पड़ता है। किसान यह जीवामृत स्वयं तैयार कर सकते हैं। जीवामृत खेत की उर्वरा शक्ति को उसी तरह बढ़ाता है जैसे कि दही की अल्प मात्रा दूध को दही बना देती है। 1 एकड़ भूमि के लिए जीवामृत, देसी गाय के एक दिन के गोमूत्र व गोबर से तैयार हो सकता है। एक गाय से 30 एकड़ भूमि में प्राकृतिक खेती की जा सकती है। जीवामृत से उत्पन्न होनेवाली जीवाणु के किसानों सबसे बड़े मित्र हैं। केचुए की सक्रियता भूमि में गहरे तक जल रिसाव को बढ़ाती है, इससे जल संचयन क्षमता भी बढ़ती है।
 

प्राकृतिक कृषि पद्धति में अनेक समस्याओं का समाधान है
 

प्राकृतिक कृषि देश की अर्थव्यवस्था के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती है। हिमाचल प्रदेश में 2 लाख किसानों और गुजरात में लगभग 3 लाख किसानों द्वारा प्राकृतिक खेती की जा रही है। प्राकृतिक खेती से जहां पर्यावरण संरक्षण हो सकेगा, वहीं किसानों की आमदनी दोगुनी और वह सशक्त और खुशहाल बनेंगे। वर्तमान में दुनिया भर में प्राकृतिक कृषि उत्पादों की मांग बढ़ रही है और हमारा लक्ष्य है कि इसका अधिक से अधिक लाभ किसानों को मिले।
 

80,000 की लागत में कमाये 4.5 लाख रुपये

 

किसान दाजी गोहिल बताते हैं कि उन्होंने गौ आधारित प्राकृतिक खेती के बारे सुना तो था, लेकिन सही तरीका न पता होने के कारण प्राकृतिक खेती शुरू नहीं कर पाये। इसके बाद साल 2019 में राजकोट के ढोलरा गांव में सुभाष पालेकर का 7 दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित किया गया, जिसमें ट्रेनिंग लेकर दाजी गोहिल ने प्राकृतिक खेती के गुर सीखे। उन्होंने बताया कि गाय आधारित खेती करने पर शुरुआत में 80,000 तक की लागत आई और आमदनी बढ़कर 4.5 लाख रुपये तक पहुंच गई।
 

प्राकृतिक कृषि के लिए ध्यान देने योग्य बातें :

 

• प्राकृतिक कृषि में देशी बीज ही प्रयोग करें। हाइब्रिड बीजों से अच्छे परिणाम नहीं मिलेंगे।

• प्राकृतिक कृषि में भारतीय नस्ल का देसी गोवंश ही उपयोग करें। जर्सी या होलस्टीन आदि हानिकारक है।

• पौधों व फसल की पंक्ति की दिशा उत्तर-दक्षिण हो। दलहन फसलों की सह फसलें करनी चाहिए।

• यदि किसी दूसरे स्थान पर बनाकर खाद (कंपोस्ट) लाकर खेतों में डाला जाएगा तो, मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवाणु निष्क्रिय हो जाएंगे। पौधों का भोजन जड़ के निकट ही बनना चाहिए, तब भोजन लेने के लिए जड़ें दूर तक जाएंगी और लंबी व मजबूत बनेगी, परिणामस्वरूप पौधा भी लंबा और मजबूत बनेगा।

सौजन्य : कमल संदेश

(लेखक भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)