राजधानी दिल्ली में पिछले दिनों संघ राज्य क्षेत्रों के सम्मेलन का आयोजन किया गया। केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने इस सम्मेलन की अध्यक्षता की। इस सम्मलेन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संघ राज्य क्षेत्रों को देश के बाक़ी हिस्सों के लिए सुशासन और विकास का मॉडल बनाने के वीज़न को पूरा करने की दिशा में महत्वपूर्ण क़दम बताया गया। गृह मंत्री अमित शाह ने अपने संबोधन में संघ राज्य क्षेत्रों को देश के लिए रोल मॉडल बनाने की ज़रुरत पर ज़ोर देते हुए कहा कि यदि संघ राज्य क्षेत्रों की क्षमता का पूरी तरह से दोहन किया जाए, तो भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को हासिल करने में संघ राज्य क्षेत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। इस सम्मलेन में केंद्र शासित प्रदेशों के विकास तथा उनकी क्षमताओं को लेकर तथा पर्यटकों को और अधिक आकर्षित करने और परिवहन आदि की लागत को कम करने के लिए देश में पर्यटक सर्किट विकसित किए जाने जैसी और भी कई मत्वपूर्ण बातें की गयीं।
केंद्र शासित प्रदेशों के लिये आम तौर पर एक राष्ट्रव्यापी धारणा यह बनी हुई है कि केंद्र सरकार के अधीन होने के नाते यहां का प्रशासन आम तौर पर चुस्त दुरुस्त रहता है। क़ानून व्यवस्था,ट्रैफ़िक साफ़-सफ़ाई,पर्यावरण,रिहायशी प्रबंधन आदि सब कुछ बेहतर रहता है। तो क्या वास्तव में केंद्र शासित प्रदेश वैसे ही होते हैं जैसा कि उनके बारे में कल्पना की जाती है ? आइये यह समझने के लिये राजधानी दिल्ली से मात्र 250 किलोमीटर की दूरी पर स्थित देश के सबसे सुव्यवस्थित समझे जाने वाले केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ की कुछ वास्तविकताओं पर नज़र डालते हैं। सिटी ब्यूटीफुल के नाम से मशहूर चंडीगढ़ निश्चित रूप से चारों ओर हरियाली से हरा भरा केंद्र शासित प्रदेश है। स्विस फ्रेंच आर्केटिक्ट ले करबुसिएर द्वारा सेक्टर आधारित नक़्शे पर हिमाचल प्रदेश की तलहटी में बसाया गया चंडीगढ़, सफ़ाई व जल निकासी के लिये भी पूरे देश में मशहूर है। परन्तु इसी महानगर की प्रशासनिक,ट्रैफ़िक,स्वछता व विद्युत् विभाग सम्बन्धी कई वास्तविकताएं ऐसी भी हैं जो कि चंडीगढ़ के सिटी ब्यूटीफुल होने के दावे को झुठलाती भी हैं।
इन दिनों पूरे चंडीगढ़ में जगह जगह आवारा पशुओं का साम्राज्य है। मुख्य मार्ग पर घने ट्रैफ़िक के बीच लावारिस जानवरों का क़ब्ज़ा,सांडों का युद्ध राहगीरों का ज़ख़्मी होना यह आम बात बन चुकी है। मुख्य मार्गों से दायें-बायें मुड़ते ही प्रदूषण फैलाते कूड़े के बदबूदार ढेर,उनमें बैठे जानवर,ट्रैफ़िक की लंबी लाइनें,और बरसात के दिनों में भूमिगत ड्रेनेज व्यवस्था का फ़ेल हो जाना आदि चंडीगढ़ के सिटी ब्यूटीफ़ुल होने के दावे की हवा निकालता रहता है। इसी तरह चंडीगढ़ का बिजली विभाग जहां अपनी कार्य कुशलता के दावे करता है वहीँ इसकी हक़ीक़त भी कुछ और ही है।चंडीगढ़ में दर्जनों झुग्गी बस्तियां ऐसी हैं जहाँ प्रशासन की नाक के नीचे कई वर्षों से कंटिया लगा कर चोरी की बिजली जलाई जा रही है। यह काम रात के अँधेरे में नहीं बल्कि दिन के उजाले में किया जाता है। विद्युत विभाग ख़ामोश बना हुआ है। कुछ सरकारी शौचालय तक चोरी की बिजली जला रहे हैं क्योंकि बिल न जमा करने की वजह से उनके कनेक्शन काट दिये गये हैं।
गत दिनों तो चंड़ीगढ़ विद्युत् विभाग से जुड़ी एक ऐसी घटना की जानकारी मिली जिसने विभाग की लापरवाही,निठल्लेपन तथा ग़ैर ज़िम्मेदारी की पोल खोल कर रख दी। चंड़ीगढ़ रामदरबार में माता राम बाई ट्रस्ट नामक एक प्रसिद्ध सूफ़ी धर्मस्थान है। किसी समय यहां टी एन चतुर्वेदी व श्री बनर्जी जैसे आला प्रशासक व फ़िल्म जगत की अनेक बड़ी हस्तियां अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करने आया करते थे। लगभग पांच एकड़ से बड़े क्षेत्र में फैले इस स्थान की परिधि में दशकों पूर्व चंड़ीगढ़ विद्युत् विभाग ने अपनी सुविधानुसार बिजली के कई खम्बे लगाकर दूसरी दिशा में विद्युत् आपूर्ति की थी। अब समय अनुसार दरबार कैम्पस में जो निर्माण कार्य चल रहा है उसमें दरबार की परिधि में लगे हुए वह
राम दरबार में विद्युत विभाग द्वारा दो महीने पहले खोदी
पड़ी खाईं
अवांछित खंबे बाधा साबित हो रहे हैं। इस सम्बन्ध में लगभग चार वर्ष पूर्व माता राम बाई ट्रस्ट द्वारा दरबार से अवांछित खम्बों को दरबार की परिधि से बाहर करने का निवेदन पत्र दिया गया। इसके बाद इन विगत लगभग चार वर्षों के दौरान चंड़ीगढ़ विद्युत् विभाग डिवीज़न 5 के कई बड़े एक्स इ एन व एस डी ओ आदि ने बड़ी ही तत्परता से मौक़े का दौरा करना शुरू किया। अधिकारियों की मीठी बोली व उनके आश्वासनों से हर बार ऐसा लगता जैसे बस एक ही दो दिन में सभी खंबे बाहर निकल जायेंगे। परन्तु अधिकारियों की भागदौड़ का पिछले वर्ष परिणाम यह निकला कि खंबे हटाने के बजाये चंड़ीगढ़ विद्युत् विभाग ने इन खंबों को हटाने की पेशगी क़ीमत का एक लाख बाईस हज़ार रूपये का इस्टीमेट दरबार को भेज दिया। जबकि दूसरी तरफ़ कुछ विभागीय अधिकारियों का यह भी कहना है कि चंड़ीगढ़ विद्युत् विभाग को अपने ख़र्च पर ही यह काम करना चाहिये।
दरबार ने चंड़ीगढ़ विद्युत् विभाग के निर्देशानुसार 1,22,919 रूपये का डिमांड ड्राफ़्ट एस डी ओ,डिवीज़न 5 के नाम बनवाकर 29 मार्च 2022 को जमा भी कर दिया। इसके बाद शुरू हुई टेंडर की वह अंतहीन प्रक्रिया जो कि गत दस महीनों से अभी तक पूरी ही नहीं हो पा रही। इधर दरबार अपने वार्षिक आयोजन के लिये तैयार है। ख़बरों के अनुसार कई बार टेंडर ख़ारिज हो चुके हैं। ठेकदार भी काम छोड़ कर भाग चुके हैं। एक ठेकेदार ने ठेका एलाट होने के बाद काम शुरू भी किया तो वह भी लगभग 5-6 फ़ुट गहरी और क़रीब 40 फ़ुट लंबी एक खाई खोद कर काम छोड़ कर चला गया। इन दिनों वह खाई दो महीने से लंबे समय से खुदी पड़ी है। यह कभी भी इंसानों से लेकर जानवरों तक की जान के लिये ख़तरा बन सकती है। सवाल यह है कि जिस केंद्र शासित प्रदेश में चार साल से आवेदन व एक वर्ष से पैसे जमा करवाने के बावजूद कोई कार्रवाई न होती हो, फिर आख़िर बक़ौल केंद्रीय गृह मंत्री वे संघ राज्य क्षेत्र अपनी विरासत पर आख़िर कैसे गर्व करें ? ऐसे अनेक घटनाओं से तो यही पता चलता है कि चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफ़ुल कम,नाम बड़े दर्शन छोटे की कहावत को अधिक चरितार्थ कर रहा है।
(ये लेखक के अपने विचार है व लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार है )