गज़ल

मेरे महबूब…
मेरे महबूब ! उम्र की तपती दोपहरी में घने दरख़्त की छांव हो तुम सुलगती हुई शब की तन्हाई में दूधिया चांदनी की ठंडक हो तुम ज़िन्दगी के बंजर सहरा ...
इक ग़ज़ल उसकी शान मेँ लिख दूँ
शायरोँ की जुबान मेँ लिख दूँ, अपने ताजे दीवान मेँ लिख दूँ। काब-ए-दिल मेँ तेरा नाम लिक्खा, जाऊँ मैँ अब कुरान मेँ लिख ...
साजिशेँ कर गई हवा लेकिन…
साजिशेँ कर गई हवा लेकिन, मैँ तेरी राह मेँ रूका लेकिन। रस्म-ए-उल्फत निभाई है मैनेँ, लोग कहते हैँ बेवफा लेकिन। हर शमां बुझ गई ...
तुम्हेँ सिज़दा किया सनम मैनेँ
अपनी बिगड़ी है इस जमाने से, बात बन जाए तेरे आने से। चाँद-तारेँ तो रूठ बैठे हैँ, रौशनी होगी घर जलाने से। हिज़्र की ...
इश्क की क्या सजा
इश्क की क्या सजा दे गया है मुझे, ज़ख्म देकर दवा दे गया है मुझे। मेरी बर्बादियोँ पे वो हंसता हुआ, जिन्दगी की ...
ऐ चांद ! मेरे महबूब से फ़क़्त इतना कहना…
ऐ चांद ! मेरे महबूब से फ़क़्त इतना कहना... अब नहीं उठते हाथ दुआ के लिए तुम्हें पाने की ख़ातिर... हमने दिल की वीरानियों में दफ़न कर ...