बिहार : जहाँ गंदगी व दुर्गन्ध कोई मुद्दा ही नहीं

   शोक, बुद्ध व गाँधी जैसे महापुरुषों की कर्मस्थली बिहार सौभाग्यवश मेरी भी पैतृक स्थान है।  इस नाते जन्म से ही अपने गांव में लगभग प्रत्येक वर्ष मेरा एक बार जाना ज़रूर होता है। आज भी यह राज्य देश को सबसे अधिक प्रशासनिक अधिकारी देने वाला राज्य है। परन्तु मुझे आश्चर्य है कि इतनी जागरूकता के बावजूद न जाने क्यों यहाँ के लोगों को गंदगी से कोई परहेज़ नहीं है। मैं हमेशा से यह देखता आ रहा हूँ कि यहाँ शहरों व क़स्बों के नाले व नालियां हमेशा ही जाम रहते हैं और दुर्गन्ध व सड़ांध मारते हैं । यही वह राज्य है जहाँ प्रत्येक धर्मों के लोग अपनी धर्म ध्वजा भी बुलंद रखना चाहते हैं। हिन्दू राष्ट्र बनाने का आवाहन करने के लिये पिछले दिनों एक विवादित कथावाचक द्वारा बिहार में भारी भीड़ इकट्ठी की गयी। यहाँ नफ़रती बातें तो ख़ूब हुईं परन्तु स्वच्छता को लेकर किसी तरह की बात उपस्थित लोगों को नहीं बताई गयी। यहाँ गांव गांव में अनेक मंदिर मस्जिद हैं। हर तरफ़ से भजन व अज़ानों की आवाज़ें सुनाई देती हैं। रोज़ा पूरी अक़ीदत के साथ रखा जाता है मुहर्रम के जुलूस निकलते हैं परन्तु यह सब प्रायः ऐसी जगहों या रास्तों पर होते हैं जहाँ से दुर्गन्ध व गंदिगी के कारण इंसान का निकलना भी दूभर है। बड़ा आश्चर्य है कि जिस रास्तों व स्थानों पर इंसान का चलना स्वास्थ्य के दृष्टिगत ख़तरे से ख़ाली नहीं उन जगहों पर लोग किस तरह भगवन या ख़ुदा को याद करते हैं और अपने इष्टदेव को बुलाते हैं ? भला गंदिगी में भी कहीं भगवान या पीर पैग़ंबर या इमाम भी आते हैं ? आख़िर क्यों कभी कोई इमाम अपने ख़ुत्बे में या प्रवचन कर्ता अपने प्रवचनों में अपने अनुयायियों को सफ़ाई के प्रति जागरूक नहीं करता। जबकि स्वर्ग व जन्नत के मार्ग सभी बताते हैं। भला गंदगी भरा नारकीय जीवन बिताने वाला शख़्स मरणोपरांत स्वर्ग या जन्नत में जाकर क्या करेगा और कैसे जायेगा ? 

      दरअसल बिहार में मज़दूर से लेकर अधिकारी नेता मंत्री संतरी तक सभी आम तौर पर पान या खैनी (तंबाकू ) खाने के 'शौक़ीन' हैं। आप यहाँ इन तंबाकू खैनी के 'क़द्रदानों' को प्रायः मुंह बंद किये हुये पान,सुरती ,खैनी व तंबाकू आदि का आनंद लेते हुये देखेंगे। और यही 'महानुभाव ' जब और जहाँ चाहते हैं बेरोकटोक थूक भी देते हैं। ट्रेंस या बसों की खिड़की से बाहर,कार या चलते बाइक से थूक देना इनका स्वभाव बन चुका है। यह नहीं देखते की इनका 'पावन थूक ' किसी दूसरे पर भी पड़ सकता है। इससे किसी दूसरे को आपत्ति भी हो सकती है। हद तो यह है कि सरकारी या निजी कार्यालय, कोर्ट कचेहरी किसी विभाग का मुख्यालय लोगों के खड़े होने के सार्वजनिक अड्डे आदि सब पान की पीक से लाल नज़र आएंगे। यह 'अति बुद्धिमान ' लोग जिस सीट पर बैठ कर अपना काम करते हैं वहीँ थूक देते हैं। लिफ़्ट को भी नहीं बख़्शते,रेल के डिब्बों में बाथरूम में गोया कोई जगह ऐसी नहीं जहाँ इन्होंने अपनी 'सभ्यता ' की पहचान न छोड़ी हो।

      बड़ा आश्चर्य है कि प्रातः चार बजे से ही चौक चोराहों के चायख़ानों पर बैठकर अमेरिका इस्राईल, ईरान और देश विदेश की राजनीति की गहन चर्चा करने तथा बी बी सी लंदन पर समाचार सुनने वाले लोगों को यह एहसास भी नहीं होता कि जहाँ वे बैठे हैं वहां कितनी बदबू है,आसपास कितनी गंदिगी है और बैठने की जगह पर थूकना नहीं चाहिये? बड़े ही अफ़सोस परन्तु पूरे विश्वास से मुझे कहना पड़ रहा है कि मैं ने आजतक बिहार में किसी भी शहर के बाज़ारों में यहाँ तक कि राजधानी पटना से लेकर मुज़फ़्फ़रपुर व दरभंगा जैसे प्रमुख शहरों के मुख्य नालों नालियों को सुचारु रूप से प्रवाहित होते नहीं देखा। यहाँ तक कि मुख्य चौराहों पर जहां दिन भर हज़ारों लोग आते जाते हैं वहां भी कूड़े के ढेर,उसमें मुंह मारते हुये सूअर व गोवंश आदि मिल जायेंगे। उदाहरण के तौर पर दरभंगा का एक मशहूर स्थान है बेंता चौक। दरभंगा मेडिकल कॉलेज के समीप स्थित इस चौक के आसपास मेडिकल सम्बन्धी सैकड़ों दुकानें,टेस्टिंग लैब,डॉक्टर्स,डिस्पेंसरी आदि सब कुछ हैं। खाने पीने की भी यहाँ अनेक दुकाने व रेस्टोरेंट आदि हैं। इसके मुख्य चौक पर एक छोटा सा कमल सर्किल बना है। यक़ीन कीजिये आप इस जगह पर खड़े नहीं हो सकते। यहाँ आसपास के सारे दुकानदार स्वयं इस चौक को कूड़ाघर बनाये रखते हैं। यहाँ खड़े होना रुकना तो दूर, दुर्गन्ध के चलते इसके सामने से निकलना भी आसान नहीं है। परन्तु यह जगह दरभंगा के मुख्य एवं व्यस्ततम चौक में शामिल है।

      उधर बिहार के गांव के हालात तो और भी दयनीय हैं। यहाँ नाले नालियों के निर्माण के नाम पर पंचायत स्तर पर खूब लूट की गयी है।सारे के सारे नाले नालियां टूटे व जाम होने के कारण दुर्गन्ध व बीमारी का कारक बन गए हैं। उन नालों की निकासी का कोई निर्धारित मार्ग नहीं है। केवल सरकारी धन की लूट के लिये नालों व नालियों के टेंडर किये जाते हैं। सच पूछिये तो गांव के हर घर के पीछे या सामने उसका कूड़ाघर है ,वहीँ गंदे पानी का सोख़्ता है। गोया हर घर बीमारी फैलने का अड्डा है। हैरत है कि किस तरह और किस उम्मीद पर गांव के लोग अपना सरपंच व मुखिया चुनते हैं ? और कितने बेशर्म होते हैं जो कुछ न कर पाने के बावजूद जनता के बीच जाकर वोट मांगते फिरते हैं ? कहना ग़लत नहीं होगा कि इसतरह की घोर दुर्व्यवस्था के लिये केवल सरकार ही नहीं बल्कि आम लोग भी ज़िम्मेदार हैं। बजाये इसके कि कोई किसी को नालों व सड़कों पर कूड़ा फेंकने या सार्वजनिक स्थल को थूक से लाल करने से रोके, उलटे वह स्वयं इसी कृत्य में शामिल हो जाता है। यदि किसी ऑफ़िसर से शिकायत कीजिये तो वह भी ऐसे विषय पर ज़्यादा तवज्जोह नहीं देता। क्योंकि वह स्वयं अपनी सीट पर बैठ कर या अपने ऑफ़िस की दीवारों या कोने पर थूकता रहता है। गोया गंदिगी व बदबू इस गौरवशाली राज्य की नियति बनकर रह गयी है। और इसी वजह से यह राज्य अक्सर गंभीर संक्रामक रोगों की चपेट में भी आ जाता है। शायद यही वजह है कि बिहार में कभी भी किसी भी चुनाव में गंदगी व दुर्गन्ध कोई मुद्दा ही नहीं बन पाता।

                                                          
               (चित्र साभार तनवीर जाफरी द्वारा ईमेल से प्राप्त )

Leave a Reply

Your email address will not be published.

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

*