वैसे तो देश के असम ,केरल,पुदुचेरी,तमिलनाडु तथा पश्चिम बंगाल जैसे पांच राज्यों में ताज़ातरीन विधान सभा चुनाव संपन्न हुए। परन्तु पूरे देश में सबसे अधिक चर्चित चुनाव पश्चिम बंगाल के चुनाव ही रहे। देश के टी वी चैनल्स ने भी अपनी टी आर पी में इज़ाफ़ा करने की ग़रज़ सबसे अधिक कार्यक्रम भी बंगाल चुनाव को लेकर ही पेश किये। हालांकि चर्चा में कुछ समय आसाम चुनावों को भी मिला। इसके कई कारण थे। सबसे प्रमुख तो यही कि बंगाल व आसाम दोनों ही राज्यों में बांग्लादेशी घुसपैठ नाम पर हिन्दू-मुस्लिम पर आधारित कार्यक्रमों में गरमागरम तर्क-वितर्क-कुतर्क करने की पूरी छूट थी। दूसरे यह कि बंगाल में अपनी पूरी ताक़त झोंक कर किसी भी तरह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व भाजपा वहां सत्ता हासिल करना चाह रहे हैं। उधर बंगाल में मुक़ाबला उस ममता बनर्जी नमक 'बंगाल की शेरनी' से है जिसने अपने अकेले दम पर उन वामपंथियों से राज्य की सत्ता छीनी थी जिनका बंगाल का दुर्ग 'अभेद्य ' समझा जाता था और वामपंथी सरकार ने राज्य में 34 साल तक शासन में रहने का कीर्तिमान स्थापित किया था। परन्तु वामपंथी व टी एम सी सत्ता संघर्ष में भी किसी भी तरफ़ से धर्म व जाति आधारित या वोट बैंक आदि के कार्ड नहीं खेले गए थे। परन्तु वर्तमान चुनाव जिसमें एक ओर तो ममता बनर्जी लगभग अकेली हैं जबकि दूसरी ओर उनको सत्ता से हटाने के लिए लगभग सभी दक्षिण,वाम व मध्य मार्गीय पार्टियां उनके सामने हैं। कहा जा सकता है कि भाजपा व संघ परिवार तो इन चुनावों को 'करो या मरो' के जज़्बे से लड़ रहा है। देश के इतिहास में आज तक इतने लंबी अवधि व 8 चरणों में राज्य विधानसभा के चुनाव कभी नहीं कराए गए। इससे पूर्व 2019 में लोकसभा चुनाव भी 7 चरण में कराए गए थे। इसके अलावा देश के किसी भी प्रधानमंत्री व गृह मंत्री ने किसी एक राज्य के इतनी बार चुनावी दौरे नहीं किये जितने बंगाल में किये गए। और तो और चुनाव सभाओं व रैलियों में आरोप प्रत्यारोप व झूठ बोलने का इतना गिरा स्तर भी पहले कभी देखने को नहीं मिला। प्रधानमंत्री मोदी ने तो पिछले दिनों अपनी बांग्लादेश यात्रा से भी बंगाल के मतदाताओं को साधने व लुभाने के प्रयास किये जिसके विरुद्ध ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग से शिकायत भी की।
बहरहाल,महिला सशक्तिकरण का दावा करने वाली वर्तमान सत्ता देश की एकमात्र महिला मुख्यमंत्री को सत्ता से हटाने के लिए उनपर भ्रष्टाचार,सांप्रदायिकता,मुस्लिम तुष्टीकरण,टोलेबाज़ों को बढ़ावा देने वाली,गुंडों को प्रश्रय देने व भाई भतीजावाद को बढ़ावा देने वाली सरकार बता कर तो उनपर हमलावर है ही साथ साथ उन्हें 'ममता बेगम ' जैसे नामों से भी सार्वजनिक रूप से संबोधित कर उनपर समुदाय विशेष का ठप्पा लगाने के लिए भी प्रयासरत है। यहाँ यह भी ग़ौरतलब है कि जिन भ्रष्ट नेताओं के घोटालों अथवा स्कैम के चलते भाजपा ने ममता सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने शुरू किये थे उनमें से अधिकांश नेता अब भाजपा में ही शामिल हो चुके हैं और उनमें से कई भाजपा के टिकट पर चुनाव भी लड़ रहे हैं। ज़ाहिर है अपने ऊपर पड़ रहे इस चौतरफ़ा भारी दबाव के चलते ममता ने पिछले दिनों अनेक विपक्षी दलों के नेताओं को पत्र लिखकर विपक्ष से एकजुट होकर लोकतंत्र बचाने की अपील की। और इसी अपील का असर था कि समाजवादी पार्टी ने अपने दल की राज्य सभा सदस्या जया बच्चन को तृणमूल कांग्रेस के चुनाव प्रचार में शामिल होने हेतु पश्चिम बंगाल भेजा। और ममता ने भी उन्हें तृणमूल कांग्रेस के स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल कर लिया।
चुनाव परिणाम हालांकि 2 मई को आने हैं परन्तु 'गोदी मीडिया ' सत्ता की भाषा बोलते हुए अभी से ममता बनर्जी के क़िले को ध्वस्त हुआ और राज्य में पहली बार भाजपाई परचम लहराता हुआ बताने लगा है। यहां तक कि मीडिया ममता बनर्जी को उनके अपने एकमात्र विधानसभा क्षेत्र नंदीग्राम से भी पराजित होता बता रहा है। पश्चिम बंगाल का चुनाव परिणाम क्या होगा इसका अंदाज़ा तो अभी नहीं लगाया जा सकता परन्तु यह तो स्पष्ट हो ही गया कि एक ही सीट से नामांकन करने जैसा आत्मविश्वास दिखाकर ममता ने जिस साहस का परिचय दिया है उसने न केवल उनकी 'बंगाल की शेरनी ' की छवि को बरक़रार रखा है बल्कि उन्होंने आत्मविश्वास व साहस में नरेंद्र मोदी व राहुल गाँधी जैसे नेताओं को भी पीछे छोड़ दिया है जो हार से भयभीत होकर दो दो सीटों से चुनाव लड़ते रहे हैं। दूसरे यह कि ममता को सत्ता से हटाने के लिए जिस तर्ज़ व अंदाज़ की चुनावी जंग भाजपा लड़ रही है और लगभग पूरी भाजपा जिस तरह से अपने धन-बल व सत्ता शक्ति का प्रयोग कर देश की एक अकेली महिला मुख्य मंत्री को सत्ता से हटाने के लिये अपनी भरपूर ताक़त झोंके हुए है, चुनावी जंग के इसी अंदाज़ ने यह साबित कर दिया है कि बंगाल में ममता का राजनैतिक क़द सत्ताधारी नेताओं से कहीं ऊँचा है। एक ओर चुनाव प्रचार में व्हील चेयर पर सवार घायल महिला तो दूसरी तरफ़ अनगिनत जहाज़ों व हैलीकॉप्टर्स की गूँज भी यही साबित कर रही है।
भाजपा पहले भी दिल्ली,झारखण्ड,हरियाणा राजस्थान आदि राज्यों के चुनाव बंगाल की ही तरह सीटों के लक्ष्य निर्धारित कर लड़ती रही है। गोदी मीडिया इन राज्यों में भी भाजपाई भोंपू बनकर बंगाल की ही तरह अपना सुरताल मिलाता रहा है। परन्तु इन सभी राज्यों में भाजपा कहीं भी अपने लक्ष्य को नहीं छू सकी और कहीं भी सरकार नहीं बना सकी। हरियाणा में भी भाजपा कैसी सरकार चला रही है यह भी देश देख ही रहा है। लिहाज़ा कोई आश्चर्य नहीं कि बंगाल का भाजपा का 200 सीटें जीतने का दावा भी हवा न बन जाए। क्योंकि तृणमूल कांग्रेस के मुख्य रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी पूरे दावे के साथ कह रहे हैं कि भाजपा दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू सकेगी। और यदि भाजपा अपने मंसूबों में सफल हो जाती है तो देश महिला सशक्तिकरण का प्रतीक बन चुकी देश की एकमात्र उस महिला मुख्यमंत्री से हाथ धो बैठेगा जिसने सादगी,समर्पण ईमानदारी में न केवल अपनी अलग पहचान बनाई थी बल्कि बंगाल को देश में महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित राज्य की पहचान भी दी।