Author: अर्पण जैन "अविचल"

खून की दलाली बनाम राजनीतिक स्यापा

दिल्ली से लेकर दंतेवाड़ा, मुंबई से लेकर मीरपुर और बंगाल से बारामूला तक हिंद के जनमानस में केवल और केवल ...

पत्रकार हैं पक्षकार नही

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शहर मर भी रहा है

हर शहर की सरहद के उस पार से कुछ ठंडी हवाएँ हर बार जरूर आती है अपने साथ सभ्यताओं का एक पुलिंदा ...

प्रेम भी अपरिपक्व होने लगा हैं

स्त्री की देह तालाब-सी है, बिल्कुल ठहरी हुई सी उसमे नदी के मानिंद वेग और चंचलता कुछ नहीं फिर भी पुरुष उस ...

‘पशुधन’ नहीं, ‘धनपशु’ हैं आवारा

शहर में ट्राफ़िक सिग्नल के सामने, अस्पताल में लगे नीम के पेड़ के नीचे, रास्ते के किनारे, कचहरी के खुले ...

गाँव में खबरों का कुँआ हैं

ये उँची-लंबी, विशालकाय बहुमंज़िला इमारते, सरपट दौड़ती-भागती गाड़ीयाँ, सुंदरता का दुशाला औड़े चकमक सड़के, बेवजह तनाव से जकड़ी जिंदगी, चौपालों ...