जब तक समाज असंगठित व विभाजित है, यूँ ही लुटता ही रहेगा

      यदि आप रोड टैक्स अदा किये बिना वाहन चलायें तो आपका चालान होना निश्चित है। नगर पालिकाओं व नगर निगम को यदि आप नाले व सीवर सेवाओं के भुगतान समय से अदा न करें गृह कर का भुगतान निर्धारित समय पर न करें तो जुर्माना लगना लाज़िमी है। और अब तो थोड़े-थोड़े फ़ासले पर पड़ने वाले टोल बैरियर जनता से पैसे वसूलने के लिये लगाये गये हैं। हालांकि अभी तक टोल वसूलने का तर्क ही समझ में नहीं आया कि आख़िर जब सरकार किसी व्यक्ति के नया वाहन लेने के समय ही प्रत्येक वाहन से एक मुश्त मोटा रोड टैक्स वसूल कर लेती है उसके बाद क़दम क़दम पर टोल वसूली का क्या मतलब है ? और अगर प्रत्येक गाड़ी से जगह जगह टोल वसूलना ही है तो रोड टैक्स के नाम पर वसूल की जाने वाली मोटी  रक़म वसूलने का मतलब क्या ? अभी पिछले दिनों हुई बारिश में नवनिर्मित सड़कों में गड्ढे पड़ते दिखाई दिये। अनेक वाहन उसमें धंसे हुये नज़र आये। कौन है इसका ज़िम्मेदार ? टैक्स अदा करने वाली जनता या टैक्स के नाम पर लूट व भ्रष्टाचार करने वाली सरकार व प्रशासन ? मगर सरकार सब कुछ मनमानी तरीक़े से कर रही है। और परेशानहाल आम लोगों की जेब किसी न किसी बहाने इसी तरह कटती रहती है।

     सवाल यह है कि इस वसूली के बदले में सरकार जनता को वह सुविधाएं दे भी पाती है जिसके नाम पर जनता से पैसे वसूले जा रहे हैं ? जनता नाली व सीवर के नाम के बिल अदा करती है। जलापूर्ति विभाग पानी के पैसे लेता है। मगर जब नालियां व नाले जाम पड़े हों, दुर्गन्ध फैल रही हो। नियमित सफ़ाई न होती हो ? इसी तरह सीवरेज प्रणाली फ़ेल हो चुकी हो? जगह जगह सीवर के मेनहोल ओवर फ़्लो हो रहे हों? सड़कों व गलियों में इन ओवरफ़्लो सीवर की सड़ांध फैली हो ,नाले व नालियां भ्रष्टाचारयुक्त निर्माण के कारण टूटे पड़े हों,नालों का परवाह रुका पड़ा हो,इसके बावजूद यदि सरकार नाले व सीवर के बिल नियमित रूप से भेजती रहे तो जनता को क्या यह पूछने का हक़ नहीं कि यह किस बात के पैसे वसूले जा रहे हैं ? इस भ्रष्टाचार,लापरवाही,ग़ैर ज़िम्मेदारी व सरकारी अनदेखी की क़ीमत जनता को बरसात में मोहल्ले कॉलोनी में जलभराव की स्थिति में अपने घरों के फ़र्नीचर व अन्य ज़रूरी व क़ीमती सामानों की बर्बादी से चुकानी पड़ती है। बाज़ार व दुकानें पानी से भर जाते हैं। दुकानदारों का भारी नुक़्सान भी होता है कारोबार भी ठप्प हो जाता है। कौन है इस दुर्व्यवस्था का ज़िम्मेदार ? आख़िर जनता को इस दुर्व्ययवस्था का भुगतान क्यों करना पड़े ?

      सीवर के मेन होल के बैठ जाने पर गंदे व मलमूत्र युक्त कीचड़ भरे गड्ढों में स्कूटर साईकिल सवार गिर जाते हैं। उन्हें चोट लग जाते है। कई बार सड़कों के खुले मेन होल में गिरने से लोगों की मौत तक हो जाती है। परन्तु जनता की जान की कोई क़ीमत नहीं? जलापूर्ति विभाग पानी के पैसे तो ज़रूर  लेता है परन्तु प्रायः काला विषैले व दुर्गन्धपूर्ण प्रदूषित जल की आपूर्ति होती है। यदि कोई व्यक्ति बिना देखे धोखे से उसे पी ले तो मौत निश्चित है। क्या ऐसे ही गंदे व प्रदूषित जल की सप्लाई के लिये जनता से पैसे वसूले जाते हैं ? इसी तरह रेल व्यवस्था पूरी तरह चौपट हो रही है। परन्तु वंदे भारत ट्रेन परिचालन को सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में सरकार पेश कर रही है और आगे बुलेट ट्रेन संचालन के सपने दिखाए जा रहे हैं। पिछले दिनों झांसी में इसी वंदे भारत ट्रेन में परोसे गये भोजन में कीड़े चलते मिले। यात्रियों ने हंगामा किया परन्तु कोई ज़िम्मेदारी लेने वाला नहीं। आरक्षण होने के बावजूद अनारक्षित सवारियां आरक्षित बोगी में भरी होती हैं। यहाँ तक कि अधिकृत यात्रियों को बोगी में शौचालय तक जाने का रास्ता नहीं मिलता। शौचालय के भीतर की हालत दयनीय रहती है। सैकड़ों बने बनाये रेल स्टेशन को तोड़ कर जनता के टैक्स के हज़ारों करोड़ ख़र्च कर उन्हें नया बनाया जा रहा है। उस निर्माण कार्य में बड़ा भ्रष्टाचार हो रहा है। यात्रियों को चमकते हुये रेल स्टेशन से ज़्यादा ज़रुरत सुगम व सुरक्षित यात्रा की है। ज़रुरत बैठने की सीट और साफ़ सुथरे वाशरूम की है। इसके विपरीत जनरल डिब्बों की संख्या कम की जा रही है। ए सी व आरक्षित बोगियों की संख्या बढ़ाई जा रही है। सामान्य श्रेणी के यात्री त्राहि त्राहि करते रहते हैं। परन्तु जनता की तरफ़ से आवाज़ उठाने वाला कोई नहीं।

      और अब इंतेहा तो यह हो चुकी है कि सत्ता समर्थक व शासन प्रशासन के लोगों ने इन बातों का ऐसा जवाब तैयार कर लिया है कि जनता का सवाल पूछना तो दूर उलटे उसी जनता को लाजवाब कर दिया जाता है। यानी अगर आप कहें कि हमारा घर मोहल्ला डूब रहा है तो जवाब मिलेगा कि अरे करोड़पतियों के सेक्टर डूबे हैं,पॉश कालोनियां डूबी हुई हैं। आप अपनी कॉलोनी मोहल्ला लिए बैठे हो? यदि आप अपनी दुकान या बाज़ार जलमग्न होने की बात करें तो जवाब मिलेगा कि डी सी ऑफ़िस, नगर निगम का दफ़्तर,बैंक मुख्यालय डूबा हुआ है आपको बाज़ार व अपनी दुकान की पड़ी है? यदि आप कहें कि बसअड्डा पानी से भरा हुआ है तो जवाब मिल सकता है कि रेल लाइनें पानी में डूबी हैं,हवाईअड्डा में पानी भर गया, हवाई अड्डे की छत बारिश में गिर गयी तो बस अड्डा क्या चीज़ है? यदि कहीं कोर्ट कचेहरी या अन्य भवन टपकता मिले तो जवाब मिल सकता है कि अरे भाई अयोध्या में भगवान राम का नवनिर्मित मंदिर टपक रहा है। जब भगवान का घर बारिश में सुरक्षित नहीं तो अन्य भवनों की बात ही क्या करनी? 

      गोया हालात अब ऐसे हो गए हैं कि हर साल अख़बारों व टीवी में जनता की इस तरह की परेशानियों की ख़बरें प्रकाशित प्रसारित होती रहती हैं परन्तु कोई कार्रवाई नहीं कोई सुनवाई नहीं। इसका सबसे प्रमुख कारण यही है कि भुग्तभोगी जनता असंगठित है और चतुर राजनीतिज्ञों द्वारा तरह तरह के वर्गों में विभाजित की जा चुकी है। जबकि परेशानी हर ख़ास ो आम को उठानी पड़ती है। दूसरी तरफ़ इस दुर्व्यवस्था का ज़िम्मेदार वर्ग चाहे वह मंत्री,सांसद ,विधायक हो ,प्रशासनिक व स्थानीय निकाय के अधिकारी हों या फिर उनसे जुड़ा ठेकेदार तब्क़ा यह सभी संगठित होकर भ्रष्टाचार को अंजाम देते हैं। और आम लोग ग़रीब अमीर धनाढ्य,अभिजात,धर्म-जाति,सम्प्रदाय,वर्ग,दलीय राजनीति जैसे अनेक वर्गों में बंटे हुये हैं। समाज के इसी विभाजन का लाभ वह संगठित वर्ग उठता है जो जनता के टैक्स के पैसों को तो विकास के नाम पर मिलकर लूटता खाता है परन्तु उसी जनता को उसका लाभ नहीं मिल पाता जो देश की अनेक आधारभूत सुविधाओं के लिये  टैक्स तो अदा करती है परन्तु वह सुविधाएँ उसे मिल नहीं पातीं। कहना ग़लत नहीं होगा कि जब तक हमारा समाज असंगठित व विभाजित रहेगा इसी तरह संगठित सत्ताधारियों व शासकों द्वारा हमेशा असुविधाओं का सामना करता रहेगा तथा यूँही लुटता रहेगा।

(तस्वीर साभार निर्मल रानी द्वारा )   

                                                                                  

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