राजद्रोह के फांस में फसी अरूंधति रॉय

राष्ट्र चिंतन
 

 आचार्य विष्णु श्रीहरि

 

एक बहुत बड़ी खबर आयी है कि अरूंधति राॅय राजद्रोह के फांस में फस गयी है। उन पर राजद्रोह सहित कई संहिताओं के अधीन मुकदमें दर्ज हो चुके हैं, जिनकी सक्रियता भी त्रीव होगी। अरूंधति राॅय पर भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं 124 ए राजद्रोह, 253 ए विभिन्न् वर्गो के बीच अफवाह फैलाने और दुश्मनी फैलाने, 153 बी राष्टीय एकता के लिए हानिकारक कदम , 504 शांति भंग करने के लिए उकसाना, 505 विद्रोह करने के लिए उकसाना और अफवाह फैलाना आदि के तहत मुकदमें दर्ज किये गये हैं। उन पर गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम भी लगाया गया है। गैरकानूनी गतिविधियां यानी यूएपीए लगने पर आरोपी को जमानत मिलने में कठिनाई होती है और कई-कई महीने जेल में रहना पडता है। दिल्ली के उपराज्यपाल ने अरूंधति रॉय  पर मुकदमा चलाने की स्वीकृति दी है और दिल्ली पुलिस का आदेश दिया है कि अरूंधति राॅय पर दर्ज मुकदमों की जांच और सुनवाई त्रीव होनी चाहिए। दिल्ली पुलिस के पास करीब 14 साल से यह प्रकरण लंबित था और त्रीव सुनवाई से वंचित था। इतने लंबे समय तक यह प्रकरण लंबित क्यों था, दिल्ली पुलिस त्रीव सक्रिय क्यों नहीं थी? जानना यह जरूरी है कि यह प्रकरण कोई आज का नहीं है बल्कि 2010 का है। 2010 में देश में नरेन्द्र मोदी का शासन नहीं था बल्कि कांग्रेस और मनमोहन सिंह-सोनिया गांधी का शासन था। राजद्रोह का प्रकरण अगर कश्मीर, नक्सलियों, देशद्रोहियों की करतूत से जुडा हुआ तो कांग्रेस के नेता और सरकारें खामोश ही रहती हैं। जैसे राहुल गांधी ने जेएनयू जाकर टूकडे-टूकडे गिरोह की भारत विरोधी अभियान और भारत विध्वंस की मानसिकता पालने वालों को सलाम किया था वैसे ही सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के लिए अरूंधति रॉय

 आईकाॅन हुआ करती थी, आज भी कांग्रेस अरूंधति राॅयों पर फिदा रहती है। देश के खिलाफ बोलने और देश का संहार करने की मानसिकता रखने वाले लोग कांग्रेस के प्रिय कैसे हो सकते हैं?

                 21 अक्टूबर 2010 को अरूंधति राॅय ने राजद्रोह की सभी हदें्र पार की थी। उस दिन दिल्ली में भारत विरोधियों ने एक सेमिनार का आयोजन किया था। सेमिनार का नाम था आजादी द ओनली। इस विषयक समेनिार में अरूंधति ने लंबा-चैडा भाषण दिया था, यह कहिए कि उसने इस सेमिनार का इस्तेमाल भारत के खिलाफ विषवमन के लिए किया था, पाकिस्तान को खुश करने के लिए किया था। अरूंधति राॅय के साथ सैयद अली शाह गिलानी, शेख सौकत हुसैन और वरवर राव जैसे भारत विरोधी लोग भी थे। इस सेमिनार में अरूंधति राॅय ने सरेआम कहा था कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग नहीं है, कश्मीर का आंदोलन आजादी का आंदोलन है, कश्मीर के आंदोलन को आतंकवाद और हिंसा नहीं कहा जा सकता है? भारत ने सात लाख सैनिकों को खडा कर कश्मीर पर कब्जा कर रखा है। अरूंधति राॅय को कश्मीर से भगाये गये पांच लाख से अधिक कश्मीरी पंडित परिवारों और सैकडों कश्मीरी पंडितों की हुई हत्याएं याद ही नहीं आयी थी। इसके अलावा समय-समय पर अरूंधति राॅय कभी आदिवासियों तो कभी मुसलमानों को भडकाती रहती है, इनके उत्पीड़न की अफवाह फैलाते रहती है। 

           अरूंधति राॅय राजद्रोह के मुकदमें जो फंसी है उसके पीछे कश्मीर पीड़ित सुशील पंडित की वीरता और संघर्ष है। सुशील पंडित कश्मीरी पीडित हैं और कई सालों से कश्मीर में पंडितों के साथ हुई कत्लेआम की घटना को लेकर संघर्षरत हैं और अभियानी हैं। दिल्ली पुलिस में सुशील पंडित ही एफआईआर दर्ज करायी थी। सुशील पंडित कहते हैं कि कश्मीर में भारत विरोधी मुस्लिम आतंकवाद के भीषण प्रताडना के लिए अरूंधति राॅय जैसे तथाकथित बुद्धिजीवियों की भूमिका भी काफी खतरनाक होती है। अरूंधति राॅय जैसे देश में सैकडों बुद्धिजीवी ऐसे हैं जो भारत में रहकर और भारत की उदार राज व्यवस्था का लाभ उठाकर भारत की ही कब्र खोदते हैं। यहां पर हम गुलाम फई का प्रसंग जोडना चाहूंगा। गुलाम फई एक भारतीय मूल का मुस्लिम है जिसने अमेरिका की नागरिकता ग्रहण की थी, इसके बाद उसने भारत विरोधी जिहाद पर काम कर रहा था, पाकिस्तान का मोहरा बन गया था। गुलाम फई ने भारतीय बुद्धिजीवियों की ईमानदारी, नैतिकता और राष्टभक्ति खरीदी थी, उसने अमेरिका भ्रमण और करैशी का पासा फेका था जिसमें गौतम नवलखा सहित दर्जनों भारतीय बुद्धिजीवी फंसे थे। नवलखा जैसे भारतीय बुद्धिजीवी गुलाम फई के मोहरे बन कर अमेरिका जाते और पाकिस्तान का गुणगान करते, भारत की कब्र खोदते। प्रसंग उजागर होने के बाद गुलाम फई को अमेरिका ने जेलों में डाल दिया था जहां पर गुलाम फई को कई महीने जेलों की चहारदिवारी में कैद रहना पडा था। गुलाम फई को अमेरिका ने सजा दे दी पर गुलाम फई और पाकिस्तान के मोहरे भारतीय बुद्धिजीवियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, वे आज भी भारत के खिलाफ खुलेआम बोलते हैं।

                अरूंधति राय के राजद्रोह का लेखा-जोखा बहुत ही जहरीला है, भारत की एकता और अखंडता को सिर्फ चुनौती देने वाला ही नहीं है, बल्कि भारत की एकता और अखंडता का संहार करने वाला है, एक सजग नागरिक होने के कर्तव्य का घोर उल्लंधन है, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि उसकी सक्रियता से ऐसा लगता है कि वह भारतीय नागरिक ही नही बल्कि पाकिस्तानी नागरिक है, भारत के विकास से घृणा करने वाली है, भारत की समृद्धि से नफरत करने वाली है, भारत के लोकतंत्र को वह गैर जरूरी मानने वाली है, देशद्रोहियों को वह सीधे समर्थन करती है, कश्मीर के आतंकवाद को वह आजादी की लडाई मानने वाली है। वह कहती है कि कश्मीर भारत का अंग कभी नहीं रहा है। यह सरासर गलत है। यह लाइन किसका है? यह लाइन पाकिस्तान का है, यह लाइन पाकिस्तान पोषित आतंकवाद का है, यह लाइन भारत को इस्लामिक देश में तब्दील करने के ख्याल से सकिय मुस्लिम संगठनों का है। अरूंधति राॅय की यह लाइन और मानसिकता सच से परे है यानी की झूठ है, पाकिस्तानी मानसिकता है। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग रहा है। वह कैसे? अंग्रेजों ने भारत छोडने के पूर्व राजवाडों को इच्छा का विकल्प दिया था। राजवाडे किसी भी तरफ शामिल हो सकते थे। राजा हरि सिंह ने भारत कों विकल्प चुना था और उसने अपने राज्य का भारत में विलय किया था। राजा हरि सिंह का विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के साथ ही साथ कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन चुका था। इसलिए अरूंधति के तर्क को स्वीकार नहीं किया जा सकता है, अरूंधति सिर्फ अफवाह फैलाती है और भारत विरोध की मानसिकता का सरेआम प्रदर्शन करती है।

                    कश्मीरी आतंकवादियों के साथ अरूंधति के रिश्ते जगजाहिर है। कश्मीर के जितने भी बडे नेता हैं वे किसी न किसी समय में आतंकवादी जरूर रहे हैं, उनके हाथ निर्दोष और शांति के प्रतीक कश्मीरी पंडितों के खून से रंगे हुए हैं। हुर्रियत की वह एक तरह से समर्थक ही नहीं बल्कि प्रवक्ता भी है। क्योंकि हुर्रियत का जो रूख है वही रूख उसकी भी रहा है। हुर्रियत नेता खुद यह स्वीकार कर चुके हैं कि वे कभी न कभी आतंकवाद के रास्ते पर थें। हुर्रियत के कई नेता अभी भी जेलों में बंद जिनके खिलाफ खून और कत्लेआम के घिनौने आरोप हैं। ऐसे आतंकवादियों और अपराधियों का साथ देना कानूनी रूप से सही है क्या? वह मानवतावादी होने का ढांेग रचती है। अगर वह मानवतावादी होती तो निश्चित तौर पर कश्मीरी पंडितों की पीडा भी उनके विमर्श में शामिल होता और कश्मीरी पंडितों की हुई हत्याएं भी उन्हें चिचलित करता। लेकिन उन्होंने एक बार भी कश्मीरी पंडितों की हुई हत्याओं के लिए कश्मीरी आतंकवादियों की करतूत की आलोचना नहीं की है।

        राष्ट की कब्र खोदने वालों और राष्ट की एकता-अखंडता का संहार करने की मानसिकता रखने वालों को कभी भी न तो बढावा दिया जाना चाहिए और न ही कानून उन पर खामोश रहना चाहिए। कानून के खामोश रहने पर ही अरूंधति रायों की दुकानदारी चलती है, भारत के खिलाफ बोलने पर ही इनकी दुकानदारी समृद्ध होती है। पाकिस्तान और यूरोप व अमेरिका से पैसे मिलते हैं, मस्ती के लिए टूर पैकेज मिलते हैं, फेलोशिप मिलते हैं, पुरस्कार मिलते हैं। अगर विदेशी सहायताएं रोक दी जाये तो फिर अरूंधति राॅय जैसों की भारत विरोधी मानसिकताएं खुद ब खुद दम तोड देंगी।