मध्यप्रदेश की सरकार को मैं हृदय से बधाई देता हूं। हिंदी दिवस पर उसने अपने इंजीनियरी के छात्रों को अनुपम भेंट दी है। मप्र के लगभग 200 इंजीनियरी कालेजों के छात्र अब चाहें तो अपनी परीक्षा हिंदी माध्यम से दे सकेंगे। मप्र के ये सब काॅलेज राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं। अब तक अन्य प्रदेशों की तरह इंजीनियरी की पढ़ाई और परीक्षाएं मप्र में भी सिर्फ अंग्रेजी में होती थीं। इसी वजह से हजारों बच्चे पढ़ाई अधबीच में ही छोड़ देते थे। उनके माता-पिता लाखों रु. उनकी शिक्षा, छात्रावास और परिवहन पर खर्च करते थे लेकिन अंग्रेजी के अड़ंगे की वजह से वे असहाय थे। यह मार सबसे ज्यादा सहनी पड़ती थी, ग्रामीण, गरीब, पिछड़े और आदिवासी छात्र-छात्राओं को और उनको भी जो शहरी होते हुए भी हिंदी माध्यम से पढ़े हैं। स्कूली शिक्षा मंत्री दीपक जोशी और उप-कुलपति पीयूष त्रिवेदी इस पहल के लिए प्रशंसा के पात्र हैं लेकिन मैं इन दोनों से कहूंगा कि वे इंजीनियरी की परीक्षा ही नहीं, पढ़ाई भी हिंदी में करवाना शुरु करें। सिर्फ इंजीनियरी ही क्यों, मेडिकल, कानून तथा अन्य सभी तकनीकी विषयों की पढ़ाई हिंदी में शुरु करवाएं। दुनिया के किसी महाशक्ति राष्ट्र में इन विषयों की पढ़ाई विदेशी भाषा में नहीं होती। स्वभाषा में होती है। भारत और पाकिस्तान जैसे पूर्व-गुलाम राष्ट्रों की बात जाने दें, दुनिया के सभी उन्नत राष्ट्रों में पीएच.डी. तक की पढ़ाई अपनी भाषाओं में ही होती है।
यदि मुख्यमंत्री शिवराज चौहान हिम्मत करें तो पहले समस्त हिंदीभाषी राज्यों के मुख्यमंत्रियों का एक सम्मेलन भोपाल में बुलाएं और उनसे अपने-अपने राज्यों में समस्त तकनीकी विषय हिंदी में पढ़ाने का संकल्प करवाएं। फिर अन्य राज्यों को भी संभालें। साथ-साथ केंद्र की सभी नौकरियों की भर्ती से अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म करवाएं। भोपाल में बने ‘अटलबिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय’ को शिक्षा की इस क्रांति का प्रेरणा-स्थल बनाएं। यदि शिवराज यह कर सकें तो उनका नाम भारत के इतिहास में कई प्रधानमंत्रियों से अधिक सम्मानित हो जाएगा। यदि हम भारत को विश्व-शक्ति बना हुआ देखना चाहते हैं तो हमें सबसे पहले हमारी शिक्षा-व्यवस्था को सुधारना होगा। किसी भी देश की शिक्षा-व्यवस्था को सुधारने का पहला मूल-मंत्र है, शिक्षा का माध्यम स्वभाषा को ही रखा जाए।