काबुल में जिनका नर-संहार हुआ है, उन्हें ‘हजारा’ लोगों के नाम से जाना जाता है। हजारा लोगों को चंगेज खान का वंशज माना जाता है। वे फारसी बोलते हैं, पश्तो नहीं। पश्तो पठानों की भाषा है, जो प्रायः सुन्नी संप्रदाय को मानते हैं। हजारा शिया होते हैं। इन हजारा लोगों का ईरान से लगाव ज्यादा है, क्योंकि ईरान फारसीभाषी है और शिया है।
इसके बावजूद 5-6 लाख हजारा लोग आजकल पाकिस्तान में रह रहे हैं। अफगान जनसंख्या में लगभग एक-चौथाई हिस्सा इन्हीं का है। अफगानिस्तान में संख्या की दृष्टि से सबसे ज्यादा पठान, फिर ताजिक और उसके बाद हजाराओं का नंबर आता है। ये लोग प्रायः मध्य-अफगानिस्तान के बामियान नामक इलाके में रहते हैं।
बामियान वही है, जहां भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा पहाड़ों में खुदी हुई थी और जिसे तालिबान ने तोड़ डाला था। बामियान काफी पिछड़ा हुआ इलाका है। काबुल का यह हत्या-कांड इसी बामियान को लेकर हुआ है। हजारा लोग हजारों की संख्या में इकट्ठे होकर काबुल में इसीलिए प्रदर्शन कर रहे थे कि जो बहुत बड़ी पावर-लाइन बन रही है, उसे बामियान में से नहीं ले जाया जा रहा है। इस इलाके में बिजली का अकाल है। लोग बेहद गरीब हैं। वे काबुल, कंधार और हेरात जैसे शहरों में जाकर पठानों और ताजिकों के घरेलू नौकरों की तरह काम करते हैं। बहुत कम हजारा लोग शिक्षित हैं, संपन्न हैं या राजनीति में हैं। सिर्फ सुल्तान अली किस्तमंद नामक हजारा बबरक कारमल के जमाने में प्रधानमंत्री बन सके हैं।
अफगानिस्तान में ‘हजारा’ वैसे ही हैं जैसे भारत में दलित हैं। तालिबान ने उन पर जबर्दस्त जुल्म किए थे। अब इस्लामी राज्य (दाएश) के आतंकियों ने काबुल में 80 से ज्यादा हजारा लोगों को मार डाला है। पिछले साल नवंबर में भी जाबुल में जब हजाराओं को मारा गया तो काबुल में जबर्दस्त विरोध-प्रदर्शन हुए थे। तालिबानी नेता हजारा लोगों को मुसलमान ही नहीं मानते। ‘दाएश’ के वहाबी लोग यों भी शिया लोगों के खिलाफ हैं। अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी ने इस हत्याकांड का बदला लेने की घोषणा की है। वे बदला क्या लेंगे? वे खुद को और अपनी सरकार को बचाए रखें, यही काफी है।