गत दिनों आई॰ सी॰ सी॰ आर॰ (ICCR) के आज़ाद भवन सभागार में स्वर समर्पण के अध्यक्ष आचार्य अभिमन्यु द्वारा एक कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें एक नयी श्रंख्ला 'गुरू शिष्य माता पिता परम्परा’ को समाज के सामने लाया गया । इस कार्यक्रम में भारत के 8 दिग्गज पदम सम्मान से सम्मानित गुरूओं के पोता शिष्यों ने अपनी प्रतिभा की झलक दिखाई । माता पिता के अथक प्रयासों से जिस प्रकार भारतीय शास्त्रीय कलाऐं आज इन कलाकारों के रूप में आगे बढ़ रही है, उसी को दर्शाते हुए इस अनूठे कार्यक्रम में कलाकारों के माता पिता का सम्मान किया गया ।
पं॰ सुरिंदर सिंह, पं॰ राजेन्द्र प्रसन्ना, पं॰ दालचन्द शर्मा, पं॰ बापूलालजी सिसोदिया, पं॰ देबु चौधरी, पं॰ केलूचरण महापात्र, गुरू जितेन्द्र महाराज व पं॰ शोपम मोधुमंगल सिंह के सभी पोता शिश्यों याशना, अनुराग, रक्षा, स्वास्तिक, दक्षता, कनिश्क, ज़ाकिर, अमान, वरूण, आदिनारायण पति, कौशल झा, ललित, पुनित, अधिराज, अपरा, नितिज्ञान, आयुशी, अपरा, श्री सादानगी, अशलेशा हश्रिता, आत्मिका, सौमया, अनुज्ञा, एन॰ जी॰ नंदा सिंह व एम॰ रोडिसन सिंह ने गायन, बांसुरी, पखावज, सांरंगी व सितार से जहां श्रोताओ को मंत्रमुग्ध किया वहीं ओड़ीसी, कथक नृत्य से भी सभी को आत्मविभोर कर दिया । मणीपुरी वादन एक ऐसी प्रस्तुती रही जिसे देख कर सब वाह वाह कर उठे ।
प्रमुख अतिथी श्री विजेन्द्र गुप्ता (अध्यक्ष, संस्कार भारती), श्री अनुपम भटनागर (विशिष्ट समाज सेवी), श्री सुशांत कुमार सामत (विशिष्ट समाज सेवी), श्रीमती रीता पात्रा (विशिष्ट समाज सेवी) व राम प्रसाद त्रिपाठी (मुख्य सलाहकार) जी थे । मंच संचालन खूबसूरत अंदाज़ में आर॰ जे॰ सचिन द्वारा किया गया।
इस अवसर पर स्वर समर्पण अध्यक्ष आचार्य अभिमन्यु नें भारत वार्ता को बताया कि शास्त्रीय संगीत को पाश्चात्य संगीत व बॉलीवुड संगीत को बहुत खतरा उत्पन्न हो गया है जिसे किसी भी कीमत पर हम सब भारतवासियों को अपने इस पूूर्वजों की परंपरागत संगीत शास्त्रीय संगीत को बचाना है वर्ना ये संगीत सिर्फ इतिहास में ही पढ़ने को मिलेगा। हमें अपने बच्चों को शास्त्रीय संगीत सीखने के लिए प्रेेरित करना चाहिए जिससे बच्चा इसके महत्व को जान सके।