समान आचार संहिता पर कट्टरपंथी मुस्लिम नेताओं और ढोंगी सैक्युलर नेताओं की हाय तौबा महिला विरोधी ,मुस्लिम विरोधी और संविधान विरोधी
नई दिल्ली। तीन तलाक, बहु विवाह, मुस्लिम महिलाओं का भरण पोषण से मनाही और हलाला जैसी बर्बर परंपराओं पर मा. सर्वोच्च न्यायलय द्वारा सम्बंधित पक्षों की राय लेने पर ही कट्टरपंथी मुस्लिम नेताओं, मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और ढोंगी सैक्युलर नेताओ ने जिस तरह की हाय तौबा की है, वह बेहद शर्मनाक है। इन लोगों द्वारा दी गई प्रतिक्रियाएं महिला विरोधी, मुस्लिम विरोधी, मानवता विरोधी और संविधान विरोधी हैं। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने मा. सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाही का राजनीतिकरण तो किया ही है, उन्होंने देश को तोड़ने की धमकी देकर देश को ब्लैकमेल करने का दुस्साहस भी किया है। उन्होंने इस्लाम खतरे में है का नारा देकर जिन्ना की तरह मुस्लिम समाज में अलगाव का बीज पैदा करने का प्रयास भी किया है।
विहिप का स्पष्ट मत है कि भारत के ढोंगी सैक्युलर नेताओं द्वारा कट्टरपंथी मुस्लिम नेताओ का साथ देने से उनके महिला विरोधी और संविधान विरोधी चेहरे का पर्दाफाश हो गया है। अब यह स्पष्ट हो गया है कि चंद मुस्लिम वोटों के लिए वे अब तक जो राजनीति करते रहे हैं, उसके द्वारा वे मुस्लिम समाज का कोई फायदा नहीं कर रहे थे अपितु उनको पिछड़ा रखकर वे अपना उल्लू सीधा कर रहे थे। एक महिला नेता ने जिस प्रकार महिलाओ को प्रताड़ित करने वाली इन बर्बर परम्पराओं की रक्षा में ताल ठोका है, उससे यह स्पष्ट हो गया है कि वामपंथ किसी प्रगतिशीलता और महिला अधिकारों की रक्षा के लिए खड़ा होने वालों का नाम नहीं है। महिला उत्पीडन ही इनका असली चरित्र है। चंद मुस्लिम वोटों के लिए वे मुल्लाओं के साथ खड़े होकर मुस्लिम समाज को पिछड़ा बनाये रखने के षड़यंत्र में बराबर के भागीदार है। वृंदा करात तो स्वयं महिला होते हुए भी महिला उत्पीडन में सहायक बन रही हैं, इससे अधिक विभीषिका क्या हो सकती है।
समान आचार संहिता पर राय लेने का काम भी ला कमीशन द्वारा मा. सर्वोच्च न्यायालय के अन्तर्गत किया जा रहा है। इसके लिए भारत का संविधान स्पष्ट आदेश देता है और मा. सर्वोच्च न्यायालय कई बार अपने निर्णयों में इसके लिए कह चुका है। राष्ट्रीय महत्त्व के इस विषय का राजनीतिकरण करके ये सभी लोग न केवल मा. सर्वोच्च न्यायालय का अपमान कर रहे हैं अपितु संविधान की अवहेलना भी कर रहे हैं। संविधान निर्माता डा. भीमराव अम्बेडकर के विचार इस सम्बंध में क्या थे, किसी से छिपे नहीं है। समान आचार संहिता का विरोध कर वे डा. भीमराव अम्बेडकर के अपमान करने का अक्षम्य अपराध भी कर रहे हैं ।
वे बार -बार एक गलत प्रचार कर रहे हैं कि केंद्र सरकार हिन्दू एजेंडा थोपना चाहती है, अब मुस्लिम समाज को हिन्दू कानून मानने पड़ेंगे। वे यह तथ्य क्यों छिपाना चाहते हैं कि ये कार्यवाही मा. सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर हो रही। क्या वे यह कहना चाहते है कि मा. न्यायपालिका केंद्र सरकार के इशारे पर काम कर रही है ? क्या इस वर्ग का भारत की न्यायपालिका पर भी विश्वास नहीं है ? जब भी इनके मनोनुकूल काम नहीं होता, ये इसी प्रकार न्यायपालिका को कटघरे में खड़ा करने का महापाप करते हैं। याकूब मामले में इनके दुष्प्रचार सबके ध्यान में हैं ही। ये मुस्लिम समाज के मन में अविश्वास निर्माण कर उसे किस मार्ग पर ले जा रहे है ? इन सब लोगो को समझ लेना चाहिए कि ५०% मुस्लिम आबादी अब प्रताड़ना के नरक से बाहर आना चाहती है। अब मुस्लिम समाज में भी सुधार की चाह पैदा हो रही है। वे इसे बाधित न करें। यह सुधार मुस्लिम समाज के हित में है। गोवा में पहले से ही समान आचार संहिता है। वहाँ अभी तक कोई कठिनाई नहीं तो शेष भारत में क्या हो सकती है ?