उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एकाएक पार्टी में बड़े मजबूत दिखाए जा रहे हैं। अखिलेश ने माफिया सरगना मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी की अगुवाई वाली पार्टी कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय रद्द कराके ऐसा दिखाया जैसे उन्होंने माफियाओं और गुंड़ों के खिलाफ बड़ा मोर्चा खोल दिया है। चाचा-भतीजे की इस नौटंकी को जनता भी समझ रही है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले अचानक सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और उनके भाइयों रामगोपाल यादव, शिवपाल यादव और सियासी भाईजान आजम खान को अखिलेश की दमदार मुख्यमंत्री की छवि गढ़ने की जररूत पड़ रही है। अखिलेश के बयान भी ऐसे आ रहे हैं कि जैसे वास्तव में उन्होंने खुद फैसले लेने शुरु कर दिए हैं। माफिया सरगना की पार्टी का पहले एक चाचा सपा में विलय कराते हैं और भतीजा विलय कराने में भूमिका निभाने वाले मंत्री को सरकार से बर्खास्त कर देते हैं। सच तो यही सामने आया है कि बड़ी सोची समझी रणनीति के तहत कौमी एकता दल का सपा में विलय कराया गया। उत्तर प्रदेश सपा के प्रभारी शिवपाल यादव ने कौमी एकता दल का विलय कराया। अखिलेश ने सफाई दी कि विलय बिना उनकी जानकारी हुआ। क्या ऐसा हो सकता है कि मुख्यमंत्री जो प्रदेश सपा के अध्यक्ष भी हैं, उन्हें उनकी पार्टी में दूसरी पार्टी के विलय की जानकारी न हो। यह कोई पहली नौटंकी नहीं है। नौटंकी तो बहुत पहले से जारी है। इससे पहले इसी तरह की नौटंकी 2012 में भी हुई थी। तब अतीक अहमद को सपा में शामिल किया गया। फिर अखिलेश यादव ने उन्हें पार्टी से निकालने की घोषणा की। उस समय भी अखिलेश ने कहा था कि अतीक को चाचा लेकर आये थे, लेकिन मैंने निकाल दिया। अब अतीक अहमद सपा में कैसे हैं।
एक तरफ अखिलेश के चाचा रामगोपाल यादव, शिवपाल यादव और आजम खान से मतभेद बताएं जा रहे हैं। इन मतभेदों का खंडन तो कौमी एकता दल के विलय को रद्द करने के दो दिन बाद रामगोपाल यादव के जन्मदिन पर हुई पार्टी में किया गया। सब ने मिलजुल कर तुम जियो हजारों साल गाना गाकर केट कटवाया और खाया। सारे परिवार ने खुश होकर कहा भी कि हम सब एक हैं। यानी कि अंसारी की पार्टी का विलय और रद्द पूरी तरह से अखिलेश की माफिया विरोधी छवि गढ़ने के लिए किया गया। इसी तरह का सियासी स्यापा राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह से हाथ मिलाने के नाम पर मचाया गया। अखिलेश ने अजित सिंह से दोस्ती पर एतराज जताया। शिवपाल सिंह यादव ने सांप्रदायिक ताकतों से मुकाबले के लिए रालोद-सपा गठबंधन की जरूरत बताई तो पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता रामगोपाल यादव ने आरोप जड़े कि अपनी विश्वसनीयता खो चुके रालोद अध्यक्ष अजित सिंह से हाथ मिलाना सपा के लिए समझदारी भरा नहीं होगा। अखिलेश और रामगोपाल के विरोध के बावजूद अजित सिंह की मुलायम से दोस्ती हो गई। राज्यसभा चुनाव में रालोद के विधायकों ने सपा उम्मीदवारों का समर्थन भी किया। आखिर किसकी चली। मुलायम सिंह की ही चली। भाजपा के अध्यक्ष श्री अमित शाह ने सही कहा कि उत्तर प्रदेश में साढ़े तीन मुख्यमंत्री काम कर रहे हैं। उन्होंने एक रैली में कहा था कि यूपी में दो चाचा मिलकर एक मुख्यमंत्री, एक अखिलेश खुद हैं, तीसरे नेताजी मुलायम सिंह यादव और आधे मुख्यमंत्री आजम खान हैं। साढे तीन मुख्यमंत्री जहां शासन करते हों, उस प्रदेश का कभी विकास नहीं हो सकता। सपा नेताओं ने इसी तरह की बयानबाजी और नाराजगी अमर सिंह को सपा में लाने और राज्यसभा में भेजने के दौरान की गई। बेनी प्रसाद वर्मा को लेकर यही सियासी नाटक खेला गया। यह बताना भी जरूरी है कि उत्तर प्रदेश में राजनीतिक विरोधियों को निपटाने का खेल एक समय में इंदिरा गांधी ने शुरु किया था। इसके बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने भी माफिय़ाओं का सहारा लिया। माफिया सरगना डी पी यादव को बढ़ाने में सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह ने पूरी मदद की थी। हालत तो यही है कि जिलों में आपराधिक वारदातों को अंजाम देने वालों को सपा नेताओं का संरक्षण मिला हुआ है।
माफिया और गुंडा विरोधी छवि गढ़ने के लिए अखिलेश यादव सियासी नौंटकी तो रच रहे हैं पर ऐसे तत्वों को काबू करने में पुलिस के हाथ बांध रखे हैं। हालत यह है कि अखिलेश एक तरफ माफिया सरगनाओं के खिलाफ कार्रवाई करने का संदेश देते हैं तो दूसरी तरफ छोटे-छोटे गुंडे पुलिस के बड़े अफसरों को गोली मार रहे होते हैं। पिछले महीने में ही उत्तर प्रदेश में एक पुलिस अधीक्षक सहित तीन दरोगाओं की हत्या हुई है। दो दरोगा तो 24 घंटे में ही मारे गए। जनता सहमी हुई है, गुंडे बैखोफ हैं और पुलिस वाले लाचार हैं। हालत इतने भयावह हैं कि अखिलेश के राज में पुलिस वालों पर 90 हमले हो चुके हैं। उत्तर प्रदेश में पुलिस वाले लाचार इसलिए भी हैं कि जिलों में तैनात कप्तान और थानों में दरोगा आला अफसरों पर भारी पड़ रहे हैं। ज्यादातर जिलों में यादवों को पुलिस की कमान सौंपी गई है। यही हाल थानों का है। ज्यादातर थानों में यादव दरोगा ही मिलेंगे। पुलिस वालों को केवल कमाई से मतबल है, गुंडों के खिलाफ कार्रवाई से नहीं। गुंडों के सताये लोग एक अफसर के पास से दूसरे अफसर तक जाकर गुहार लगाते हैं और कहीं कोई सुनवाई नहीं होती है। गुंडाराज का सबसे बड़ा उदाहरण मथुरा और कैराना की घटनाएं हैं। आतंकी हमले के मद्देनजर अति संवेदनशील धार्मिक नगरी मथुरा में वन विभाग के पार्क में सपा नेताओं की शह पर एक सनकी कब्जा कर लेता है. अपनी सेना को प्रशिक्षण देता रहता, हथियार जमा होते रहते हैं। पुलिस कार्रवाई करती है तो हमला किया जाता है और एक पुलिस अधीक्षक और दरोगा मारे जाते हैं। मथुरा की घटना का सच सामने आने से रोकने की कोशिश हो रही है। इतना तो पूरी जनता जान गई है कि यह सब सपा नेताओं की शह पर हुआ। इसी तरह कैराना और अन्य शहरों से गुंड़ों के डर से घर-बार छोड़ने वालों के दर्द को अफसरों और पुलिसवालों के दम पर दबाया जा रहा है। कैराना से गुंडों के आतंक के डर से पलायन करने वालों की सुनवाई न करके सरकार पीड़ितों के साथ अन्याय कर रही है। सरकार की ऐसी नीयत से ही गुंड़ों और बदमाशो के हौंसले बुलंद हो रहे हैं। इसी तरह की गुंडागर्दी के कारण सपा को जनता पहले भी सत्ता से बेदखल कर चुकी है। सपा नेताओं को यह तो दिखाई दे रहा है कि उनकी पार्टी हालत उत्तर प्रदेश में लगातार पतली होती जा रही है। कानून-व्यवस्था की लचर हालत के कारण जनता त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रही है। पूरे प्रदेश में बिजली-पानी की किल्लत के कारण लोग परेशान हैं। रमजान के दौरान राज्य के कई शहरों में मुसलमानों ने नाराजगी भी जताई। मुसलमानों के हितैषी होने का दावा करने वाले मुलायम और अखिलेश उन्हें रमजान के पवित्र महीने में भी बिजली नहीं दे पा रहे हैं। सडकों की हालत खराब है। हालत यह है कि केंद्र से भेजे गई धनराशि का भी उत्तर प्रदेश सरकार इस्तेमाल नहीं पा रही है। केंद्र सरकार को योजनाओं को उत्तर प्रदेश में सपा सरकार लागू नहीं कर रही है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को राज्य में लागू न करने के कारण तबाह हुए किसानों को लाभ नहीं मिला। एक तरफ मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के हिस्सों को देखिए और दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के। मध्य प्रदेश के किसानों को सिंचाई के लिए पूरा पानी मिल रहा है। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के किसान पलायन कर रहे हैं। यह है भाजपा सरकार और सपा सरकार के बीच का अंतर। न गुण्डाराज न भ्रष्टाचार अबकी बार भाजपा सरकार, यह नारा इस बार उत्तर प्रदेश में साकार होने वाला है।
लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मुद्दो पर बेबाक राय के लिए जाने जाते हैं।