अभी अभी दिल्ली में नारी सम्मान की रक्षा के लिए एक बड़ा आंदोलन उफान पर आया और बिफर गया। दिल्ली में एक पीड़ित लड़की के पक्ष में शुरू किये गये इस आंदोलन की न सिर्फ शुरूआत वामपंथी छात्र संगठनों की पहल पर हुई बल्कि कई वाममार्गी विचारकों ने लिख पढ़कर इसका श्रेय भी लिया कि वाम विचार ही आंदोलनों की अगुवाई करनेवाला विचार रखता है। आंदोलन की यह बात अपनी जगह लेकिन क्या नारीवाद की जो दुहाई वामपंथी विचारक और समर्थक दिल्ली में दे रहे हैं दूर दराज के उनके समविचारी क्रांतिकारी ही उनकी बात से कोई इत्तेफाक रखते हैं? जमीनी हालात कह रहे हैं- नहीं। कभी सामंतवादी व्यवस्था के खिलाफ शुरू हुई क्रांति नाना प्रकार के शोषण की अंतहीन दास्तान बनकर रह गया है जिसमें नारी देह का शोषण सबसे प्रमुख है। कुछ घटनाओं को जोड़कर देखने से यह साबित होता है कि न सिर्फ नक्सली आंदोलन फ्री सेक्स के फंदे में फंसता जा रहा है, बल्कि आदिवासी इलाकों में लड़कियों के शोषण में भी नक्सली और माओवादी शामिल पाये जा रहे हैं।
घटना नवंबर 2012 की है। छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले की पुलिस ने मद्देड़ थाना क्षेत्र में 11 और 12 वर्ष की दो ऐसी नाबालिग लड़कियों का मामला दर्ज किया, जिसकी अस्मत के साथ नक्सलियों ने खिलवाड़ किया। दोनों लड़कियों ने नक्सली सदस्य कुड़ियम गुज्जा, नागेश और शिवाजी पर शारीरिक शोषण करने का आरोप लगाया है। ए लड़कियों पुलिस को तब हाथ लगी जब जिला पुलिस बल और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) का सयुंक्त दल मद्देड़ क्षेत्र में गस्त और खोजी अभियान के लिए रवाना हुआ था। क्षेत्र में गांव से लगे जंगल में पुलिस दल को ए दो नाबालिक लड़कियां मिली। पुलिस द्वारा पूछताछ पर लड़कियों ने बताया कि नक्सली मुड़ियम गुज्जा और उसके साथी उन्हें जबरदस्ती अपने साथ ले गए थे तथा जंगल में कुड़ियम गुज्जा, नागेश और शिवाजी ने जबरन उनकी आबरु को तार-तार किया।
दोनों लड़कियों ने यह भी खुलासा किया कि उनके देह शोषण का सिलसिला काफी समय से चल रहा था। नक्सली उन्हें गांव आकर ले जाते हैं। उनसे काम करवाते है तथा डरा-धमका कर जबरन शारीरिक संबंध बनाते हैं। परिवार वालों के द्वारा मना करने पर उन्हें जान से मार डालने अथवा गांव से निकाल देने की धमकी देते हैं। लड़कियों ने बताया कि वे अपने गांव वापस नहीं जाना चाहती हैं तथा वे कभी स्कूल नहीं गई है अब आश्रम में रहकर पढ़ना चाहती है। जिला के पुलिस अधीक्षक प्रशांत अग्रवावल कहते हैं कि लड़कियों द्वारा इसकी जानकारी देने के बाद पुलिस दल ने उन्हें सुरक्षित बीजापुर पहुंचाया तथा उनकी रिपोर्ट पर दो नवंबर को नक्सलियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। दोनों लड़कियों की मेडिकल जांच में उनके शारीरिक शोषण किए जाने की पुष्टि हुई। जिला पुलिस अधीक्षक ने बताया कि पूछताछ के दौरान लड़कियों ने जानकारी दी है कि उनके जैसी और भी कई लड़कियां हैं जिन्हें गांव से नक्सली अगवा कर अपने साथ ले जाते हैं तथा उनका शारीरिक शोषण करते हैं। लड़कियों के माता पिता द्वारा इसका विरोध किए जाने पर उन्हें गांव से बाहर निकाल देने की धमकी देते हैं। नक्सलियों ने गांव वालों को लड़कियों को पढ़ाने के लिए मना किया हुआ है। फिलहाल पुलिस ने दोनों लड़कियों के पुर्नवास और शिक्षा के लिए समुचित व्यवस्था कर रही है।
मासूम लड़कियों के यौन शोषण की यह हकीकत तब सामने आई जब पुलिस ने उन्हें पकड़ा। छत्तीसगढ़ के नक्सली इलाकों की हकीकत यह है कि नक्सल इलाकों में आदिवासियों की बेटियां नहीं पढ़ पा रहीं। घरों में कैद इन नन्ही जानों पर नक्सलियों का कहर बरप रहा है। नक्सली न केवल इनका यौन शोषण कर रहे हैं बल्कि इन लड़कियों का इस्तेमाल नक्सली क्षेत्र में तैनात सुरक्षाकर्मियों को फंसाने के लिए भी प्रशिक्षित कर रहे हैं। केंद्रीय गृहमंत्रालय को मिली सूचना के अनुसार नक्सली 12 से 16 साल की लड़कियों का इस्तेमाल जहां सुरक्षाकर्मियों को फंसाने के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं वहीं नक्सली नेता इनका यौन शोषण भी कर रहे हैं। लड़कियों को नहीं भेजने वाले परिवार को जान से मारने की धमकी जा रही है। यही कारण है कि नक्सली बारी-बारी से अपनी भर्तियों में लड़कों के अलावा बाल-संघम में लड़कियों को भी सशस्त्र प्रशिक्षण दे रहे हैं। गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार गोंडी भाषा में मिले कुछ कागजातों के हवाले से मिली जानकारी में यह साफ है कि नक्सलियों ने कुछ लड़कियों को खास तरह से प्रशिक्षित किया है ताकि समय पर वे सुरक्षाकर्मियों को उनके ही जाल में फंसा सकें।
गरीब आदिवासी लड़कियों के यौन शोषण की जानकारी पहले झारखंड और पश्चिम बंगाल की महिला नक्सली नेताओं ने दी थी अब छत्तीसगढ़ के बीहड़ में भी स्वीट-प्वाइजन के नाम से कुछ लड़कियों की टीम तैयार की गई है। सियासी रूप से बेहद संवेदनशील माने जाने वाले इस मुद्दे पर खुल कर फिलहाल कोई भी बोलने को तैयार नहीं लेकिन नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर सभी नेता इस बात को मानते हैं गरीब लड़कियों के देह से नक्सली लंबे समय से जबरदस्ती करते रहे हैं। स्थानीय जिला पंचायत और ग्रामीणों के स्तर पर देह शोषण का सच कई बार सामने आ चुका है।
फ्री सेक्स में फंसा आंदोलन
फरवरी, 2009 में किसान आत्महत्या के लिए हमेशा सुर्खिर्यों में रहने वाले विदर्भ के गडचिरौली जिले में नक्सलियों को एक बहुत बड़ा हमला हुआ था। 15 पुलिसकमिर्यों को नक्सलियों ने बेरहमी से तड़पा तड़पा कर मारा था और खुद सही सलामत भागने में सफल हो गए थे। पर बाद में पुलिस ने मौके से और जंगलों की गहन तलाशी में नक्सलियों का कुछ समान बरामद किया था। भागते वक्त नक्सली बड़ी मात्रा में अपना साहित्य और दूसरा सामान छोड़ गए थे। इससे नक्सलियों से जुड़ी कुछ सनसनीखेज बातों का खुलासा हुआ। जो कागजात उसे प्राप्त हुए हैं उसमें कुछ कागजात ऐसे भी थे जो नक्सलियों के शीर्ष नेताओं द्वारा संगठन में बढ़ रहे फ्री सेक्स की चिंता को साफ बयान कर रह थे। इसका मतलब है कि नक्सली संगठन के अंदर भी इस मुक्त यौन व्यवहार को लेकर चिंता व्याप्त है।
मिलती है सेक्स पॉवर की दवा
वर्ष 2011 में भी बिहार और झारखंड में आत्मसमर्पण करने वाली महिला नक्सलियों ने यह स्वीकार किया कि उनके साथ कई पुरुष नक्सलियों ने शारीरिक संबंध बनाएं। झारखंड पुलिस ने नक्सली क्षेत्रों से गर्भनिरोधक सैक्स पॉवर बढ़ाने वाली गोलियां, कडोम आदि भारी मात्रा में बरामद किए थे। जानकार कहते हैं कि नक्सली नीति निर्धारक अपनी लड़ाई को जनआंदोलन का व्यापक रूप देना चाहते हैं। लेकिन इसके लिए संगठन में 40 प्रतिशत महिलाओं का होना आवश्यक है। इसके लिए बड़ी संख्या में महिलाओं को जोड़ा भी गया था। प्रशिक्षण दिया गया। कई हमलों पर महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही। ऐसा नहीं है कि नक्सल आंदोलन से जुड़े शीर्ष लोग इससे अनजान हैं। नक्सली नेता इस बात से चिंतित है जिसकी तस्दीक गढ़चिरौली घटना के बाद बरामद कागजातों से होती है लेकिन यह सच भी सामने आ रहा है कि नक्सल आंदोलन से जुड़कर महिलाएं पछता रही है। संगठन से मोह भंग हो रहा होगा। तभी तो नक्सली नेताओं ने कड़ी चेतावनी देते हुए पुरुष साथियों को महिलाओं से दूरी बनाए रखने की चेतावनी दी है। संयम के नए नियम बने है जिन्हें नहीं मानने पर दंड देने का भी फरमान जारी किया गया है।
40 प्रतिशत महिलाओं को जोड़ने का लक्ष्य अधूरा
इस बात की संभावना से इनकार नहीं की जा सकती है कि नक्सलियों में एड्स की स्थिति गंभीर हो रही है। शीर्ष नक्सल नेता जानते हैं कि सेक्स की लोलुपता में फंस कर संगठन के सदस्य खुद को कमजोर कर रहे है। एचआईवी से ग्रस्त हो रहे है। जंगल में भागते छिपते जांच व इलाज मुिश्कल होगा। यह हकीकत बाहर जाएगी तो संगठन में 40 प्रतिशत महिलाओं को जोड़ने का लक्ष्य कभी पूरा नहीं होगा और लड़ाई कभी जनआंदोलन का रूप नहीं ले सकेगी। दिसंबर 2006 में भी यह खबर आई थी कि विदर्भ के गढ़चिरौली जिले में ही जब नक्सली शिविर पर पुलिस ने छापा मारा तो वहां कंडोम, सेक्स क्षमता बढ़Þाने वाली दवाएं व अश्लील फिल्म की सीडी आदि मिली थी।
एक पर टूटते हैं चार-पांच
करीब पांच वर्ष पहले एक और खबर आई थी। इंद्रा उर्फ पुष्पकला नाम की एक नक्सली महिला ने पुलिस के सामने समर्पण किया था। समर्पण के बाद उसने पुलिस को बताया कि उसके साथ उसके उपकमांडर ने कई बार बलात्कार किया। उसने यह भी बताया कि संगठन में हर महिला कम से कम चार-पांच नक्सलियों के हवस की भूख मिटाने की वस्तु की तरह है। इससे कई महिलाएं गंभीर यौन रोगों से पीड़ित हो जाती हैं। 24 वर्र्षीय सोनू नाम की और नक्सली ने पुलिस को समपर्ण किया और कुछ ऐसी ही कहानी बताई। उसने पुलिस को बताया कि बाली उम्र में ही वह नक्सली आंदोलन में शामिल हो गई। तब उसे इस बात का अंदाजा नहीं था कि यहां उसके अपने ही आबरू तार-तार करेंगे। उसे नक्सली कमांडर से प्यार हुआ। शादी की। पर उसके बुरे दिन तब शुरू हुए जब उसका नक्सली पति पुलिस मुठभेड़ में मारा गया। इसके बाद दूसरे साथियों की केवल निगाहों तक नजर आने वाली यौन लोलुपता हकीकत में सामने आ गई। कई नक्सलियों ने उसके साथ हवस की भूख मिटाई। आखिर सोनू को वहां से भागना पड़ा। पुलिस को समर्पित किया। सोनू ने भी पुलिस को यही बताया था कि संगठन की हर महिला तीन-चार नक्सलियों की की हवस की शिकार होती है।
मौत का जिंदा शिकार
कुछ वर्ष पहले पुलिस ने सुशीला नाम की एक नक्सली सिपाही को पकड़ा था। जब उसे गिरफ्तार किया गया तब वह गंभीर यौन रोग सिफलिस से पीड़ित थी। जानकार कहते हैं कि नक्सली संगठन में शामिल हर महिला की ऐसी ही दर्द भरी कहानी है। उनके मन में संगठन में आने का पछतावा है। पर क्या करें उनके लिए स्थिति सांप छूछूंदर की तरह है। पुलिस को समर्पण करती हैं तो शेष उम्र जेल में बीतने का खतरा है और संगठन में बगावत किया तो उसकी सजा जेल से ज्यादा भयावह होगी। गढ़चिरौली की घटना में पुलिसकमिर्यों को तड़पा तड़पा कर बेरहमी से मारने वाली नक्सली कमाण्डर भले ही महिला थी लेकिन न जाने कितनी महिलाएं हवस का शिकार होकर संगठन में हर दिन खुद तड़प-तड़प कर जिंदा मौत का शिकार हो रही हैं।
प्रेम की सजा नसबंदी
नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ में जंगलों की खाक छान रहे नक्सलियों को प्रेम की भी सजा दी जाती है। नक्सली यहां प्रेम तो कर सकते हैं, लेकिन अपना घर नहीं बसा सकते हैं। कांकेर जिले में आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली कमांडरों के मुताबिक शादी से पहले ही उनकी जबरदस्ती नसबंदी कर दी जाती है। पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने नक्सली नेताओं द्वारा उनके साथ किए जा रहे दुर्व्यहार के बारे में विस्तार से बताया। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली सदस्यों पूर्व बस्तर डिविजन कमेटी के सदस्य सुनील कुमार मतलाम, उसकी पत्नी और कोर कमेटी की कमांडर जैनी उर्फ जयंती, परतापुर क्षेत्र के जन मीलिशिया कमांडर रामदास, उनकी पत्नी पानीडोबिर (कोयलीबेड़ा) एलओएस की डिप्टी कमांडर सुशीला, सीतापुर (कोयलीबेड़ा) एलओएस के कमांडर जयलाल, उसकी पत्नी सीतापुर एलओएस की सदस्या आसमानी उर्फ सनाय और रावघाट में सक्रिय प्लाटून नम्बर 25 की सदस्य सामो मंडावी ने अपनी आपबीती सुनाई। उन्होंने बताया कि जंगल में उनके साथ आंध्र प्रदेश के नक्सली नेता बुरा बर्ताव तो करते ही है साथ ही साथ उन्हें प्रेम करने की सजा भी दी जाती है। सुनील (31 वर्ष) ने बताया कि तीन नक्सलियों ने अपनी पत्नी के साथ आत्मसमर्पण किया है तथा तीनों पुरुषों की शादी से पहले ही नसबंदी कर दी गई है।
जब वह 17 साल का था तब नक्सली उसके गांव पहुंचे और उसे अपने साथ लेकर चले गए। नक्सलियों ने सुशील को प्रशिक्षण दिया और वह सक्रिय नक्सली सदस्य बन गया। इस दौरान वह कई वारदातों में शामिल रहा जिसमें कई पुलिसकर्मी शहीद भी हुए। सुनील ने बताया कि जब वह नक्सली सदस्य के रूप में काम कर रहा था तब उसे चेतना नाट्य मंडल की कमांडर जैनी उर्फ जयंती कुरोटी के साथ काम करने का मौका मिला। जैनी से उसकी जान पहचान हुई और बाद में यह जान पहचान प्रेम में बदल गई। जब सुनील और जैनी ने शादी कर अपना परिवार बसाना चाहा तब नक्सली नेताओं ने उसके प्रेम को स्वीकार कर लिया, लेकिन उसे घर बसाने की इजाजत नहीं दी गई। नक्सली नेताओं ने कहा कि जब सुनील नसबंदी करवा लेगा तभी उसे जैनी के साथ शादी करने की इजाजत दी जाएगी। जैनी को पाने के लिए सुनील ने ऐसा ही किया। यही स्थिति रामदास और जयलाल की भी है। उन्हें भी प्रेम करने की इजाजत तो दी गई लेकिन जब शादी की बारी आई तब उनकी नसबंदी कर दी गई। सुनील ने बताया कि यह बर्ताव उन सभी नक्सलियों के साथ होता है जिन्हें जंगल में किसी महिला नक्सली से प्रेम हो जाता है और वह उससे शादी करना चाहता है।
आंदोलन खतरे में पड़ने का भय
सुनील ने बताया कि नक्सली नेताओं का मानना है कि एक बार शादी हो गई और बाल बच्चे हुए तब नक्सली सदस्य उस बच्चे के अच्छे लालन पालन के लिए घर लौट सकते हैं और उनका आंदोलन खतरे में पड़ जाएगा। इससे बचने के लिए वह पहले पुरुषों की नसबंदी कर देते हैं। पुरुषों की ही नसबंदी करने के कारणों के बारे में पूछने पर सुनील ने बताया कि महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की नसबंदी आसान होती है। कांकेर के पुलिस अधीक्षक राहुल भगत का कहना है कि पुलिस का को इस बात की जानकारी लगातार मिल रही थी कि जंगल में पुरुष नक्सलियों की जबरदस्ती नसबंदी कर दी जाती है। यदि नक्सली सदस्य साधारण जिंदगी जीने और बच्चे के लिए नसबंदी हटाना चाहते हैं तब पुलिस उनकी पूरी मदद करेगी और अपने खर्च पर उनका आपरेशन करवाएगी।