हमारे देश में चिकित्सा और शिक्षा के क्षेत्र में कैसी अराजकता मची हुई है, इसका ताजा उदाहरण बिहार ने उपस्थित किया है। बिहार शिक्षा बोर्ड की 12वीं की परीक्षा में सर्वोच्च अंक पाने वाले 14 छात्र-छात्राओं को दुबारा परीक्षा देनी पड़ी है। ऐसा इसलिए हुआ है कि इन प्रतिभाशाली छात्रों का कुछ टीवी चैनलों ने इंटरव्यू कर लिया था। इंटरव्यू इसलिए किया गया कि उन्हें जबर्दस्त सफलता मिली थी। उनके इंटरयव्यू से अन्य हजारों छात्रों को प्रेरणा मिलेगी लेकिन हुआ उल्टा ही।
एक छात्रा से पूछा गया कि आपने किस विषय की परीक्षा दी थी तो उसने बताया कि ‘प्रोडिगल साइंस’ की! वह पोलिटिकल साइंस को प्रोडिगल साइंस बता रही थी। जब उससे पूछा कि इस साइंस में आपको क्या-क्या पढ़ाया जाता है तो उसने कहा कि खाना पकाने की कला सिखाई जाती है याने पाकशास्त्र पढ़ाया जाता है। इसी प्रकार मेरिट लिस्ट में जो लड़का सर्वोच्च स्थान पर था, उससे जब साधारण सवाल पूछे गए तो वह भी बगलें झांकने लगा।
ये सब छात्र वैशाली के विष्णु राय कालेज के हैं। इस कॉलेज के विज्ञान के 646 छात्रों में से 534 प्रथम श्रेणी में पास हुए थे और 96 छात्र द्वितीय श्रेणी में! 646 में से 630 पास और सिर्फ 16 फेल। वाह, कमाल है।
जाहिर है कि हंगामा होना ही था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस कॉलेज की मान्यता रद्द कर दी और सर्वोच्च अंक पाने वालों की परीक्षा दुबारा आयोजित कर दी। 14 में से कुछ छात्र फेल हो गए। इन्हें सौ में से नब्बे नंबर मिले थे। कुछ छात्र भाग खड़े हुए। कुछ बीमार पड़ गए। इसका अर्थ यह नहीं है कि बिहार के सभी स्कूल और कॉलेजों की यह दशा है। किसी जमाने में बिहार के विश्वविद्यालयों का सिक्का काफी बुलंद था लेकिन जातिवाद और रिश्वतखोरी ने बिहार ही नहीं, उप्र, कर्नाटक, आंध्र तथा कुछ अन्य प्रांतों को भी चौपट कर रखा है। वहां मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में भी बड़े पैमाने पर धांधली चलती रहती है। इसी के परिणामस्वरुप कई मरीजों को अपनी जान से हाथ धोने पड़ते हैं और कई भवन व पुल टूट जाते हैं।
इस संबंध में सरकार को काफी कड़ा रुख अपनाना होगा। शिक्षा और चिकित्सा की दुकानों पर टूट पड़ने के लिए एक अलग महकमा बनाना पड़ेगा। इस तरह के अपराधियों के लिए सख्त सजा का प्रावधान करना होगा।