देश की राजधानी दिल्ली का प्रतिष्ठित केंद्रीय विश्वविद्यालय एक बार फिर दक्षिणपंथी सोच रखने वाले नेताओं की आंखों की किरकिरी बना हुआ है। यहां यह बात याद रखनी ज़रूरी है कि देश का यह एक ऐसा प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है जिसने देश को अब तक सैकड़ों मंत्री,सांसद तथा देश के उच्च पदों पर काम करने वाले सैकड़ों अधिकारी,शिक्षक एवं बुद्धिजीवी दिए है। और इस विश्वविद्यालय को इस बात पर गर्व है कि उसके द्वारा प्रशिक्षित किए गए छात्रों ने राष्ट्र की सेवा में अपना अमूल्य योगदान दिया है। आज भी क्या सत्तारूढ़ दल तो क्या विपक्ष और क्या अ$फसरशाही सभी क्षेत्रों में जेएनयू के पूर्व छात्र अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते देखे जा सकते हैं। परंतु इस विश्वविद्यालय का अपना एक स्वभाव यह रहा है कि इसने अपने छात्रों को प्राय: सांप्रदायिक सोच से अलग रखकर राष्ट्र निर्माण तथा लोकहित के संबंध में विमर्श करने की सीख दी है। इस विश्वविद्यालय ने चाहे वह यहां का शिक्षक वर्ग हो या छात्र समुदाय सभी को सांप्रदायिकता व जातिवाद से ऊपर उठकर सोचने की प्रेरणा दी। चूंकि वैचारिक रूप से इस शिक्षण संस्थान में $खासतौर पर यहां के छात्र संघ में वामपंथी चिंतन का बोलबाला रहा है इसलिए इस विचारधारा से सहमति न रखने वाली शक्तियों ने हमेशा से ही जेएनयू को बदनाम करने की पूरी कोशिश की है। कभी इसे माओवादियों का गढ़ बताया गया तो कभी गुंडों व असामाजिक तत्वों का अड्डा कहकर इसे संबोधित किया। और अब एक बार फिर मुट्ठीभर छात्रों की कथित राष्ट्रविरोधी हरकतों को लेकर इसे बदनाम करने यहां तक कि यहां के छात्रों का चरित्र हनन करने की कोशिश की जा रही है।
पिछले दिनों राजस्थान के भारतीय जनता पार्टी के एक विधायक ने शिक्षा के इस विशाल मंदिर को बदनाम करने की साजि़श के तहत कुछ ऐसी बातें कीं जो सीधे-सीधे जेएनयू के सभी छात्र-छात्राओं के चरित्र को संदिग्ध करने वाली थीं। इस भाजपा विधायक ने कहा कि जेएनयू के परिसर से प्रतिदिन देसी शराब की दो हज़ार बोतलें,तीन हज़ार केन और बोतलें,दस हजाऱ से अधिक सिगरेट के टुकड़े,चार हज़ार बीड़ी के टुकड़े दो हज़ार चिप्स व नमकीन के रैपर,तीन हज़ार कंडोम, गर्भ गिराने के पांच सौ इंजेक्षन तथा ड्रग्स का सेवन करने वाले सौ सिल्वर के चमकदार पेपर बरामद होते हैं। उसने यह बताया कि जेएनयू कैंपस में प्रतिदिन पचास हज़ार छोटी व बड़ी हड्डियां प्रतिदिन पाई जाती हैं जो उसके कथनानुसार ‘राष्ट्रद्रोहियों द्वारा चबाकर फेंकी जाती हैं। और इन्हीं सब बातों को आधार बनाकर अब इसी दल के कई नेता विश्वविद्यालय को बंद किए जाने की बात करने लगे हैं। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने जिन्होंने कभी इसी संस्थान को राष्ट्रविरोधी तत्वों का गढ़ बताया था इस बार फिर उन्होंने इस संस्थान को कम से कम चार महीने के लिए बंद किए जाने की बात कही है। गोया राष्ट्रविरोधी नारे लगाने वाले चंद छात्रों के विरोध की आग को इतना अधिक हवा दी जा रही है गोया पूरे का पूरा विश्वविद्यालय दुश्चरिचत्र,राष्ट्रदोही यहां तक कि अय्याशी का अड्डा बन गया हो। जिस विश्वविद्यालय से शिक्षित हुए छात्र देश की सेवा में कार्यरत हों, उस विद्या मंदिर को केवल अपने राजनैतिक पूर्वाग्रह के चलते इस प्रकार बदनाम करना कहां तक उचित है? ऐसे में सवाल यह है कि स्वयं भाजपा के ही विधायक कई बार विधानसभाओं में ब्लू की वीडियो अपने मोबाईल में देखते पकड़े जा चुके हैं। क्या ऐसी विधानसभाओं में ताला लगा देना चाहिए? आए दिन देश में कोई न कोई खबरें ऐसी सुनाई देती हैं जिनसे यह पता चलता है कि अमुक मठ का महंत किसी मंदिर का पुजारी या कोई मौलवी दुराचार,यौनाचार या किन्हीं दूसरी बुराईयों में संलिप्त पाया जाता है, क्या उस दुष्कर्मी की वजह से ऐसे धर्मस्थानों में जहां वह दुष्कर्मी तथाकथित धर्माधिकारी रह रहा हो वहां ताला लगा देना चाहिए या उस स्थान को अय्याशी व दुराचार का अड्डा घोषित कर देना चाहिए?
ऐसी ही बातें देश के एक और दूसरे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान अलीगढ़ विश्वविद्यालय के बारे में भी कही जा चुकी हैं। इस शिक्षण संस्थान को भी कभी सिमी का अड्डा तो कभी आतंकवादियों का गढ़ तो कभी पाक समर्थकों का शिक्षण संस्थान बताया जा चुका है। इस विश्वविद्यालय के भी हज़ारों हिंदू व मुस्लिम आदि सभी धर्मों के छात्रों ने देश की सेवा करने में कोई कसर बा$की नहीं रखी है। आज भी इस विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र स्वंय को बड़े गर्व से अलीगी कहते हैं। परंतु यही विचारधारा जो जेएनयू में अपना सिर उठा पाने में नाकाम रहती है यही लोग क्या जेएनयू तो क्या अलीगढ़ यूनिवर्सिटी ऐसे शिक्षण संस्थानों को बदनाम करने की कोशिश में हमेशा सक्रिय रहते हैं। ऐसे पूर्वाग्रही लोगों के दुष्प्रयासों से यह सा$फ ज़ाहिर होता है कि भारतीय लोकतंत्र में जहां प्रत्येक व्यक्ति को अपनी-अपनी अलग राय रखने का पूरा अधिकार है वहां इन्हें ऐसे लोग या ऐसे शिक्षण संस्थान फूटी आंखों भी नहीं भाते जहां इनकी दक्षिणपंथी विचारधारा को स्थान नहीं मिल पाता। जबकि इसी तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि इस विचारधारा द्वारा संचालित शिक्षण संस्थाओं में संकीर्ण मानसिकता वाली तथा $ऐसी ग़ैर वैज्ञानिक शिक्षाएं दी जाती हैं जिन्हें हासिल कर वहां के छात्र संकीर्ण मानसिकता का शिकार होकर निकलते हैं। इनकी शिक्षण संस्थाओं में दी जाने वाली तमाम शिक्षाएं ऐसी हैं जिसको न तो विज्ञान स्वीकार करता है न ही सामाजिक स्तर पर या तार्किक अथवा तथ्यात्मक ढंग से वह स्वीकार करने योग्य हैं। परंतु चूंकि यह शिक्षण संस्थान दक्षिणपंथी विचारधारा द्वारा संचालित हैं लिहाज़ा इनकी नज़रों में यह ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की सबसे बड़ी नर्सरी हैं। ठीक उसी तरह जैसे किसी मदरसे से निकले हुए बच्चे वैज्ञानिक,समाजिक अथवा सांसारिक दृष्टिकोण से किसी योग्य हो या न हों परंतु उन्हें इस बात का विश्वास ज़रूर रहता है कि संसार में उन्हें कुछ मिले या न मिले परंतु मरणोपरंात उनको जन्नत में जगह तो मिलनी ही मिलनी है।
जहां तक जेएनयू के परिसर से शराब की बोतलें,सिगरेट के पैकेट, कंडोम तथा हड्डियों के टुकड़े आदि मिलने जैसा घिनौना आरोप भाजपा के राजस्थान के विधायक द्वारा लगाने का प्रश्र है तो शायद ही देश का कोई विद्यालय,महाविद्यालय या विश्वविद्यालय कैंपस ऐसा हो जहां इस प्रकार की वस्तुएं न प्राप्त होती हों। ऐसी वस्तुएं तो विभिन्न सरकारी कार्यालयों व सार्वजनिक स्थानों से भी प्राप्त होती रहती हैं। हालांकि इतनी बड़ी सं या में ऐसी वस्तुओं के बरामद होने की बात कहकर भाजपा नेता ने इस विद्यामंदिर को कलंकित करने का प्रयास ज़रूर किया है। उसके इस दुष्प्रयास का प्रभाव यहां पढऩे वाले बच्चों के भविष्य पर उनके मस्तिष्क पर भी पड़ सकता है। परंतु इस सच्चाई से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि जिस देश में अनेक धर्मगुरू अपने पेशे को कलंकित करने वाले कामों में आए दिन संलिप्त पाए जाते हों वहां स्कूल अथवा कॉलेज के वह बच्चे जो टेलीविज़न की दुनिया के दौर से गुज़र रहे हों यदि उनमें कुछ बच्चे पथभ्रष्ट हो जाएं और शराब,सिगरेट,नशे अथवा प्रेम संबंधों का शिकार हो जाएं तो इसका दोष किसी भी शिक्षण संस्थान पर $कतई नहीं मढ़ा जा सकता। क्या ऐसी $गैरजि़ मेदाराना बात करने वाला राजस्थान भाजपा का विधायक जो स्वयं मात्र बारहवीं कक्षा तक पढ़ा हुआ है और वह भी उसके सहयोगी सूत्रों के अनुसार उसने न$कल मार कर दसवीं व बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण की है, यह बता सकता है कि जिस जूएनयू कैंपस में इतनी बड़ी मात्रा में आपत्तिजनक सामग्री प्रतिदिन इक_ी की जाती हो वहां के शिक्षित छात्र आ$िखर मंत्री,सांसद तथा भारतीय विदेश सेवा,भारतीय प्रशासनिक सेवा व पुलिस सेवा जैसे महत्वपूर्ण पदों तक कैसे पहुंंच जाते हैं?
शिक्षा के मंदिरों को कलंकित करने के इस प्रकार के दुष्प्रयास ऐसे ही पूर्वाग्रही व कुंठित मानसिकता रखने वाले लोगों द्वारा किए जा सकते हैं जिन्हें स्वयं कभी कैंपस में पांव रखने का सौभाग्य ही प्राप्त न हुआ हो। इस प्रकार के गैरजिम्मेदाराना व अभद्र आरोप लगाना और वह भी एक सत्तारुढ़ दल के निर्वाचित विधायक द्वारा ऐसी ज़लालत भरी बातें करना न केवल पूरे देश के छात्र समाज की तौहीन है बल्कि इससे उन पूर्व छात्रों की भावनाएं भी आहत होती हैं जो कभी ऐसे शिक्षण संस्थानों का अंग रहे हों। इस प्रकार की बयानबाज़ी करने वाले लोग जो आज राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रवाद का चोला पहने राष्ट्रवाद के सबसे बड़े पैरोकार बने नज़र आ रहे हैं दरअसल ऐसी बातें कर वे स्वयं यह प्रमाणित कर रहे हैं कि दरअसल यह स्वयं राष्ट्रविरोधी हैं। इनकी पार्टी को चाहिए कि वह ऐसे अनपढ़ तथा गैरजि़म्मेदार नेताओं के बेतुके बयानों पर लगाम लगाने की इन्हें हिदायत दे। ऐसी बातें करने वाले नेता को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि उसी विश्वविद्यालय में उसकी अपनी राजनैतिक विचारधारा रखने वाले छात्र व छात्राएं भी शिक्षण ग्रहण करती हैं। और वह भी उसके इस प्रकार के अनर्गल आरोपों के चलते स्वयं को संदिग्ध होने से नहीं बचा सकते। यदि इस विचारधारा के लोगों की नीयत तथा इनकी मंशा में खोट न होता तो इसी दक्षिणपंथी विचारधारा की छात्र इकाई से संबंध रखने वाले जेएनयू के ही कई जि़ मेदार छात्र नेता इनके संगठन से अपना नाता न तोड़ते। परंतु इन छात्र नेताओं ने इनसे संबंध विच्छेद कर और इनकी कुंठित मानसिकता की पोल खोलकर यह साबित कर दिया कि वास्तव में इनके द्वारा देशभक्ति का चोला पहन कर जेएनयू के छात्रों तथा वहां के शिक्षकों व पूरे शिक्षण संस्थान को बदनाम करने कर साजि़श रची जा रही है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं, इससे भारत वार्ता से सहमत होना अनिवार्य नहीं है)