शरद गोविंदराव पवार, अर्थात जिन्हें भारत की जनता शरद पवार यानी NCP के सर्वेसर्वा, भूतपूर्व कृषि मंत्री, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री, बारामती के शुगर किंग एवं क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड तथा ICC के अध्यक्ष वगैरह-वगैरह-वगैरह के नाम से जानती है, ऐसे महान और बुद्धिमान व्यक्ति को कुछ “फ्रॉड टाईप”(??) के व्यक्तियों ने ब्रिटेन की एक रहस्यमयी कंपनी SGFX में बोर्ड सदस्य बना लिया और पवार साहब को पता भी नहीं चला, यानी ऐसे चमत्कार भी कभीकभार हो जाते हैं. 13 दिसम्बर 2010 को शरद गोविंदराव पवार अचानक इस कंपनी के बोर्ड सदस्य बने और मात्र बाईस दिन बाद अर्थात 5 जनवरी 2011 को वे इस पद से हट भी गए. है ना चमत्कार!!!
भाजपा नेता नीरज गुण्डे और डॉक्टर सुब्रह्मण्यम स्वामी द्वारा किए ट्वीट्स के अनुसार ब्रिटेन में रजिस्टर्ड एक कम्पनी जिसका नाम है (बल्कि “था”) SGFX Financial Co. UK Ltd. में शरद पवार साहब चंद दिनों के लिए शामिल हुए थे. जो दस्तावेज ब्रिटिश सरकार को सौंपे गए हैं, उसमें बाकायदा धड़ल्ले से, छाती ठोक के, शरद पवार का पेशा, “भारत सरकार में केन्द्रीय मंत्री” भी लिखा गया है.
“असली रहस्य” यहाँ से शुरू होता है कि, शरद पवार का कहना है कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी और उन्हें धोखे से बोर्ड में शामिल किया गया था. 13 दिसम्बर 2010 को जब SGFX कम्पनी ने अपने दस्तावेज रजिस्ट्रार को सौंपे थे, उस समय उसमें शरद पवार का नाम तीन में से एक निदेशक के रूप में था, इस कंपनी के अन्य दो निदेशक थे सर्वेश नरेंद्र गाड़े और शहनाज़ अशरफ भराड़े. कम्पनी को आरम्भ करते समय बताया गया था कि इस कम्पनी के शुरुआती 500 शेयर रहेंगे जिनकी कुल कीमत सात लाख पाउंड होगी. इन शेयरों में से सर्वेश गाड़े के पास 375 शेयर होंगे और शहनाज़ भराड़े के पास 125 शेयर होंगे (प्रति शेयर कीमत 1401 पाउंड). दो सप्ताह बाद जब शरद पवार जैसे अचानक बोर्ड मेंबर बने, और उसी अचानक तरीके से निकल भी गए, इस दिन अर्थात 5 जनवरी 2011 को कम्पनी ने अपनी प्रस्तुत रिपोर्ट में बताया कि कंपनी ने 4500 शेयर और जारी कर दिए हैं, अर्थात अब कंपनी की कुल कीमत 5000 शेयरों की हो गई है, जिसका मूल्य सत्तर लाख पाउंड हो गया… यह था पहला “चमत्कार”.
कम्पनी की रिपोर्ट के अनुसार 2011 का वर्ष कंपनी के लिए बहुत बेहतरीन रहा, और एक ही साल में कंपनी ने खासी तरक्की कर ली. चमत्कार पर चमत्कार देखिए कि 5 जनवरी 2011 को जो कंपनी सत्तर लाख पाउंड की थी, वह 20 मार्च 2011 को सात सौ करोड़ पौंड की तथा 29 जून 2011 को सत्तर अरब पाउंड की कंपनी बन गई. यानी 5 जनवरी 2011 को शरद पवार के कम्पनी छोड़ने के बाद इस कंपनी ने सिर्फ छह माह में एक लाख गुना की आर्थिक तरक्की कर ली. अगला चमत्कार यह हुआ कि 14 अगस्त 2012 को रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज़ में आवेदन देकर यह कंपनी बन्द कर दी गई. तो फिर यह पैसा कहाँ से आया? किसने यह पैसा लगाया? और फिर अचानक यह भारीभरकम राशि कहाँ गायब हो गई? कंपनी बन्द क्यों और कैसे हो गई? यही तो एक रहस्य है.
इस चमत्कारी SGFX कंपनी के डायरेक्टर सर्वेश गाड़े की सार्वजनिक जीवन में जो सूचना उपलब्ध है, उसके अनुसार ये सज्जन ब्रिटेन की तीन कंपनियों के डायरेक्टर थे, SGFX Financials के अलावा Angel Investments Co UK Ltd. तथा Online Currency Exchange of UK Ltd. गाड़े साहब अपना व्यवसाय “व्यापारी” बताते हैं और “चमत्कारों की इस श्रृंखला” में हमें जानकारी मिलती है कि उपरोक्त तीनों कम्पनियाँ जिनमें गाड़े साहब डायरेक्टर थे, जून 2010 और मई 2013 के बीच बन्द कर दी गईं. दूसरी डायरेक्टर अर्थात शहनाज़ भराड़े का किस्सा भी कुछ-कुछ ऐसा ही है, ये मोहतरमा भी Angel Investments Co UK Ltd. में निदेशक थीं. क्या गजब का संयोग है ना??
ठहरिये… अभी चमत्कार खत्म नहीं हुए हैं. एक और रोचक बात यह है कि जो-जो कम्पनियाँ ब्रिटेन में रजिस्टर की गईं और भारीभरकम संपत्ति के बावजूद तीन साल में ही खत्म कर दी गईं, बिलकुल उन्हीं कंपनियों के नाम से भारत में भी कम्पनियाँ खोली गईं. उदाहरण स्वरूप 5 जुलाई 2013 को Online Currency Exchange of India Ltd. के नाम से कम्पनी खोली गई (U74900MH2013PLC245277) जिसका पता था नवी मुम्बई में वाशी इन्फोटेक पार्क. सर्वेश गाड़े भारत और ब्रिटेन दोनों ही कंपनियों में निदेशक थे, लेकिन मामूली(?) सा अंतर यह था कि भारत में जो कंपनी खोली गई उसमें भराड़े का नाम शहनाज़ भराड़े नहीं, बल्कि शहनाज़ सर्वेश भराड़े था, और भारत की कंपनी में एक और सज्जन भी निदेशक थे, जिनका नाम था राजिन अशरफ भराड़े, जो कि शहनाज़ के भाई हैं. इसी प्रकार SGFX Financials Co of UK Ltd. जैसे ही समान नाम से भारत में जो कंपनी खोली गई उसमें गाड़े और भराड़े के अलावा चिदम्बरेश्वर राव कल्ला नामक सज्जन निदेशक रहे, जो ब्रिटिश कंपनी में भी बोर्ड मेंबर थे. संक्षेप में कहने का तात्पर्य यह है कि कम्पनियाँ खोलने, बन्द करने और अकूत मात्रा में धन की अफरा-तफरी और हेराफेरी करने का यह खेल पता नहीं कब से चल रहा है और भारत की एजेंसियाँ इस मामले में अब तक क्या कर रही थीं यह शोचनीय विषय है. ज़ाहिर है कि सिर्फ पाँच-छः माह में जिस कंपनी की संपत्ति अचानक लाखों गुना बढ़ जाती हो, वह ना तो किसी ईमानदार उद्योगपति की कंपनी हो सकती है और ना ही साधु-संतों की.
मामले में ताजा जानकारी यह है कि शरद पवार ने सर्वेश गाड़े और शहनाज़ भराड़े के खिलाफ धोखाधड़ी के आरोप लगाकर पुलिस में FIR कर दी है, साथ ही EOW (आर्थिक अपराध शाखा) में भी शिकायत दर्ज करवा दी है कि मामले की पूरी जाँच की जाए…
ऐसे में कुछ बेचैन कर देने वाले स्वाभाविक सवाल उठते हैं, वह इस प्रकार हैं…
(१) यह आधिकारिक “हवाला” कब से, कैसे और क्यों चल रहा है?
(२) इसमें “मॉरीशस रूट”, “P-Notes” और यूपीए सरकार के तीनों महान अर्थशास्त्री अर्थात मनमोहन सिंह, चिदंबरम और मोंटेकसिंह अहलूवालिया का क्या रोल है?
(३) क्या शरद पवार की जानकारी एवं अनुमति के बिना उनका नाम डायरेक्टर अथवा बोर्ड मेंबर के रूप में फाईल करने की किसी मामूली व्यक्ति की हिम्मत हो सकती है? यदि नहीं… तो फिर ये गाड़े और शहनाज़ कौन हैं, जिन्हें शरद पवार का, भारतीय कानूनों का, ब्रिटिश कानूनों का कोई डर नहीं है?? शरद पवार तो अत्यधिक “सक्षम” हैं, इसलिए उन्होंने इस धोखाधड़ी के खिलाफ FIR कर दी, कंपनी को कानूनी नोटिस भी दे दिया. लेकिन सोचिये कि जब शरद पवार जैसे व्यक्ति के साथ ऐसा हो सकता है (सच है या झूठ, यह तो जाँच के बाद ही पता चलेगा), तो भारत का सामान्य व्यक्ति जो आए दिन अपने आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर आईडी वगैरह की फोटोकॉपी इधर-उधर थोक में बाँटता रहता है, उसके साथ और उसके दस्तावेजों के साथ कितनी आसानी से फ्रॉड किया जा सकता है, और उसे पता भी नहीं चलेगा.
(४) क्या भारत में सरकार बदलने के बावजूद यह “शक्तिसंपन्न आर्थिक व्यापारी” अब भी बेख़ौफ़ अपना काम कर रहे हैं? यदि हाँ, तो इसका जिम्मेदार कौन है??
सवाल तो कई हैं, लेकिन जवाब कुछ भी नहीं मिलते… यहाँ भारत की जनता 150-200 रूपए किलो दाल के लिए संघर्ष कर रही है और उधर सिर्फ छः माह में किसी रहस्यमयी और चमत्कारी कंपनी की संपत्ति लाखों गुना बढ़ जाती है… क्या इसी को “उदार अर्थव्यवस्था” कहते हैं??