हमारे देश में सक्रिय हिंदूवादी संगठनों द्वारा देश के समस्त भारतवासियों पर थोपा जाने वाला यह फरमान कि यदि भारत में रहना है तो भारतमाता की जय और वंदे मातरम् जैसे नारों का उद्घोष प्रत्येक वर्ग,धर्म व समाज के लोगों को करना ही होगा,यह विषय और अधिक तूल पकड़ता जा रहा है। अब इस विवाद में सिख समुदाय का भी एक वर्ग शामिल हो गया है जिसने हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी द्वारा भारत माता की जय का उद्घोष करने से इंकार करने के कदम का समर्थन किया है। शिरोमणि अकाली दल अमृतसर के अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मान ने कहा है कि सिख समुदाय के लोग भी भारत माता की जय का उद्घोष नहीं कर सकते। मान के अनुसार सिख समाज में किसी भी रूप में महिलाओं की पूजा नहीं की जाती। अत: वे भारत माता की जय के नारे भी नहीं लगा सकते। उन्होंने वंदे मातरम् का नारा लगाए जाने को भी सिख समुदाय की भावनाओं के विरुद्ध बताया। मान ने कहा है कि सिखों को वाहेगुरु जी का खालसा वाहेगुरु जी की फतेह ही बोलना चाहिए। इसी प्रकार भारत माता की जय का उद्घोष न करने वाले तमाम देशभक्त भारतवासियों द्वारा यह सवाल भी किया जा रहा है कि चूंकि भारतवर्ष का नाम उस राजा भरत के नाम पर पड़ा जो हमारी प्राचीन कथाओं के अनुसार राजा दुष्यंत तथा शकुंतला का पुत्र था। लिहाज़ा चूंकि भरत एक पुरुष राजा था फिर उसे भारत माता कहकर संबोधित कैसे किया जा सकता है?
उधर एक वरिष्ठ हिंदू धर्मगुरु ने भी इस विवाद में शामिल होकर भारतमाता तथा वंदे मातरम् जैसे शब्दों के संदर्भ में मुस्लिम समुदाय का पक्ष रखते हुए अपने विचार व्यक्त किए हैं। उन्होंने कहा कि ‘भारतीय मुसलमान भारत माता से निश्चित रूप से बहुत प्यार करते हैं। वही मुसलमान यह भी मानते हैं कि मां के पैरों तले जन्नत होती है। परंतु इसके बावजूद वे अपनी मां की पूजा नहीं करते। बजाए इसके वे अल्लाह की पूजा करते हैं। इसी प्रकार मुसलमान मोहम्मद साहब को अपना पैगंबर तथा नबी मानते हैं और उनका अत्यधिक सम्मान करते हैं। परंतु वे उनकी भी पूजा या वंदना नहीं करते। चूंकि मुसलमान केवल एक अल्लाह अथवा एक ईश्वर की ही वंदना या पूजा करते हैं ऐसे में यदि कोई मुसलमानों से यह कहे कि तुम भारत माता की जय के नारे लगाओ अथवा वंदे मातरम् तुमको कहना ही होगा तो यह कैसे संभव हो सकता है? हिंदू धर्मगुरु ने कहा कि देश पर जब भी कोई संकट आया है मुसलमानों ने सबसे पहले उसका मुकाबला किया है और अपनी गर्दन कटाई है। मुसलमान इस देश से प्यार करता है इसके लिए वह अपनी गर्दन कटा तो सकता है परंतु झुका नहीं सकता क्योंकि वह केवल अल्लाह की वंदना करते हैं।’
परंतु हमारे देश में सक्रिय सांप्रदायिक शक्तियां राष्ट्रहित के चिंतन से ऊपर उठकर अपने सांप्रदायिक एजेंडे को लागू करने पर तुली हुई हैं। यदि हिंदूवादी शक्तियां शब्दों की बाज़ीगरी के द्वारा विभिन्न वर्गों के लोगों को इसमें उलझा कर बहुसंख्यक हिंदू मतों के धु्रवीकरण की कोशिश में लगी हुई हैं तो दूसरी ओर इन शक्तियों का इन्हीं की भाषा में जवाब देकर दूसरे पक्ष के लोग भी इनके शब्दजालों का शिकार होकर इनके मकसद को पूरा करने में इनके सहायक साबित हो रहे हैं। अर्थात् यदि एक पक्ष की जि़द है कि भारत माता की जय और वंदे मातरम् कहना ही होगा तो दूसरी ओर ओवैसी जैसे सांसद यह कहते सुने जा रहे हैं कि चाहे मेरी गर्दन पर छुरी क्यों न रख दी जाए परंतु मैं भारत माता की जय कतई नहीं कह सकता। इसी विवाद को आगे बढ़ाते हुए हिंदुवादी शक्तियां यह ढिंढोरा पीटने लगती हैं कि जो भारत माता की जय नहीं बोलेगा वह राष्ट्रभक्त नहीं है बल्कि राष्ट्रविरोधी है। और इसी पक्ष के कुछ अति उत्साही लोग भारत माता की जय और वंदे मातरम् न बोलने वालों को पाकिस्तान भेजने या देश छोडऩे की सलाह भी देने लगते हैं। तो दूसरा पक्ष यह कहता दिखाई देता है कि उन्हें इन हिंदुवादी संगठनों द्वारा जारी किए जा रहे राष्ट्रभक्ति के प्रमाणपत्र की कोई आवश्यकता नहीं है। और इसी वाद-विवाद तथा शब्दों के मकडज़ाल में यह बहस और भी बढ़ती जा रही है। निश्चित रूप से हमारे देश की सामाजिक एकता,समरसता तथा सांप्रदायिक सौहार्द पर शब्दों की इस बाज़ीगरी का विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।
इस विषय पर जहां तक मेरा निजी संबंध है तो मैं तो न तो भारत माता की जय कहने में कोई परहेज़ करता हूं न ही वंदे मातरम् कहने में मुझे कोई आपत्ति है। मैं तो प्रात:काल जिस समय सैर पर निकलता हूं उस समय मेरे मिलने वाले अधिकांश लोग मुझे राम-राम कहकर मेरा प्रात:कालीन अभिवादन करते हैं और मैं उनके दो बार राम-राम कहने के जवाब में चार बार राम-राम कहता हूं। मुझे तो मंदिर-मस्जिद,गुरुद्वारा तथा चर्च,दरगाह या इमामबाड़ा सभी एक जैसे पवित्र आराधना स्थल नज़र आते हैं। मैं स्वयं को इतना ज्ञानी व बुद्धिमान भी नहीं समझता और न ही अपनी इतनी हैसियत समझता हूं कि मैं अपने अर्धज्ञान से विभिन्न धर्मों अथवा धर्मस्थलों या उनकी शिक्षाओं में अच्छी व बुरी बातों को रेखांकित कर सकूं। परंतु विभिन्न धर्मों के पूर्वाग्रही या कट्टरवादी सोच रखने वाले लोगों की भी हमारे देश में कोई कमी नहीं है। दुर्भाग्यवश ऐसी शक्तियां ऐसे मुद्दों के बहाने सत्ता की राजनीति के क्षेत्र में अपने नफे-नुकसान की तलाश करती रहती हैं। और समाज में नफरत फैलाना,एक-दूसरे की कमियां निकालना,एक-दूसरे पर आरोपों की बौछार करना, एक-दूसरे को अच्छे-बुरे या देशभक्त अथवा देशद्रोही का प्रमाणपत्र देते फिरना इन मानवता विरोधी शक्तियों का पेशा बनकर रह गया है। जो शक्तियां आज मुसलमानों या सिखों पर भारत माता की जय अथवा वंदे मात्रम के नारे जबरन कहलवाने पर तुली हुई हैं और ऐसा न कहने पर उनकी राष्ट्रभक्ति को संदिग्ध प्रचारित करने की कोशिश कर रही हैं वे भगतसिंह,अशफाक उल्ला खां,वीर अब्दुल हमीद तथा डा० ऐपीजे अब्दुल कलाम जैसे देशभक्तों की कारगुज़ारियों को क्या झुठला सकती हैं जिनपर केवल सिख या मुसलमान ही नहीं बल्कि देश का प्रत्येक नागरिक गर्व करता है?
आज हमारी भारतीय सेना में प्रत्येक रेजीमेंट में इसीलिए मंदिर-मस्जिद गुरुद्वारे तथा चर्च की सामूहिक रूप से व्यवस्था की जाती है ताकि भिन्न-भिन्न आस्था तथा विश्वास रखने वाला प्रत्येक सैनिक अपने धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार अपनी वंदना तथा पूजा-पाठ आदि कर सके। वहां कोई किसी को ज़बरदस्ती राम-राम,वाहेगुरु या अल्लाह हो अकबर कहने के लिए बाध्य नहीं करता। और यही जवान जब देश के मोर्चे पर दुश्मनों से रूबरू होते हैं तो कोई भारत माता की जय कहकर उनपर हमलावर होता है तो कोई वाहेगुरु का नाम लेकर दुश्मन पर धावा बोलता है तो कोई अल्लाह-ो-अकबर का उद्घोष कर मैदान-ए-जंग में अपने दुश्मन पर टूट पड़ता है। यही हमारे देश की सांझी तहज़ीब है और इसी सांझी तहज़ीब की विरासत के लिए हमारा देश पूरी दुनिया में सम्मान की नज़रों से देखा जाता है। वहीं दूसरी ओर ओवैसी जैसे पूर्वाग्रही लोगों को भी अपनी सोच में लचीलापन लाने की ज़रूरत है। भारतमाता की जय या वंदे मातरम् कहने से न तो मुसलमानों का विश्वास इस्लाम धर्म से उठ जाएगा न ही वे अल्लाह की नज़र में गुनहगार होंगे और न ही जन्नत पर से उनका ‘अधिकार’ छिन जाएगा। भारतीय मुसलमान दरअसल रहीम,रसखान और मलिक मोहम्मद जायसी जैसे उन भारतीय मुसलमानों की परंपरा का हिस्सा हैं जिन्होंने मुस्लिम होने के बावजूद हिंदू देवी-देवताओं की तारीफ में भजन तथा कसीदे कहे।
भारतीय मुसलमान नवाब वाजिद अली शाह की उस परंपरा के निर्वाहक हैं जिन्होंने 9 मोहर्रम जैसे शोक मनाने वाले अवसर के दिन भी होली का त्यौहार पडऩे पर अपनी हिंदू जनता के साथ होली खेलकर अपने $गम को भुलाकर उनकी $खुशी में शिरकत करना ज़रूरी समझा था। लिहाज़ा धर्म हो अथवा राष्ट्र इस विषय पर किसी भी देशवासी को चाहे वह किसी भी धर्म,संप्रदाय,वर्ग अथवा जाति का क्यों न हो उसे अपनी निजी कुंठा तथा सीमाओं से ऊपर उठकर सोचने की ज़रूरत है। यह देश किसी एक भाषा,एक विचारधारा या एक धर्म अथवा जाति के लोगों की जागीर नहीं है। यह देश यहां रहने वाले प्रत्येक वर्ग के लोगों और यहां जन्मे प्रत्येक धर्म व विश्वास के लोगों का देश है और इसका मान-सम्मान उन्हें कैसे करना है यह निर्णय उन्हीं पर छोड़ा जाना चाहिए। यह कोई ज़रूरी नहीं कि धर्मविशेष से संबंध रखने वाले लोग ही राष्ट्रभक्त हो सकते हैं और निर्धारित नारे न लगाने वाले लोग राष्ट्रविरोधी हैं। ऐसी सोच तथा शब्दों की इस प्रकार की बाज़ीगरी के द्वारा समाज में वैमनस्य फैलाने की कोशिश सत्ता का लाभ तो भले ही पहुंचा दे परंतु ऐसे दुष्प्रयासों के चलते भारतीय समाज को विभाजित करने की जो कोशिशें की जा रही हैं उसका नुकसान देश को उठाना पड़ सकता है।