कथित इस्लामी शिक्षा के स्वयंभू उपदेशक डा० ज़ाकिर नाईक का नाम इन दिनों एक बार फिर चर्चा में है। गत् एक जुलाई को ढाका में आतंकवादियों द्वारा दर्जनों विदेशियों तथा स्थानीय लोगों को बंधक बनाया गया। बाद में इन्हीं बंधकों में 29 लोगों की हत्या भी कर दी गई। बताया जा रहा है कि इसी हमले में शामिल एक आतंकी रोहन इ इतितयाज़ ने हमले से पूर्व फेसबुक पर एक संदेश पोस्ट किया था। जिसमें डा० ज़ाकिर नाईक की कथित इस्लामी शिक्षा से उसके प्रेरित होने की बात कही गई थी। नाईक इस्लामिक रिसर्च $फाऊंडेशन नामक एक संस्था का संचालन करते हैं तथा पीस टीवी के नाम से अपना टीवी चैनल भी चलाते हैं। बताया जाता है कि पूरे विश्व में उनकी विचारधारा से करोड़ों लोग प्रभावित भी हैं। परंतु यह भी सच है कि वे एक बेहद विवादित व्यक्ति हैं तथा उनके कई बयान तथा उनके द्वारा पेश किए जाने वाले कई तर्क ऐसे भी होते हैं जो दूसरे धर्मों,समुदायों तथा विश्वासों के मानने वाले लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं। डा० ज़ाकिर नाईक इस्लाम धर्म की अत्यंत विवादित वहाबी विचारधारा के मानने वाले धर्मोपदेशक हैं। महाराष्ट्र के रहने वाले ज़ाकिर नाईक ने देवबंद से शिक्षा हासिल की है। वे पश्चिमी देशों,पश्चिमी स यता तथा विशेष रूप से अमेरिका के विरोधी तो ज़रूर हैं परंतु उन्हें आमतौर पर अंग्रेज़ी भाषा में ही अपनी तकरीर करते अथवा अपने तर्क प्रस्तुत करते सुना जाता है। इसी प्रकार वे सिर पर इस्लामी टोपी तो ज़रूर धारण करते हैं परंतु उनका लिबास टाइर्, कोट, सूट जैसा पश्चिमी स यता से जुड़ा प्रमुख लिबास ही होता है।
नाईक को न केवल $कुरान शरी$फ की सभी आयतें ज़ुबानी याद हैं बल्कि उन्होंने वेदों,पुराणों तथा बाईबिल जैसे स धर्मग्रंथों का भी पूरा अध्ययन किया है। वे तर्क-वितर्क करते समय कुरान की ही तरह दूसरे धर्मग्रंथों में उल्लिखित बातों का भी बड़ी फुर्ती के साथ हवाला देते हैं। कहना गलत नहीं होगा कि तर्क-वितर्क का यही कला कौशल उन्हें विवादपूर्ण शोहरत के शिखर पर ले जाने तथा विश्व के करोड़ों लोगों को उनकी ओर आकर्षित करने में सहायक साबित हुआ है। परंतु उनका सबसे बड़ा नकारात्मक पहलू जिसके कारण वे प्राय: विवादों में घिरे रहते हैं वह यह है कि उनकी सोच उन्हें वहाबी विचारधारा से आगे निकलकर कुछ और सोचने नहीं देती। और अक्सर वह अपनी यही पूर्वाग्रही वैचारिक भड़ास सार्वजनिक रूप से अपने समागम के दौरान निकालते रहते हैं। जिसका नतीजा यह होता है कि उनके तथाकथित उपदेश जहां उनके समर्थकों को पसंद आते हैं वहीं उनके विवादित उपदेशों से आहत अन्य धर्मों व विश्वासों के लोग इसे सहन नहीं कर पाते। मिसाल के तौर पर जब वे हज़रत मोह मद के नवासे हज़रत इमाम हुसैन के कातिल यज़ीद को रज़ी-अल्लाह-तआला कहकर संबोधित करते हैं तो शिया समुदाय स्वयं को आहत महसूस करता है। यहां शिया समुदाय कहता है कि जिस यज़ीद ने हज़रत मोह मद के परिवार के सदस्यों को भूखा व प्यासा करबला में कत्ल करवा दिया हो, अल्लाह-तआला ऐसे दुष्ट कातिल बादशाह से आखिर कैसे राज़ी हो सकता है? जब वे हज़रत मोह मद से किसी प्रकार की दुआ मांगने को गलत बताते हैं या सूफियाना कार्यकलापों अथवा उनके धार्मिक रीति-रिवाजों जैसे नज़र,फातेहा,कव्वाली, नात,ताजि़यादरी आदि को गैर इस्लामी बताते हैं तो शिया,बरेलवी व सूफी समाज उनके ऐसे उपदेशों की निंदा करता है।
कुछ वर्ष पूर्व ज़ाकिर नाईक ने भगवान शंकर की यह कहकर आलोचना की कि जब शंकर जी ने अपने पुत्र श्री गणेश को ही नहीं पहचाना और उनकी गर्दन काट दी फिर आखिर वही भोले शंकर अपने भक्तों को कैसे पहचानेंगे ? इतना ही नहीं वे मंदिर का प्रसाद ग्रहण करने से भी लोगों को रोकते हैं। उनके इस प्रकार के तर्क अथवा आलोचनाएं हिंदू धर्म,सूफी,फकीरी,दरवेशी तथा शिया व खानक़ाही परंपरा के बिल्कुल विरुद्ध हैं। उनके अनुसार मृत्यु के पश्चात कोई भी व्यक्ति अथवा पीर-फकीर, संत या महापुरुष किसी को कुछ भी नहीं दे सकता। न कोई भगवान,देवी-देवता न ही मोह मद साहब,ईसा मसीह या फिर मानव रूप में अवतरित हुआ या पैदा हुआ कोई अन्य व्यक्ति। उनके विचार से समस्त समाधियों तथा कब्रों को मिट्टी में मिला दिया जाना चाहिए। चूंकि धर्म तथा विश्वास, तर्क या बहस के नहीं बल्कि आस्था की विषयवस्तु हैं लिहाज़ा ज़ाकिर नाईक के उपरोक्त आलोचनापूर्ण कथन आस्था,विश्वास तथा धार्मिक समर्पण की कसौटी पर खरे नहीं उतरते। यहां तक कि स्वयं ज़ाकिर नाईक भी जो कुछ बोलते,कहते या तर्क देते हैं वह उसी शिक्षा एवं विश्वास के आधार पर जोकि उन्होंने अपने बुज़ुर्गों,अपने गुरुओं या अपनी विचारधारा के उलेमाओं या इससे संबंधित धर्मग्रंथों से हासिल की है। और उनकी यही विचारधारा व सोच उन्हीं से यह कहलवाती है कि ‘इस्लाम के दुश्मन-अमेरिका का दुश्मन ओसामा बिन लाडेन यदि आतंकवादी है तो मैं भी आतंकवादी हूं और सभी मुसलमानों को ऐसा आतंकवादी होना चाहिए।
ओसामा बिन लाडेन जैसे आतंकी के प्रशंसक ज़ाकिर नाईक की ऐसी वैचारिक सोच के विषय में स्वयं यह समझा जा सकता है कि ऐसी बातें कर वे इस्लाम का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं या फिर इस्लाम को बदनाम व कलंकित करने का वही अधूरा काम पूरा कर रहे हैं जो ओसामा बिन लाडेन छोड़ कर गया है। उनकी इसी प्रकार की गैरजि़ मेदाराना बयानबाज़ी तथा दूसरे धर्मों,समुदायों तथा दूसरे विश्वासों के लोगों की भावनाओं को आहत करने की उनकी प्रवृति के चलते कई मुस्लिम समुदायों के आलिमों द्वारा उनके विरुद्ध फतवा भी जारी किया जा चुका है। दुनिया के कई देशों तथा भारत के कई राज्यों में उनके उपदेशों पर पाबंदी लगाई जा चुकी है। पंरतु इन सब बातों के बावजूद बंगलादेश में हुए आतंकी हमलों के संबंध में जब हमलावरों के प्रेरक के रूप में ज़ाकिर नाईक का नाम सुर्खियों में आया उसके बाद महाराष्ट्र इंटेलिजेंस ब्यूरो ने ज़ाकिर नाईक के तथाकथित उपदेशों व बयानों को पूरी तरह खंगालने के बाद यह पाया है कि नाईक के विरुद्ध ऐसा कोई सुबूत नहीं मिलता जिसके चलते उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो सके। गोया बावजूद इसके कि उनके उपदेश दूसरों की भावनाओं को आहत तो करते हैं परंतु आतंकी हमले करने जैसे खूनी खेल खेलने के लिए किसी को उकसाते या प्रेरित नहीं करते।
परंतु दुर्भाग्यवश आज हमारे देश में एक अकेले ज़ाकिर नाईक ही नहीं बल्कि दूसरे धर्मों में भी अनेक ऐसे नेता स्वयंभू धर्मोपदेशक, व कथित साधू-संत आदि देखे जा सकते हैं जो न केवल दूसरों की भावनाओं को आहत करते हैं बल्कि वैचारिक आतंकवाद का ऐसा ज़हर भी घोलते हैं यहां तक कि अपने भाषणों में खुलकर दूसरे समुदायों के लोगों पर ऐसा प्रहार करते हैं कि सुनने वाले उनके समर्थक आक्रोशित हो कर हिंसक कार्रवाईयों को अंजाम दे बैठते हैं। हमारे देश में महात्मा गांधी की हत्या भी ऐसे ही एक वैचारिक आतंकवाद का स्वतंत्र भारत का पहला उदाहरण थी। इसी प्रकार 22 जनवरी 1999 को ऑस्ट्रेलियन मिशनरी ग्राहम स्टेंस तथा उनके दस व 6 वर्ष के दो छोटे बच्चों को उड़ीसा के क्योझार जि़ले के मनोहरपुर गांव में बजरंग दल कार्यकर्ता दारा सिंह व उसके साथियों ने उनकी गाड़ी में जि़ंदा जला दिया। भारत में 1984 से पूर्व सैकड़ों हिंदुओं की नृशंस हत्याएं इसी वैचारिक आतंकवाद का परिणाम थीं। आज भी हमारे देश में दर्जनों स्वयंभू धर्म व देश के स्वयंभू ठेकेदार एक-दूसरे समुदाय के विरुद्ध ज़हर उगलते रहते हैं। कोई कहता है कि पंद्रह मिनट के लिए देश से पुलिस को हटा लो फिर देखो हम क्या कर गुज़रते हैं तो कोई कहता है कि हमने गुजरात,आसाम व उड़ीसा में जो कर दिखाया उसे अल्पसं यकों को नहीं भूलना चाहिए। गोया इस प्रकार की उकसावे वाली गैरजिम्मेदाराना बातें आज देश में उन लोगों द्वारा घूम-घूम कर सरेआम की जा रही हैं जो संविधान के रक्षक की भूमिका भी निभा रहे हैं तथा जनता द्वारा निर्वाचित भी किए गए हैं।
ऐसी भाषणबाज़ी जो किसी भी समुदाय में आक्रामकता पैदा करती हो और किसी एक समुदाय को दूसरे समुदाय के विरुद्ध भड़काती हो ऐसी भाषणबाज़ी करने वाले समस्त नेताओं,स्वयंभू उपदेशकों व धमुगुरुओं के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाजायज़ फायदा उठाने वाले ऐसे लोगों के भाषणों व उनके सार्वजनिक कार्यक्रमों को प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए। प्रत्येक सच्चे भारतीय नागरिक को चाहे वह किसी भी धर्म अथवा समुदाय से संबंध क्यों न रखता हो यह भलीभांति समझ लेना चाहिए कि किसी भी धर्म अथवा समुदाय को कोई भी व्यक्ति जो अपने ज़हरीले बयानों के द्वारा हमारी एकता व सद्भाव पर प्रहार करने की कोशिश कर रहा हो वह हमारी धार्मिक स्वतंत्रता के साथ-साथ हमारे देश के सर्वधर्म संभाव रूपी ढांचे का भी बड़ा दुश्मन है। हमें ऐसे लोगों से सचेत रहने की ज़रूरत है।