बीती दीपावली में एक बार फिर पूरे देश में ज़हरीली गैस वातावरण में फैलने का स्तर पहले से कई गुणा अधिक फैलने के समाचार हैं। इसमें वायु प्रदूषण के साथ-साथ ध्वनि प्रदूषण के बढऩे का स्तर भी शामिल है। प्राप्त सूचनाओं के अनुसार इन दिनों देश के विभिन्न अस्पतालों तथा निजी डॉक्टर्स के पास आने वाले मरीज़ों में दमा,खांसी,इंफेक्शन,आंखों में जलन व इंफेक्शन के मरीज़ों की संख्या अधिक है। सोने पर सुहागा तो यह कि दीपावली पर्व के दौरान एक ओर तो हमें बाज़ार में नकली,बासी,पुरानी व ज़हरीली मिठाईयां खाने को मिलती हैं तो दूसरी ओर आंख,नाक और कान को भारी प्रदूषण भी झेलना पड़ता है। प्रत्येक वर्ष दीवाली के करीब आते ही विभिन्न प्रचार माध्यमों के द्वारा समाज में यह जागरूकता लाने की कोशिश भी की जाती है कि आतिशबाज़ी का प्रयोग न करें, वातावरण में ज़हरीला धुंआ तथा भारी प्रदूषण मत घोलें। परंतु इस प्रकार के किसी भी प्रचार का कोई $फकऱ् हमारे समाज पर पड़ता दिखाई नहीं देता। केवल दीवाली का त्यौहार ही नहीं बल्कि हमारे भारतीय समाज में प्रदूषण फैलाने संबंधी और भी ऐसी अनेक विडंबनाएं हैं जो लोगों की दिनचर्या में शामिल हो चुकी हैं। औद्योगिक विकास,वाहनों की बेतहाशा बढत़ी संख्या,प्रदूषण को लेकर हमारे देश के नागरिकों में जागरूकता की कमी,अज्ञानता तथा हमारी अनेक परंपराएं व रीति-रिवाज ऐसे हैं जिनकी वजह से भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 6 लाख लोग केवल वायु प्रदूषण के कारण ही मौत को गले लगा रहे हैं। विश्व स्वास्थय संगठन द्वारा जारी की गई 2014 की रिपोर्ट के मुताबि$क विश्व के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 शहर केवल भारत के थे। 2012 के आंकड़े यह बताते हैं कि भारत में दो लाख 49 हज़ार 388 लोगों की हृदय रोग के चलते मौत हुई। एक लाख 95 हज़ार लोग दिल के दौरे से मरे। जबकि एक लाख दस हज़ार पांच सौ लोगों ने फेफड़ों की बीमारी के चलते अपने प्राण त्याग दिए। और 26हज़ार 334 लोगों की मौत फेफड़ों के कैंसर की वजह से हुई।
दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने पिछले दिनों जब वाहनों के यातायात पर नियंत्रण के लिए ऑड-इवन का $फार्मूला जारी किया तो उस समय भी तमाम लोगों ने इस योजना का विरोध किया। हमारे देश में यह एक बड़ी विडंबना है कि यदि कोई भी सरकार जनहित में कोई $कदम उठाती है तो उसका भी विरोध महज़ राजनैतिक कारणों से किया जाने लगता है। कई प्रगतिशील पश्चिमी देशों में कारों के यातायात को लेकर ऑड-इवन का $फार्मूला अपनाया जाता है। परंतु हमारे यहां यह $फार्मूला आम लोगों को तो कम केजरीवाल विरोधियों को कुछ अधिक आपत्तिजनक लगा। हमारे देश की राजनैतिक व्यवस्था फलाईओवर बनाने जैसे तरीकों पर ज़्यादा विश्वास करती है। गैस व बैटरी से चलने वाली गाडिय़ां तथा मैट्रो आदि पर ज़्यादा भरोसा करती है। अब यहां यह बताने की ज़रूरत नहीं कि इस प्रकार के निर्माण कार्यों में सत्ताधारियों व राजनेताओं के कितने स्वार्थ निहित होते हैं। परंतु किसी भी सरकार को प्रदूषण नियंत्रण करने हेतु सख्त कदम उठाने,सख्त कानून बनाने या ज़मीनी स्तर पर लगातार इस संबंध में जागरूकता संबंधी मुहिम छेड़ते कभी नहीं देखा गया। आज हमारे देश में प्रतिदिन हज़ारों जगहों पर अनेक धर्मों के धर्मगुरु अपने प्रवचन देते रहते हैं। कभी कोई भी धर्मोपदेशक श्रोताओं व अपने अनुयाईयों से यह कहता सुनाई नहीं देता कि प्रदूषण पर किस प्रकार से नियंत्रण रखा जाना चाहिए। उल्टे जहां ऐसे आयोजन होते हैं वहीं धूप,अगरबत्ती तथा दिए आदि पर्याप्त मात्रा में जलाए जाते हैं।
आज आप देश के किसी भी शहर में जाकर देखें तो कबाड़ का काम करने वाले लोग रबड़ जलाकर उसमें से लोहे या तांबे की तार निकालने की कोशिश करते हैं। नतीजतन पूरे देश में $खतरनाक धुंआ आमतौर पर शाम के समय उठता दिखाई देता है। इस व्यवस्था को न तो कोई रोकने वाला है न ही इसके विरुद्ध कोई कार्रवाई की जाती है। इस संबंध में सरकारी कामकाज में भी अजीब विरोधाभास है। एक ओर तो सरकार प्रदूषण नियंत्रित रखने की औपचारिकता पूरी करते हुए कभी-कभार कोई विज्ञापन या अपील जारी करती है तो दूसरी ओर सरकारी सफाई कर्मचारी जगह-जगह कूड़े इकट्ठे कर उनमें आग लगाते देखे जाते हैं। हमारे देश में यह भी एक अजीब चलन है कि प्रतिदिन अनेक पशुपालक पशुओं के बांधने के स्थान पर धुंआ करते हैं। पूछने पर इसका कारण मच्छर भगाना बताया जाता है। जबकि पशु चिकित्सक इसे गलत व नुकसान पहुंचाने वाली परंपरा बताते हैं। पशु चिकित्सकों का कहना है कि इस प्रकार डेरियों में धुआं करने से मच्छर तो कम भागते हैं जानवरों की आंख व नाक में धुंआ ज़रूर चढ़ता है जिससे जानवरों को नु$कसान पहुंचता है। परंतु लोगों की समझ में यह बात नहीं आती। देश में लाखों डेयरियों में रोज़ शाम को धुंए के बादल उठते दिखाई देने लगते हैं। भले ही वातावरण में मच्छर हों या न हों।
परंतु अब प्रदूषण की यही स्थिति नियंत्रण से बाहर हुई लगती है। $खासतौर पर हमारे देश से संबंधित ऐसे भयानक आंकड़े सामने आने लगे हैं जो हमें यह बताने के लिए काफी हैं कि इन हालात को पैदा करने के जि़म्मेदार भी हम स्वयं हैं। और अपनी लापरवाहियों व अज्ञानता के चलते हम अपनी आने वाली नस्लों को ऐसा भयावह भविष्य देकर जा रहे हैं जिसकी हम स्वयं कल्पना भी नहीं कर सकते। गत् वर्ष हार्वर्ड,येल तथा शिकागो विश्वविद्यालय द्वारा जारी एक संयुक्त रिपोर्ट में यह $खुलासा किया गया कि भारत विश्व के सबसे प्रदूषित देशों में शामिल है। औसतन यहां के लोग इन्हीं कारणों से अपनी निर्धारित आयु से तीन वर्ष पहले अपनी जीवन लीला समाप्त कर रहे हैं। इसी रिपोर्ट में यह चेतावनी दी गई है कि यदि हमारे देश में वायु प्रदूषण पर जल्दी नियंत्रण नहीं पाया जाता तो 2025 तक देश की राजधानी दिल्ली में ही इस प्रदूषण के चलते प्रत्येक वर्ष छब्बीस हज़ार छ: सौ लोगों की मौत हुआ करेगी। परंतु इन सभी वास्तविकताओं से बे$खबर हम भारतीय लोग पटाखे छुड़ाने में प्रतिस्पर्धा करने में लगे हैं। हम यह भूल जाते हैं कि इन पटाखों से वातावरण में नाईट्रोजन सल्फरऑक्साईड तथा कार्बन जैसे ज़हरीले कणों में बढ़ोतरी होती है। सल्$फरडाईऑक्साईड की मात्रा तो दीवाली के दिनों में दोगुनी हो जाती है। इसके चलते पशुओं व पक्षियों को होने वाला नुकसान तो अलग है। मानव शरीर पर इन ज़हरीली गैसों के दुष्प्रभाव के नतीजे में फेफड़े के अतिरिक्त किडनी,लीवर तथा ब्रेन पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ता है। परंतु हम न तो इन दुष्प्रभावों के बारे में कुछ जानते हैं और न ही जानना चाहते हैं। वैसे भी दीपावली के त्यौहार को तो दीपों अर्थात् रौशनी का त्यौहार माना जाता है। परंतु पटा$खा,धमाका, प्रदूषण व शोर-शराबे ने कब से इस रौशनी की जगह ले ली यह हम समझ ही नहीं सके।
लिहाज़ा ज़रूरत इस बात की है कि यदि सरकार विश्वस्तरीय प्रदूषण संबंधी आंकड़ों के प्रति गंभीर है तथा देश को प्रदूषित देशों की सूची से अलग करना चाहती है तो आम लोगों को प्रतिदिन धुंआ फैलाने की मिली आज़ादी पर लगाम लगाना ज़रूरी है। अपनी मनमजऱ्ी से जब और जो चाहे जहां चाहे धुंआ करता फिरे ऐसी स्वतंत्रता पर पूरा नियंत्रण होना चाहिए तथा इसे अपराध की श्रेणी में डालना चाहिए। यातायात संबंधित ऑड-इवन $फार्मूला केवल दिल्ली में ही नहीं बल्कि देश के उन सभी शहरों व महानगरों में नियमित रूप से लागू करना चाहिए जहां प्रदूषण की मात्रा अधिक है। इनमें देश के आगरा,लुधियाना,कानपुर,लखनऊ, िफरोज़ाबाद, झांसी,इंदौर,भोपाल, उज्जैन,रायपुर,सिंगरौली,इलाहाबाद, पटना जैसे शहर शामिल हैं। केवल दीवाली का त्यौहार करीब आने पर ही नहीं बल्कि पूरे वर्ष इस बात की कोशिश की जानी चाहिए कि दीपावली पर ज़हरीली गैसों से बचने के लिए पटाखे न छुड़ाएं जाएं। बल्कि इस दिशा में सबसे कारगर उपाय तो यही होगा कि पटाखों को देश में प्रतिबंधित ही कर दिया जाए। क्योंकि इससे वायु प्रदूषण के साथ-साथ ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ता है। भारत सरकार को चाहिए कि इस दिशा में जो भी नीतियां बनाई जाएं वे आम लोगों के जीवन,उनके स्वास्थय तथा हमारी आने वाली नस्लों के उज्जवल भविष्य के मद्देनज़र हों न कि आतिशबाज़ी उत्पादकों या इस उद्योग से जुड़े लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए। इसके अतिरिक्त वृक्षारोपण जैसी मुहिम को इसी तरह अनिवार्य कर देना चाहिए जैसे कि आज हमारे समाज में आतिशबाज़ी,धुंआ प्रदूषण, धूप-अगरबत्ती,कूड़ा जलाया जाना आदि लगभग अनिवार्यता का रूप धारण कर चुका है। निश्चित रूप से वर्तमान समय में हमारे देश के वायु मंडल में फैलता जा रहा प्रदूषण एक अनियंत्रित होती जा रही समस्या का रूप धारण कर चुका है और इससे निपटना भी हमारी व हमारी सरकारों की जि़म्मेदारी है।