“सत्ता बन्दूक की नली से निकलती है…” का घोषवाक्य मानने वाले वामपंथी भारत में अक्सर मानवाधिकार और बराबरी वगैरह के नारे देते हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल में इनका तीस वर्ष का शासनकाल गुंडागर्दी, हत्याओं और अपहरण के कारोबार का जीता-जागता सबूत है… वामपंथ का यही जमीनी कैडर अब तृणमूल काँग्रेस में शिफ्ट हो गया है… फिलहाल पढ़िए मनीष कुमार द्वारा वामपंथ पर लिखित एक लेख…
दुनिया को भ्रम हो गया था कि वामपंथ की खदान से स्टालिन, माओ और पॉलपॉट जैसे नरपिशाचों का निकलना बंद हो गया है. लेकिन फिर एक ऐसी घटना हुई जिससे यह साबित हो गया है कि जब तक यह वीभत्स विचारधारा जीवित है, तब तक इसके गर्भ से दानव पैदा होते रहेंगे. वामपंथी भी विचित्र किस्म के प्राणी होते हैं. विरोधियों का सर्वनाश और नेताओं को परलोक भेजने के अमानवीय कुकृत्य को वामपंथी अपनी विशिष्ट शब्दावली में “पार्टी की सफाई” कहते हैं. अंग्रेजी में इसे पर्ज भी कहा जाता है जिसका मतलब होता है सफाई करना. अब जरा कार्ल मार्क्स के दत्तकपुत्रों द्वारा की जाने वाली “पार्टी की सफाई” की असलियत समझते हैं.
कम्युनिस्ट नार्थ कोरिया से खबर आई कि देश के रक्षा मंत्री योन योंग चोल को तोप के सामने खड़ा कर उड़ा दिया गया. सरकार ने इस हत्या को प्योंगयोंग शहर स्थित एक मिलिट्री स्कूल के प्रांगण में सैकड़ों लोगों के सामने अंजाम दिया. जिस तोप से उन्हें उड़ाया गया वह तोप एक एंटी-एयरक्राफ्ट गन थी. रक्षा मंत्री का कसूर बस इतना था कि नार्थ कोरिया के सुप्रीम लीडर किम जोंग युन के भाषण के दौरान उनकी आंख लग गई.. वो उंघते हुए पकड़े गए. सुप्रीम लीडर ने इसे देशद्रोह बताया और उन्हें मौत की सजा सुना दी. भारत का यह सौभाग्य है कि देश में कभी भी कम्युनिस्टों का राज नहीं रहा वर्ना संसद में उंघने वाले कई सासंद जीवित नहीं बचते. नार्थ कोरिया में जब से किम जोंग युन गद्दी पर बैठा तब से लगातार सफाई कार्यक्रम चल रहा है. अब तक 70 से ज्यादा वरिष्ठ अधिकारियों और सैकड़ों आम लोगों का सफाया किया जा चुका है. नार्थ कोरिया में सरकार के खिलाफ बोलने वाला कोई नहीं बचा है क्योंकि सरकार के खिलाफ सोचने वालों को ही साफ कर दिया जाता है. वहां बाइबिल, कुरान या किसी अन्य धर्मग्रंथ के साथ पकड़े जाने पर भी मौत.. चोरी करने पर भी मौत.. यहां तक कि साउथ कोरिया की फिल्म या टीवी सीरियल की डीवीडी के साथ पकड़े जाने पर भी मौत की सजा मिलती है. राजनीतिक विपक्ष तो नार्थ कोरिया में है ही नहीं, लेकिन पार्टी के अंदर चुनौती देने वालों को भी मोर्टार और तोप के सामने खड़ा कर मौत के घाट उतार दिया जाता है. नार्थ कोरिया के सुप्रीम लीडर किम जोंग युन कुछ नया नहीं कर रहे हैं. युन के पिता और दादा ने भी यही काम बड़ी निर्ममता के साथ किया था. नार्थ कोरिया के संविधान के मुताबिक यह एक सोशलिस्ट राज्य है. संविधान में नार्थ कोरिया की विचारधारा “creative application of Marxism–Leninism” है. मतलब यह कि यहां मार्क्सवाद-लेनिनवाद का सृजकात्मक प्रयोग हो रहा है. नार्थ कोरिया की विचारधारा मूलरूप से कम्यूनिज्म थी लेकिन बदलते अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में 1972 में कम्युनिज्म को बदलकर समाजवाद कर दिया गया. 1972 के बाद से यहां वर्कर्स पार्टी का शासन है… मजदूरों के नाम का ऐसा दुरुपयोग सिर्फ और सिर्फ मार्क्सवादी ही कर सकते हैं.
दरअसल, मार्क्सवाद-लेनिनवाद वैचारिक फर्जीवाड़े का एक ऐसा बेहुदा कॉकटेल है जिसमें सिर्फ और सिर्फ हिंसा होती है. भारत में इस विचारधारा के सबसे बड़े अनुयायी नक्सली हैं और कुछ राजनीतिक दल हैं. इनके अलावा हिंदुस्तान में ऐसे कई लोग हैं जो अज्ञानतावश इस कॉकटेल के नशे में झूमते रहते हैं. पेंडुलम की तरह झूलते रहते हैं. ये वैचारिक कंगाल लोग कभी सामाजिक न्याय और संप्रदायिकता से लड़ने वाले लड़ाकू बन जाते हैं तो कभी प्रजातंत्र और नागरिक अधिकारों के लिए आंदोलन में शामिल हो जाते हैं तो कभी पर्यावरण को बचाने के लिए पदयात्रा शुरु कर देते हैं, तो कभी मानवाधिकार के लिए आंदोलन करते नजर आते हैं. दरअसल, इस विचारधारा की मौलिक समझ के बगैर, आधी अधूरी जानकारी और प्रोपागंडा के शिकार लोग साधारण सी बात को नहीं समझ पाते हैं कि 20वीं सदी में मार्क्सवाद-लेनिनवाद की विचारधारा पर चलने वाले सोशलिस्ट स्टेट ने जितना जनसंहार किया है उतने लोग तो किसी विश्वयुद्ध में भी नहीं मारे गए. 20वीं सदी में मार्क्सवादी-लेनिनवादी सोशलिस्ट स्टेट ने कुल 90 से 100 मिलियन लोगों की हत्या की. सबसे ज्यादा 65 मिलियन चीन में, रूस में 20 मिलियन, कम्बोडिया में 2 मिलियन, नार्थ कोरिया में भी 2 मिलियन, इथोपिया में 1.7 मिलियन, अफगानिस्तान में 1.5 मिलियन, इस्टर्न यूरोप में 1 मिलियन, वियतनाम में 1 मिलियन, क्यूबा और लैटिन अमेरिका में करीब डेढ़ लाख लोगों का कम्युनिस्ट-सरकारों ने जनसंहार किया. इसके अलावा, जहां कम्युनिस्टों की सरकारें नहीं थीं वहां दस हजार से ज्यादा लोग पार्टी की सफाई के नाम पर मार दिए गए. वामपंथियों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उन्होंने न सिर्फ जनसंहार किया बल्कि उसका औचित्य बताकर खुद को दोषमुक्त भी साबित कर दिया.
यह बात भारत में नहीं बताई जाती है कि लेनिन दुनिया के पहले नेता थे जिन्होंने अपने ही नागरिकों पर सैन्य कार्रवाई की. लेनिन के आदेश पर ही सेंट्रल एशिया के मुसलमानों का जनसंहार हुआ और हजारों मस्जिदों और इस्लामी संस्थानों को तबाह कर दिया गया. वैसे सोवियत संघ, चीन और कम्बोडिया की कई कहानियां ऐसी हैं जिन्हें सुनकर दिल दहल जाता है. इनकी कहानियां ऐसी है कि जिसे सुनकर हिटलर को भी शर्म आ जाए. वामपंथी विचारधारा के सृजकात्मक प्रयोग की वजह से कम्बोडिया में तो एक चौथाई जनसंख्या मौत के मुंह में समा गई. दुख इस बात का है कि हिंदुस्तान में ये बातें स्कूलों और कॉलेजों में नहीं पढ़ाई जाती हैं. वामपंथियों द्वारा दी गई दलीलों को किताब में पेश कर यह बता दिया जाता है कि वहां क्रांति हो रही थी. वहां “क्लास-एनेमी”, “क्रांति के दुश्मनों” व “सर्वहारा के दुश्मनों” को मारा गया था. यदि किसी को सच पर पर्दा डालना सीखना हो तो उसे भारत के वामपंथी लेखकों से सीखना चाहिए. भगवान भला करे कि क्रांति का यह वीभत्स रोग भारत के जनमानस को नहीं लगा. कुछ पथभ्रष्ट हो गए हैं लेकिन वे अपवाद ही हैं. सच्चाई यह है कि जहां जहां राज्य की सत्ता वामपंथियों के हाथ आई वहां सिर्फ और सिर्फ खून की नदियां बही हैं.
वामपंथियों के बारे में समझने वाली बात बस इतनी सी है कि ये विपक्ष में रहते हुए अधिकार, प्रजातंत्र और आजादी जैसी बड़ी बड़ी बातें करते हैं और आंदोलन करतें है वही सत्ता में आने के बाद सबसे बड़े दमनकारी साबित होते हैं. यही उनकी चाल, चरित्र और चेहरे की हकीकत है.