पोकरण-दो’ भारत की संप्रभुता का शंखनाद है जबकि ‘पोकरण-एक’ उसकी परमाणु क्षमता का उदघोष मात्र् था| वह अजब स्थिति थी और यह गजब स्थिति है| अजब इसलिए कि भारत ही एकमात्र् ऐसा देश था जिसने परमाणु विस्फोट किया लेकिन यह दावा नहीं किया कि वह परमाणु शक्ति है| यानी है भी और नहीं भी है| उसने विस्फोट को विस्फोट नहीं, अंत:विस्फोट कहा, क्योंकि वह भूमिगत था| (1974 में भूमिगत परीक्षण से अन्तरराष्ट्रीय कानून का उल्लघंन नहीं होता था क्योंकि तब समग्र परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सी टी बी टी) नहीं थी| अन्य देशों की तरह भारत ने भी 1963 की आंशिक प्रतिबंध संधि पर हस्ताक्षर किए हुए थे|
भारत कानून के उल्लंघन से तो बचा ही, उसने साथ-साथ यह घोषणा भी कर दी कि पोकरण का वह परीक्षण केवल शांतिपूर्ण उपयोग के लिए है| यानी वह परमाणु दादाओं की महफिल में घुसने के लिए दरवाजे पर मुक्के नहीं मार रहा है| उसने दुनिया को बस इतना बताया कि वह महफिल के दरवाजे पर पहुंच गया है| इस उद्रघोष मात्र् ने, इस सूचना भर ने इंदिरा गांधी को विश्व विभूति बना दिया| जिन्हें जानना चाहिए था, वे जान गए| वे समझ गए कि भारत आ पहुंचा है|
शोर उस समय भी मचा लेकिन जैसा झटका अटलबिहारी वाजपेयी ने इस बार दिया है, वैसा परमाणु दादाओं ने द्वितीय महायुद्घ के बाद कभी नहीं खाया| यदि इंदिरा गांधी ने शीर्षासन की मुद्रा में खड़ी नेहरू की परमाणु नीति को अपने पांव पर खड़ा किया तो अटल बिहारी वाजपेयी ने 24 साल से एक टांग पर खड़े उस परमाणु पुतले में जान फूंक दी| वह अब दौड़ रहा है| ‘पोकरण-दो ने सिद्घ कर दिया है कि कांग्रेस का अधूरा काम भाजपा ने पूरा किया और जहां तक राष्ट्र-रक्षा का सवाल है, भाजपा और कांग्रेस में कोई फर्क नहीं है| दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं| दोनों एक ही रथ के दो पहिए है| नेहरू के प्रेमी वाजपेयी को अब मानना होगा कि वे इंदिरा गांधी के सीधे उत्तराधिकारी हैं| ‘पोकरण-दो’ ने सिद्घ कर दिया है कि कांग्रेस का अधूरा काम भाजपा ने पूरा किया और जहां तक राष्ट्र-रक्षा का सवाल है, भाजपा और कांग्रेस में कोई फर्क नहीं है| दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं| दोनों एक ही रथ के दो पहिए है|
परमाणु उत्तराधिकार का यह मुकुट राजीव गांधी के मस्तष्क पर बहुत ही शोभायमान होता लेकिन इसे न राजीव धारण कर सके और न ही नरसिंहराव| राजीव गांधी बम बनाने की बजाए अपने सलाहकारों के कहने पर विश्व निरस्त्र्ीकरण का राग अलापते रहे ओर नरसिंह राव तो सम्भ्रांत असमंजस के धनी हैं ही अर्थात जैसे बाबरी ढांचे को बचा नहीं पाए, वैसे ही बम नहीं बना पाए| ऐन वक्त पर अमेरिकी बिल्ली ने छींक दिया| कहीं ऐसा न हो जाए, कहीं वैसा न हो जाए| बस सोचते ही रह गए| अब कांग्रेसी दांत पीस रहे हैं| कारण पूछ रहे है| यह भी जानना चाहते हैं कि इतनी क्या जल्दी थी, बम बनाने की ? हमने 45 साल राज किया, लेकिन हम नहीं बना पाए| आपने 45 दिन में ही यह गजब कर दिया| क्यों किया ? वे यह नहीं बताते कि वे 24 साल सोए क्यों रहें ?
गजब तो है ही| सारे अमेरिकी उपग्रह मात खा गए| सूंघ तक नहीं पाए| 11 मई तो 11 मई, 13 मई ने सबकी नाक काट ली| पांचों परीक्षण ने सिद्घ किया कि भारत अब महाशक्ति बन गया है| अब वह ‘दहलीज शक्ति’ (थ्रशोल्ड पावर) नहीं रह गया है| अब वह परमाणु दहलीज फांद चुका है| प्रधानमंत्री ने इसकी विधिवत घोषणा कर दी है| जिस दरवाज़े के पास वह 24 साल से चक्कर लगा रहा था, उसे अब उसने तोड़ दिया है| पाँचों महाशक्तियां उसे अपनी महफिल (लंदन क्लब) में अब भी न बैठाएं, नाक-भोंह सिकोड़े, दाँए-बाँए देखें – यह अलग बात है| वे भारत को तुरंत मान्यता दे दें और परमाणु अप्रसार संधि (जुलाई 1978) में संशोधन करके भारत को छठी परमाणु शक्ति घोषित कर दें औैर सीटीबीटी में भी उसका दर्जा अन्य से अलग मान लें तो यह अजूबा ही होगा| चीन को बरसों बरस जिन्होंने सुरक्षा परिषद का सदस्य नहीं बनने दिया और उस गद्दी पर अपने बगलबच्चे ताइवान को बैठाए रहे, वे भारत को एकाएक परमाणु महाशक्ति कैसे मान लेंगे ? यही परमाण्ु सामंतवाद है|
हर सामंत की तकलीफ होती है कि गांव में उसकी हवेली के मुकाबले दूसरे की हवेली कैसे खड़ी हो गई ? कोई और हवेली खड़ी न हो जाए, इसीलिए परमाणु अप्रसार संधि रची गई| पांचों महाशक्तियाँ चाहे जितने परीक्षण करें, चाहे जितने हथियार बनाएं, उन्हें इस संधि ने पूरी छूट दे दी लेकिन लगभग एक दर्जन राष्ट्र दहलीज शक्तियां जो परमाणु हथियार बना सकती हैं, उनके हाथ पांव बांध दिए| इसीलिए मोरारजी देसाई की निरस्त्रीकरणवादी सरकार ने भी इस संधि का डटकर विरोध किया| अपना विक्लप खुला रखा| इस बीच परमाणु राष्ट्रों ने जमकर परीक्षण किए और परमाणु हथियार बनाए| यह सामंती निर्लज्जता 1996 तक चलती रही| अब तक अमेरिका ने 1032, रूस ने 715, फ्रांस ने 210, बिट्रेन ने 45 और चीन ने 44 परमाणु परीक्षण किए| इन पांचों राष्ट्रों के पास 10 हजार से भी अधिक परमाणु शस्त्रस्त्र् है|
पोकरण-दो ने इस परमाणु सामंतवाद को धराशायी कर दिया| अब भारत के साथ पाकिस्तान, इस्राइल, एराक, दक्षिण अफ्रीका, जापान, लीबिया, इंडोनेशिया, अर्जेन्टीना जैसे राष्ट्र भी पुरानी महफिल में अपना दावा ठोक सकते है या फिर वे अपनी एक अलग नई महफिल खड़ी कर सकते हैं ? लेकिन क्या यह नई परमाणु महफिल भी नए सामंतवाद का निर्माण करेंगी ? यदि करेंगी तो दुर्भाग्यपूर्ण होगा| अकेले भारत को चाहिए कि वह अब निरस्त्र्ीकरण का सच्चा अग्रदूत बने| वह कहे कि अगरे सारी दुनिया तय करें कि परमाणु हथियार खत्म किए जाएं तो वह पहला देश होगा, जो अपने हथियारों को समुद्र में दफना देगा| वह अपना उदाहरण स्वयं बनेगा| वह पांचों महाशक्तियों की तरह ढोंग नहीं करेगा| दूसरों पर खाली पीली उपदेश नहीं झाड़ेगा| उपदेश तो भारत भी करता रहा है लेकिन अब तक उसकी कोई कीमत नहीं थी| यह वैसा ही था जैसा कि कोई लकवाग्रस्त व्यक्ति ओलम्पिक दौड़ का महिमा गान करे| अब भारत के पास बम है यानी सम्पूर्ण गुट निरपेक्ष समूह के पास बम है| अब तक दुनिया के लगभग डेढ़ सौ राष्ट्र ज्यों मूक बधिरों की तरह हां में हां मिलाते रहते थे, भारत ने उनके मुंह में जुबान पैदा कर दी है| अब वे एक साथ मांग कर सकते है कि नवम्बर 1959 के संयुक्त राष्ट्र महासभा प्रस्ताव पर अमल किया जाए|
क्या था, यह प्रस्ताव ? दो शब्द थे, इसमें प्रमुख ! व्यापक और सम्पूर्ण ! व्यापक का मतलब है, निरस्त्रीकरण सभी राष्ट्रों पर लागू होगा| कोई भी अपवाद नहीं होगा| उस समय की दोनों महाशक्तियां भी नहीं| अमेरिका भी नहीं रूस भी नहीं| और सम्पूर्ण का मतलब सिर्फ परमाणु हथियार ही नहीं, सभी प्रकार के हथियार| राष्ट्रों के पास केवल वे ही हथियार बने रहेंगे, जो राष्ट्रों की आंतरिक व्यवस्था और शांति के लिए जरूरी हों और संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना के काम आएं| पांचों महाशक्तियां ने क्या इस प्रस्ताव की बार-बार हत्या नहीं की है ? हर अन्तरराष्ट्रीय संधि इसी हिसाब से बनाई गई है कि पांचों के हथियार सही सलामत रहें और वे चाहें तो उनकी संख्या बढ़ाते जाएं| जब-जब भारत जैसे राष्ट्रों ने पूर्ण निरस्त्र्ीकरण की बात कही पाचों महाशक्तियों ने ही नहीं उनके बगलबच्चों – जापान, जर्मनी, कनाडा, आस्ट्रेलिया, स्वीडन आदि देशों ने भी भारत का मज़ाक उड़ाया| वे अपने आका राष्ट्रों के परमाणु एकाधिकार को निर्लज्जतापूर्वक समर्थन करते रहे| दूसरे शब्दों में दुनिया को मौत के कुएं में ढकेलने की वकालत वे बराबर करते रहे| आज ये ही राष्ट्र भारत के विरूद्घ गला फाड़ रहे है और दूसरी तरफ अमेरिका कीे विश्वव्यापी परमाणु युद्घ की शतरंज के मोहरे बने हुए है| भारत ने सी टी बी टी पर हस्ताक्षर नहीं किए है| किसी कानून का उल्लंघन भी नहीं किया है| सिर्फ अपनी संप्रभुता को प्रगट भर किया है|
बजाय इसके कि भारत अपने बचाव में दबी जुबान से हकलाता रहे, उसे अब सभी गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों से अनुरोध करना चाहिए कि वे भारत के परमाणु बम को विश्व शांति का ब्रह्रमास्त्र् बना दें| वे महाशक्तियों से कहें कि तुम अपने हथियार खत्म करों, वरना हम भी बम बनाएंगे| अगर पाकिस्तान बम बना लेगा तो न केवल भारत और पाकिस्तान के मामले जरा जल्द सुलझेंगे बल्कि तीसरी दुनिया के अन्य देश दहलीज राष्ट्र भी परमाणु शक्तियों को आंखे दिखाने लगेंगे| तभी डर के मारे महाशक्तियां सच्चे निरस्त्र्ीकरण के मार्ग पर पहली बार कदम रखेंगी|
इस व्यापक और सम्पूर्ण निरस्त्रीकरण पर नेहरू इस कदर फिदा थे कि उन्होंने विश्व को वचन दिया था कि चाहे जो हो, भारत कभी भी परमाणु अस्त्र् नहीं बनाएगा| यही वचन अब वाजपेयी 40 साल बाद फिर दे सकते हैं| पहले उन्होंने इंदिरा का अधूरा काम पूरा किया, अब वे नेहरू का करें| वे एन पी टी ओर सी टी बी टी जैसे घिसी पिटी संधियों को रद्द करवाएं और उनकी जगह सच्चे निरस्त्र्ीकरण की नई संधि का सूत्र्पात करें महाशक्तियों को विश्व नैतिकता का नया पाठ पढाएं|
महाशक्तियों के गुट में फुट पड़ गई है| रूस, फ्रांस और बि्रटेन कोई प्रतिबंध नहीं लगा रहे| ग्रुप-8 बस निंदा से ही संतुष्ट है| अमेरिका भी गुस्से से पागल नहीं हुआ| जरा संभलकर जुबान चला रहा है| वह जानता है कि वेश्या के मुंह से ब्रह्रमचर्य का उपदेश शोभा नहीं देता| लेकिन बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ, छोटे मियाँ सुभानअल्ला| छोटे मियाँ (जापान और जर्मनी आदि) जलन के मारे मरे जा रहे है| वे खिसिया गए है कि वे भारत से ज्यादा ताकतवर हैं, लेकिन जब उन्होंने बम नहीं बनाया तो भारत ने क्यों बना लिया ? तीसरी दुनिया के देश खुश हैं या चुप हैं| उनकी बिरादरी के पास आया बम उन्हें सिर ऊँचा करने का मौका दे रहा है| काहिरा के ग्रुप-15 सम्मेलन में 11 मई को इसलिए खुशी की लहर दौड़ गई थी|
पाकिस्तान की झल्लाहट इसलिए बढ़ गई है कि भारत ने नहले पर दहला मार दिया| गौरी पर ‘शक्ति’ भारी पड़ गई| उलट-पराकाष्ठा हो गई| पाकिस्तान प्रतिबंधों का सबसे बड़ा वकील बन गया है| वह अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार रहा है| कल जब वह बम बनाएगा तो क्या आज का थूका हुआ उसे चाटना नहीं पड़ेगा ? कम से कम अब तो वह स्वतंत्र् राष्ट्र की तरह बर्ताव करे| क्या उसे याद नहीं कि चीन के पहले विस्फोट पर उसके विदेश मंत्र्ी आगा शाही ने पेइचिंग में कैसा ढोल बजाया था|
चीन भी शायद 1964 भूल गया| उसे याद नहीं कि उसके पहले विस्फोट के समय परमाणु महाशक्तियाँ कैसे बौखलाई थीं और माओ ने कैसे मुंहतोड़ जवाब दिए थे| सोवियत संघ ने चीनी परीक्षण के कई साल पहले ही सारी सहायता समाप्त कर दी थी| फिर भी चीन डटा रहा| भारत क्यों नहीं डटेगा ? अमेरिका और जापानी सहायता तो ऊँट के मुह में जीरे के बराबर है| 14 हजार 500 अरब रूपए की अर्थ व्यवस्था में एक सौ अरब का क्या महत्व है ? एक प्रतिशत भी नहीं| कोई भी अन्तरराष्ट्रीय सहायता निस्वार्थ नहीं होती| जितना भारत का नुकसान होगा, उससे ज्यादा देनेवाले देशों का होगा| बड़ा फायदा यह है कि भारत के करोड़ों लोग अपना माथा ऊँचा रख सकेंगे और अपनी कमर कसना सीखेंगे|