मोदी और केजरीवाल से दो-दो हाथ करने के लिए कांग्रेस ने एक बड़ा दांव खेला है। पार्टी के सम्भावित प्रधानमंत्री के उम्मीदवार राहुल गांधी की छवि चमकाने के लिए दो पीआर एजेंसियों को ५०० करोड़ रुपए में हायर किया गया है। यह प्रचार कुछ ऐसा ही है जैसा मोदी को प्रोजेक्ट करने के लिए किया गया या ‘आप‘ से जुड़े विदेशी भारतवंशियों ने केजरीवाल के लिए किया| अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले जापान की ऐड और पीआर कंपनी देंत्ज़ू इंडिया कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए एक बड़ा कैंपेन तैयार कर रही है। कहने के लिए तो यह देश के आम आदमी के सशक्तीकरण का कैम्पेन होगा लेकिन वास्तव में यह राहुल गांधी के सशक्तीकरण की कवायद है।
हाल ही में चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार ने इसके शीर्ष नेतृत्व को अंदर तक झकझोर दिया है। एक ओर गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की आक्रामक प्रचार शैली तो दूसरी ऒर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को जनता का अभूतपूर्व समर्थन; दोनों ही स्थितियां पार्टी में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की संभावित प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को नुकसान पहुंचा रही हैं। मीडिया का एक धड़ा तो अभी से मोदी को देश का भावी प्रधानमंत्री घोषित कर चुका है। मोदी के समर्थन और विरोध में विभिन्न राजनीतिक दलों का एक जाजम के नीचे आना इस बात का संकेत तो देता ही है कि मोदी को नकारने का साहस फिलहाल तो इसी राजनीतिक दल में नहीं है।
वहीं वर्तमान राजनीति के ‘नायक’ बनकर उभरे ‘आप’ नेता अरविंद केजरीवाल का आम आदमी से जुड़ाव २०१४ के आम चुनाव में लोकप्रिय स्थिति उत्पन्न कर रहा है। यूपीए के १० वर्षों के शासनकाल में सरकार और और कांग्रेस संगठन निश्चित रूप से आलोचनात्मक परिस्थितियों से दो-चार हुआ है और काफी हद तक दोनों में बिखराव की वजह से आम जनता का विश्वास भी कांग्रेस से डिगा है| पर सवाल यह है कि क्या देश की सबसे पुरानी पार्टी यूं ही अपने तुरुप के इक्के को बिना किसी मजबूत पक्ष के जनता के समक्ष उतारेगी? इतना तो तय है कि आगामी लोकसभा चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत मिलता नहीं दिख रहा है| भाजपा यदि मोदी लहर के भरोसे पूर्ण बहुमत की आस लेकर आत्म-मुग्ध हो रही है तो यह उसका अतिआत्मविश्वास है जो समय आने पर उस पर भारी पड़ेगा| वहीं ‘आप’ का राजनीतिक भविष्य दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों से पुख्ता नहीं कहा जा सकता। ‘आप’ को अभी और वक़्त देने की आवश्यकता है।
जहां तक कांग्रेस की बात है तो पार्टी में राहुल गांधी के नाम पर न तो कोई मनभेद है; न मतभेद। अन्य क्षेत्रीय दल फिलहाल देखो और फिर निर्णय करो की भूमिका में हैं| ऐसे में तमाम अनिश्चितताओं के मद्देनज़र दिल्ली की गद्दी सभी के इस्तकबाल के लिए तैयार है| भाजपा और ‘आप’ समेत सभी बड़े राजनीतिक दल; जिनका दिल्ली की गद्दी को लेकर स्पष्ट नजरिया है; उनकी तैयारियां अंतिम दौर में पहुंच चुकी हैं किन्तु कांग्रेस इस दौड़ में कल तक पिछड़ती नज़र आ रही थी। इसलिए उन्होंने राहुल गांधी के प्रसार का काम एक प्रचार एजंसी को सौंप दिया है।
खबर है कि यह जापानी कंपनी राहुल गांधी के लिए जो कैम्पेन तैयार कर रही है उस कैंपेन में राहुल गांधी को एक ऐसे युवा नेता के रूप में पेश किया जाएगा जो आम आदमी की आकांक्षाओं को पूरा करने का माद्दा रखता है। इतना ही नहीं, सोशल मीडिया पर लाखों फैंस जोड़ चुके मोदी को भी पार्टी मात देने की तैयार कर रही है। सूत्रों के अनुसार पीआर कंपनी बर्सन-मार्शलर को सोशल मीडिया पर राहुल गांधी के लिए प्रचार करने का जिम्मा सौंपा गया है। बर्सन-मार्शलर राहुल गांधी का ट्विटर और फेसबुक पेज संभालेगी। बर्सन-मार्शलर राहुल की रैलियों की तस्वीरें और स्टेटस मैसेज अपलोड करेगी, ताकि दिलचस्प बहस को जन्म दिया जा सके। इसके अलावा सोशल मीडिया पर बेहतर विजिबिलिटी के लिए रोजमर्रा का घटनाक्रम ट्वीट किया जाएगा। दोनों कंपनियों को इस काम के लिए ५०० करोड़ रुपए दिए गए हैं। जीडीपी ग्रोथ, महंगाई दर और जॉब्स जैसे मुद्दों से इतर इस कैंपेन में करप्शन के मुद्दे को भी उठाया जाएगा। पीआर कंपनी इन मुद्दों पर राहुल गांधी के मजबूत रुख को उभार रही है। इस पूरी प्रक्रिया में राहुल खुद भी दिलचस्पी ले रहे हैं| कुल मिलाकर अब कांग्रेस भी चुनाव प्रचार के पारम्परिक माध्यमों के अलावा सोशल मीडिया की ताकत को भुनाना चाहती है। इससे राहुल की नकारात्मक छवि को कमतर करने में मदद मिलेगी; साथ ही देश की युवा जनता से राहुल का जुड़ाव भी बना रहेगा।
देखा जाए तो अभी तक राहुल की पार्टी में गिनती नंबर दो की थी किन्तु पार्टी का एक धड़ा राहुल को ही अपना नेता मानता रहा है और उनके प्रधानमंत्री बनने की कामना करता है। पर राहुल ने जिस तरह अभी तक बिना पद की कामना के संगठन को मजबूत करने का प्रयास किया उससे कांग्रेस के पद-पिपासु नेताओं को जरूर सबक लेना चाहिए। राहुल ने हमेशा युवाओं को पार्टी से जोड़ने की कवायद की और यह कवायद उनके और पार्टी के लिए लाभदायक रही है। हालांकि यह भी उतना ही सच है कि राहुल के जमीनी प्रयास अब तक कांग्रेस को वह सफलता नहीं दिला पाए हैं जिसकी उनसे उम्मीद थी। कई कांग्रेसियों ने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए उनकी मुहिम को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया। पहले से कई धड़ों में बंटी कांग्रेस युवाओं के मामले में अनगिनत धड़ों में बंट गई? युवक कांग्रेस और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन जिनकी कमान राहुल के हाथों में थी, राजनीति के नए अखाड़े में तब्दील हो गए।
राजनीति में अपराधियों के प्रवेश पर रोक के लिए भी राहुल ने मुहिम चलाई, मगर उनके कमान वाले संगठनों में ही अपराधियों की भरमार हो गई। राहुल को लेकर जो सनसनी कभी भारतीय मीडिया के एक पक्ष ने पैदा की थी वह मोदी और केजरीवाल की चमक से लगभग खत्म सी हो गई है। देशहित के कई मुद्दों पर जनता राहुल का पक्ष जानना चाहती थी, मगर उनकी चुप्पी ने उनकी छवि पर बुरा प्रभाव डाला। किन्तु इन स्थितियों से राहुल को चुका हुआ मान लिया जाए; न्यायोचित नहीं है। राहुल की भी अपनी कुछ सियासी मजबूरियां हैं और जनता को संतुष्ट करना किसी के बस में नहीं है। ऐसे में पार्टी का आक्रामक प्रचार ही पार्टी और राहुल की साख को बचा सकता है। कुछ लोगों के लिए राहुल की छवि सुधार हेतु ५०० करोड़ का निवेश अपव्यय लग सकता है और लगना भी चाहिए किन्तु उन्हें यह सवाल उठाने से पहले भाजपा और आम आदमी पार्टी के प्रचार-प्रसार का लेखा-जोखा भी सामने रखना चाहिए।