राडिया…राजा और टाटा बनाम मि. क्लीन प्रधानमंत्री का सच

सवाल मि. क्लीन का है या देश का ? देश की कमाई को अगर कोई मंत्री अपने और अपनों के बीच बंदरबांट कर नियम कायदे-कानून को ताक पर रख दें और प्रधानमंत्री उस मंत्री की इस हरकत को सत्ता की चाबी माने रहें तो फिर न्याय कौन करेगा? न्याय तो सत्ता करती है। लेकिन जब सत्ता ही गठबंधन के आंकडों तले अन्याय के सौदे से शुरु हुई हो तो फिर न्याय कौन करेगा। और लंबी खामोशी के बाद 20 नवबंर को जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यह कहकर चुप्पी तोडी कि, “स्पैक्ट्रम घोटाले के किसी भी दोषी को वह बख्शेंगे नहीं।” तो पहला सवाल यही निकला क्या मनमोहन सिंह एक बार फिर बताना चाहते है कि वह तो मि.क्लीन हैं। इसलिये यह भी कह रहे हैं कि “मैं कितने इम्तिहान दूं।” तो क्या मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश इम्तिहान देगा….प्रधानमंत्री नहीं। बार बार कौन किसका इम्तिहान ले रहा है, यह किसी से छुपा नहीं है। जिस देश में बीते छह साल से बजट तैयार करते वक्त साठ फीसदी आबादी के पेट से जुडे मुद्दो को जगह नहीं दी गयी। सत्तर फीसदी आबादी जिस खेती पर टिकी है, उसे सीमेंट और लोहे का इन्फ्रास्ट्रचर निगलते जा रहा है। लेकिन खेती-किसानों के नुमाइन्दगों को कभी उस रायसिना हिल्स की ड्योडी पर यह कहने-बताने के लिये भी चढ़ने नहीं दिया गया कि मि.क्लीन चकाचौंघ भारत की जो तस्वीर बना रहे हैं, उसमें 70-80 करोड़ लोग क्या सरकारी पैकेज और राहत कोष पर ही जीयेंगे। जबकि 80 के दशक में ही रायसिना हिल्स की ड्योडी पर चढते हुये धीरुभाई अंबानी ने कह दिया था , “यह वह जगह है, जहां जितना चढ़ावा चढ़ेगा, उससे कई गुना ज्यादा वापस मिल जायेगा।” यानी गंगोत्री से निकलने वाली गंगा से उलट भ्रष्ट्राचार की यह गंगोत्री सारी धाराओ को सोख कर गोमुख की जगह संसदीय लोकतंत्र में ऐसे पीएमओ को बना चुकी है, जहा लोकतंत्र के सारे पिलर से भ्रष्ट्राचार की गंगोत्री निकल रही है। और भ्रष्टाचार की गंगोंत्री में बैठ कर मि. क्लीन प्रधानंमत्री देश से सवाल कर रहे है, मेरी गलती क्या है। मैं तो मिं. क्लीन हूं ।

 

त्तो जरा 2 जी स्पैक्ट्रम तले आर्थिक घोटाले और घोटाले तले लोकतंत्र की ही घज्जियां उड़ाती सत्ता की महक में मि. क्लीन को परखना जरुरी है। भ्रष्टाचार की गंगोत्री रायसिना हिल्स में साउथ ब्लॉक के सबसे किनारे वाला दप्तर पीएमओ है। जहां की मजबूत लाल दीवारों में उतने ही कमरे हैं, जितने देश में कैबिनेट मंत्री। हर मंत्रालय पर नजर रखने के लिये नौकरशाहो की पूरी फौज यहां से काम करती है। इसलिये सवाल यह नहीं है कि सुब्रमण्यम स्वामी के उस पत्र पर मि.क्लीन ने चुप्पी क्यों साधी, जिसमें स्वामी ने टेलीकॉम मंत्री ए राजा के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की इजाजत प्रधानमंत्री से मांगी थी। सवाल स्वामी के पत्र से पहले जांच एंजेसियो की कार्रवाई पर भी मि. क्लीन की चुप्पी और देश की सत्ता की डोर थामे कारपोरेट के आगे नतमस्तक मि.क्लीन प्रधानमंत्री का है। स्वामी ने तो पहला पत्र 29 नबवंर 2008 को लिखा। लेकिन इस पत्र से एक हफ्ते पहले 21 नवबंर 2008 को ही सीवीसी यानी मुख्य सतर्कता आयुक्त ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर स्पैक्र्ट्रम घोटाले की समूची रिपोर्ट भेजते हुये ए राजा के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की प्रक्रिया शुरु करने की मांग की थी। लेकिन पीएमओ ने इस तथ्य पर कोई ध्यान देना तो दूर पीएमओ के एक डायरेक्टर ने यहां तक टिप्पणी की सीवीसी सिर्फ वाच डाग है। वह जांच करने वाली एजेंसी खुद को ना माने। सीवीसी को आज तक पीएमओ से राजा के मामले में भेजी रिपोर्ट पर कोई जवाब नहीं मिला है। कमोवेश सीवीसी ने जो बात कही थी, वही तथ्य नत्थी करके सुब्रमण्यम स्वामी ने 29 नवबंर 2008 को पहला पत्र प्रधानमंत्री को यह सोच कर लिखा कि उनकी पहल से तमिलनाहु की राजनीति में उनके सौदेबाजी का दायरा बढ़ेगा । क्योंकि स्पैक्ट्रम को लेकर गरमाती दिल्ली की राजनीति से दूर तमिलनाडु में जयललिता और करुणानिधि भी इस मुद्दे पर आमने-सामने खड़े थे और अभी भी खड़े हैं। और जयललिता का विरोध राजा को करुणनिधि की नजर में और बड़ा नेता ही बना रहा था। सुब्रमण्यम का पांसा तो कोई खेल राजनीतिक तौर पर नहीं कर पाया। इसलिये सुब्रमण्यम स्वामी पहले पत्र के बाद खामोश हो गये।

 

लेकिन 11 महिने बाद फिर 31 अक्टूबर 2009 को तभी जागे जब सीबीआई ने अपना खेल शुरु कर दिया। सीबीआई ने स्वामी की प्रधानमंत्री को भेजी दूसरी चिट्ठी से दस दिन पहले ही स्पैक्ट्रम घोटाले में ना सिर्फ इन्टैंट घोटाला की प्राथमिकी दर्ज की बल्कि छापा मारना भी शुरु किया। 22 अक्टूबर 2009 को सीबीआई ने डीओटी यानी डायरेक्ट्रोरेट आफ टेलिकाम्युनिकेशन के दिल्ली दफ्तर पर छापा मारा । जो फाइलें जब्त की, उसमें उन कंपनियो के दस्तावेज थे जिन्हे 2 जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस कौडिये के मोल दिया गया। खास कर वह आठ कंपनियां, जिन्होंने 20 से 25 सितंबर 2007 को कौडियो के मोल लाइसेंस लिया और ठीक एक साल बाद सिंतबर-अक्टूबर 2008 में लाखों करोडों की रकम का मुनाफा लेकर दूसरी कंपनियो को लाइसेंस बेचा । यूनिटेक वायरलेस, स्वान टेलिकाम,लूप टेलिकाम,सिस्टिमा,एलायंज,डाटा काम,श्याम टेलेलिंक लिं,टाटा टेलिसर्विसेस,आईडिया सेलुलर और स्पाइसलकम्युनिकेशन के दस्तावेज 22 अक्टूबर 2009 को ही सीबीआई ने अपने हाथ में ले लिये। और इसके अगले 24 घंटे के भीतर ही दिल्ली,मुबंई,चेन्नई,अहमदाबाद जयपुर, नोयडा, गुडगांव और मोहाली के 19 दफ्तरो पर छापा मारकर सीबीआई ने जो दस्तावेज जब्त किये उसने भ्रष्टाचार की उस नींव को ही हिला दिया। जिसमें टेलीकॉम मंत्री ने 22 अक्टूबर 2009 को डीओटी के दफ्तर में छापा पडने के बाद उसी दिन रात में पत्रकारों से यह कहा था कि उनका स्पेक्ट्रम को बांटने से सीधा कोई ताललुक सीबीआई ने नहीं बताया है। इसलिये इस्तीफा देने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता।

 

लेकिन 23 अक्टूबर को पडे सीबीआई छापे में जो दस्तावेज मिले उसमें स्पैक्ट्रम के लाइसेंस पाने वाली कंपनियों के उस पत्र की भी प्रतिलिपी सीबीआई को मिली, जो साफ बताती थी कि कैसे यह कंपनियां आगे अपने कितने शेयर बेचेंगी और उससे नये कितने लाइसेंस टेलीकॉम मंत्रालय को जारी करने पडेंगें। इतना ही नहीं, पत्र ऐसे भी मिले जिसमें नये लाईसेंस बेचने की एवज में लाइसेंस आवंटन से दूरसंचार विभाग को कितनी रकम मिलेगी और बाजार मूल्य कितना ज्यादा होगा। जिसके बदले कितनी रकम कहां पहुंचेगी। छापे में सीबीआई को चेन्नई के स्टेल ग्रूप से 225 मिलियन डालर में बिटेल को बेचे गये 45 फिसदी के दस्तावेज भी मिले और श्याम टेलिसर्विसेस ने रुसी फार्म सिसटिमा को को जो 70 फिसदी शेयर चार सौ मिलियन डालर से ज्यादा में बेचा थी उसके दस्तावेज भी मिले । साथ ही स्वान के दफ्तर से यूएई की कंपनी एतिसालात के साथ 45 फिसदी अंश बेचकर 4195 करोड रुपये की डिल और यूनिटेक वायलेस का नार्वें की कंपनी टेलीनार के साथ 60 फिसदी अंश बेचने की एवज में 6120 करोड रुपये की डिल के दस्तावेज भी मिले। जबकि ए राजा ने इन सभी को डेढ़ से पौने दो हजार करोड़ रुपये के बीच लाइसेंस शुल्क ले कर लाइसेंस दे दिया था। वहीं सीबीआई को उस दस्तावेज से भी हैरानी हुई, जो उन्हें यूनिटेक और स्वान के दफ्तर से मिला…और उसमें जिक्र इस बात का था कि कैसे इन दोनो कंपनियो ने जितनी अंशपूंजी बेची है, उसके एवज में नौ नये 2 जी लाइंसेसो के लिये दूरसंचार को सिर्फ दस हजार सात सौ बहत्तर करोड़ 68 लाख मिलेंगे। जबकि बाजार में इसकी कीमत सत्तर हजार बाईस करोड 42 लाख है। और 59 249 करोड 74 लाख रुपये कहां कैसे कैसे किधर बांटेंगे। अब सवाल है जब देश की सबसे बडी जांच एंजेसी सीबीआई ही संचार मंत्री और संचार मंत्रालय के घोटालो को खोद खोद कर निकाल रही थी तो फिर जांच रुकी कहां और कानूनी कार्रवाई जो ए राजा के खिलाफ शुरु होनी थी, वह हुई क्यों नहीं। जबकि इस दौर में उस वक्त के वित्त मंत्री पी चिदबंरम हो या कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज, दोनों के मंत्रालय ने राजा के स्पेक्ट्रक्म बेचने के तरीको को लेकर भी अंगुली उठाय़ी और उससे देश को लगते चूने का आंकड़ा भी कैग के जरीये भेजा। कैग ने आज नहीं बल्कि 2007 के आखिर में ही एक लाख चालीस हजार करोड़ रुपये के राजस्व की क्षति की बात कही थी। वही वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट भी पीएमओ गयी थी। वित्त मंत्रालय ने ट्राई यानी भारतीय दूरसंचार नियमन प्राधिकरण के वह दिशा निर्देश भी प्रधानमंत्री को जानकारी के लिये भेजे गये पत्र में नत्थी किये थे…जिसमें ट्राई ने संचार मंत्रालय से कहा था कि स्पैक्ट्रम लाइसेंस देते वक्त प्रतिस्पर्धात्मक प्रक्रिया अपनायी जानी चाहिये। क्योकि दूसरा कोई मापदंड है नहीं। वैसे भी 2001 में जहा सेलफोन के ग्राहक 40 लाख थे वह 2007 में बढ़कर चार करोड तक जा पहुंचे हैं। यह अलग बात है कि राजा ने ट्राई के दिशा निर्देश उसी दिन खारिज कर दिये जिस दिन यह जारी किये गये । लेकिन सवाल पीएमओ का है । जिसने वित्त मंत्रालय के सवालों पर भी खामोशी बरती। और इस दौर में संकेत हर किसी मंत्रालय को यही दिया गया दस्तावेजो की पड़ताल की जा रही हैं। लेकिन जांच को लेकर असल खेल फरवरी से शुरु हुआ। जब बजट तैयार करते वक्त हर घाटे की भरपायी को 3 जी स्पैक्ट्रम की कमाई से जोडा जाने लगा तो एक सवाल यह भी आया कि जब 3 जी स्पेक्ट्रम की कीमत इतनी ज्यादा है तो फिर 2 जी स्पेक्ट्रम की इतनी कम कमाई को लेकर भी सवाल उठेंगे । ऐसे में सीबीआई की इन्वेस्टिगेटिंग विंग ने ए राजा या कहे संचार मंत्रालय समेत जिन भी कॉरपोरेट हाउसों की कंपनियो के खिलाफ जो भी दस्तावेज अपने पास रखे हुये थे, उसे सरकार ने अपने कब्जे में करने के लिये सीबीआई की ही प्रासिक्यूशन विंग का सहारा यह कह कर लिया कि राजा के खिलाफ कानूनी कार्रावाई से पहले उस पर कानूनी राय जानना भी जरुरी है। जैसे ही दस्तावेज सीबीआई के प्रोसीक्यूशन विंग के पास पहुचें, वैसे ही कानून मंत्रालय ने तमाम दस्तावेज अपने पास मंगा लिये। यहां यह समझना जरुरी है कि सीबीआई तो स्वायत्त है लेकिन सीबीआई की प्रोसीक्यूशन विंग कानून मंत्रालय के अधीन आती है। और कानून मंत्री की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री को लेकर है। सीबीआई के छापो के बावजूद जब राजा ने खुद को पाक-साफ बताया तो विपक्ष ने संसद में खासा हंगामा किया और बजट सत्र के दौरान प्रधानमंत्री की मिं. क्लीन छवि को लेकर भी सवाल उठे।

 

याद कीजिये तो इसी साल मई के पहले हफ्ते में ही करुणानिधि जब दिल्ली पहुंचे और उन्होने 10 जनपथ जाकर सोनिया गांधी से मुलाकात की और पहले दिल्ली फिर चेन्न्ई पहुंच कर यही कहा कि राजा के इस्तीफा देने का सवाल ही पैदा नहीं होता । और राजा को हटाया गया तो समर्थन वापस ले लिया जायेगा।

 

जाहिर है समर्थन के मसले पर सोनिया गांधी को सियासत समझनी थी और राजा से लगे मंत्रीमंडल पर दाग को प्रधनमंत्री को साफ करना था। सोनिया ने डीएमके से समझौता किया और मिं क्लीन की छवि लिये प्रधानमंत्री ने कानून मंत्रालय से वह सारे दस्तावेज अध्ययन के लिये मंगा लिये, जिन्हे सीबीआई ने प्रोसीक्यूशन विंग से कानूनी राय के लिये भेजा था। जब सारे दस्तावेज पीएमओ चले गये तो फिर कानून मंत्रालय, प्रोस्क्यूशन विंग या फिर सीबीआई भी राजा पर कोई टिप्पणी कहा कर सकती है। सो हर कोई खामोश हो गया । पीएमओ में कानून मंत्रालय को देखने वाले डायरेक्टर ने बिना देर किये कानून मंत्रालय से ए राजा की सारी फाइल अपने पास मंगवा ली। कानूनी सलाह की हरी झंडी मिले बगैर सीबीआई इससे आगे जा नहीं सकती थी तो सीबीआई यही आकर रुक गयी। और यह जानकारी जब चेन्नई में डीएमके की तरफ से इस भरोसे के साथ लीक हुई की संचार मंत्री ए राजा के खिलाफ सीबीआई कानूनी कार्रवाई कर नहीं सकती है तो सुब्रमण्यम स्वामी हरकत में आये और तीसरा पत्र 8 मार्च को उन्होंने प्रधानमंत्री को भेजा। और उसके पांच दिनो बाद 13 मार्च 2010 को चौथा और आखिरी पत्र भेजकर राजा के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की इजाजत पर हां-नहीं अन्यथा सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की घमकी दी। असल में सुब्रहमण्यम स्वामी के पत्र का पेंच सिर्फ इतना ही है कि राजा को लेकर सरकार कोई भी पहल बिना पत्र का जवाब दिये या फिर स्वामी के आरोपो का जिक्र किये बगैर आगे बढ़ नहीं सकती है। इसलिये स्वामी ने जवाब आते ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उधर स्वामी के इस आखिरी पत्र का असर यही हुआ कि हफ्ते के भीतर पीएमओ का जवाब वही आया जो सीवीसी से लेकर सीबीआई तक को मौखिक तौर पर दी गयी थी कि, ” सबूतों का अध्ययन किया जा रहा है। कानूनी कार्रवाई की इजाजत देने पर विचार करना जल्दबाजी होगी। ”

 

लेकिन सबूत जो सीबीआई को मिले और सीबीआई ने जो दस्तावेज अपने तौर पर तैयार किये उसने झटके में पीएमओ की खामोशी के पीछे के उन तथ्यो को उघाड कर रख दिया जिसके आसरे सत्ता के कई चेहरे है । खासकर मनमोहन की इक्नामिक्स ने बाजार जरुर खोला लेकिन वह लाइसेंस राज से आगे महा-लाइसेंस राज की स्थिति में ले आया। और चूंकि इस दौर में मामला लाखो या करोड़ों का नही बल्कि अरबों-खरबों का हो चुका है तो उस पर लाईसेंस की निगरानी भी और कोई नहीं मंत्री ही रखना चाहते है। और मंत्रिमंडल के मुखिया प्रधानमंत्री की भूमिका इस महा-लाईसेंस राज में सर्वेसर्वा की भी हो गई। क्योकि सरकारी कान्ट्रैक्ट से लेकर खनन और इलेक्ट्रॉनिक का कैनवास जितना बडा होता जा रहा है, उसमें 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला तो एक शुरुआत है। जिसमें करुणानिधि गठबंधन की सौदेबाजी का दायरा बड़ा होता देख रहे हैं। वहीं ए राजा मंत्री बनने से लेकर लाइसेंस बांटने में जब बदनाम हुये तो जिन चेहरो ने राजा से मुनाफा पाया या कहे लाइसेंस पाया कारपोरेट के वही चेहरे राजा को दुबारा मंत्री बनवाने में जुटे। सीबीआई ने स्पैक्ट्रम घोटाले के दौर में सिर्फ नीरा राडिया का फोन टेप किया और करीब 5851 फोन कॉल को रिकार्ड में ला कर दस्तावेज का रुप दिया गया है, जो 8 हजार पन्नो का है। जाहिर है इन दस्तावेजो में वह सबकुछ है, जो लोकतंत्र के हर पाये को घोटाले से जोड़ता है। यानी सत्ता और कारपोरेट की फिक्सर के फोन टेप ने उन चेहरो को सामने ला दिया जो हमेशा से भ्रष्टाचार और फिक्सर के खिलाफ थे। 2009 में जब 22 मई को पहले कैबिनेट के मंत्रियो में ए राजा का नाम नहीं आया तो राजा को मंत्री बनवाने की मशक्कत उसी सत्ता ने की, जिनके मुनाफे तले देश को 1.76 लाख करोड़ का चूना लगा। कारपोरेट के दिग्गजो ने अपने चेहरे छुपाये और सामने बिचौलिये की भूमिका निभाने वाली नीरा राडिया को रखा। टेलीकाम,एवियशन,पावर और इन्फ्रास्ट्रक्चर जेसे क्षेत्रों में रिटायर्ड नौकरशाहो की फौज के जरीये चार कंपनियों की मालकिन नीरा राडिया ने ए राजा को मंत्री बनाने से लेकर संचार मंत्रालय दिलाने की जो सुपारी कारपोरेट दिग्गजो से ली। उसका असर यही हुआ रतन टाटा और मुकेश अंबानी से लेकर वित्तीय संस्थानो के प्रमुख और मीडिया के नामचीन चेहरे और न्यूज चैनल-अखबार तक का इस्तेमाल राजा को मंत्री बनाने से लेकर संचार मंत्रालय दिलाने तक में जुटा। भ्रष्टाचार कर देश को चूना लगाने के इस खेल में सिर्फ संचार मंत्रालय ही आया ऐसा भी नहीं है। अगर सीबीआई के दस्तावेजो को देखे तो टाटा किसी भी हालत में मुरोसोली मारन को संचार मंत्री बनने देना नहीं चाहते थे और सुनील मित्तल हर हाल में मारन को ही संचार मंत्री बनवाना चाहते थे। ऐसे में बिचौलियो या फिक्सर की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण होती है, इसका अंदाजा इससे भी लगता है कि नीरा राडिया, जो कि टाटा और मुकेश अंबानी ग्रुप के लिये काम कर रही थीं, उसे अपने साथ लाने के लिये सुनील मित्तल ने भी आफर किया। लेकिन नीरा राडिया ने टाटा का साथ नहीं छोड़ा और सुनिल मित्तल को ना कर दी। लेकिन देश को चूना लगाकार अपनी इंडस्ट्री को फैलाने का खेल भी इसी स्पैक्ट्रम घोटाले के दौर में सीबीआई को फोन काल टेप करने पर पता चले। मसलन फिक्की चैयरमैन तरुण दास जो कि हल्दिया पेट्रोकेम में सरकार के नुमाइन्दे थे , वह मुकेश अंबानी को हल्दिया पेट्रोकेम दिलाने में लग गये। ओर इसके तार भी नीरा राडिया के जरिये ही जुडे। मुकेश अंबानी के साथ मुबंई में डिनर से पहले सरकार के नुमाइन्दे नीरा राडिया से यह बात करते है कि वह किस तरह हल्दिया प्रोजेक्ट पर अंबानी का कब्जा करवा देंगे। सीबीआई की रिपोर्ट में इसका भी जिक्र है कि तरुण दास ने इसके लिये सीपीएम के नेताओ के पकड़ा और सीपीएम के निरुपम सेन ने सीपीएम महासचिव प्रकाश के साथ एक बैठक भी करवाई। भ्रष्टाचार का यह खेल सरकारी एजेंसियों में भी किस तरह घुसता जा रहा है, इसके संकेत भी सीबीआई द्वारा जब्त दस्तावेजो और फोन काल टेप में मिलते हैं कि पीइपलाइन रेगुलेटरी एंजेसी में भी रिलायंस के लोगो को घुसाया जाता है। और हाइड्रोकार्बन के डायरेक्टर जनरल वी के सिब्बल के लिये रिलायंस { आरआईएल } बंगाला भी खरीदता है। बातचीत में इसका जिक्र भी है कि आरकाम के 4 अधिकारियो के खिलाफ सीवीसी जांच कर रहा है उसे कैसे रोका जाये। या फिर मामले को कैसे रफा-दफा करवाया जाये । सरकार को चूना लगाने के इस खेल में नीरा राडिया वित्त मंत्रालय का भी दरवाजा खटकटाती है, जिससे रिलायंस गैस को खनिज तेल के निकालने में 7 बरस का टैक्स माफ हो जाये। इतना ही नहीं देश की संपत्ति गैस पर कब्जे की लडाई में जनहित याचिका को भी हथियार यही कारपोरेट अपने फायदे के लिये बनाते हैं। गैस युद्द में रिलायंस इंडस्ट्री लिं और एडैग {एडीएजी } एक दूसरे के खिलाफ जनहित याचिका का खेल भी खेलते हैं। और एक दूसरे अधिकारी को फंसाने के लिये स्टिंग ऑपरेशन को भी अंजाम देते हैं। कारपोरेट युद्द में एक दूसरे के खिलाफ कई एनजीओ को फांस कर पीआईएल दाखिल करवाने का काम बिचौलिया नीरा राडिया भी करवाती हैं। इस खेल में डीएलएफ का मामला भी आता है और रिल-आरपीएल के विलय का मामला भी। सीबीआई के अलावे ईडी और इन्कम टैक्स ने अब जब नीरा राडिया के खिलाफ केस दर्ज कर जांच शुरु की है तो उसमें नीरा राडिया की कंपनियो के बैंक एकाउंट और केश फ्लो भी कई नौकरशाहो और मीडिया के घुरन्धरों को कटघरे में खड़ा कर रहा है। खासकर नीरा राडिया की कंपनी वैश्नवी कारपोरट कंसलटेंट प्राईवेट लिं जो टाटा, यूनिटेक और मिडिया के एक अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड की सलाहकार थी। लेकिन इस कंपनी का ज्यादा काम मीडिया को मैनेज करना ही था। और ईडी के दस्तावेज इसके साफ संकेत देते है कि वैश्नवी के एकांउट से ही कइयो को चैक से लेकर घर, गाडी और अन्य सुविधाये दी गयीं। इन्वोर्समेंट डिपारटमेंट ने 24 नवबंर को नीरा राडिया को उन्ही एकाउंट की पूछताछ के लिये बुलाया भी। जाहिर है सीबीआई के यह समूचे दस्तावेज कहीं ना कही यह भी संकेत देते हैं कि काग्रेस के नेता हो या सरकार के मंत्री-नौकरशाह सभी उसी कॉकस का हिस्सा बन गये, जिसके प्रभाव से ए राजा मंत्री बने और मंत्री बनकर घोटाले करते रहें। इस कॉकस को परिभाषित करने के दौरान यह कहा जा सकता है मिं क्लीन को सही वक्त पर उचित जानकारी बाबुओं और कानून मंत्रालय ने नहीं दी। लेकिन सरकार या कांग्रेस की मुश्किल यही है कि अगर 2 जी स्पैक्ट्रम की जांच संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी करेगी तो यह परिभाषा भी सटीक नहीं बैठेगी क्योकि सारे दस्तावेज हर राजनीतिक दल के पास होंगे और फिर भ्रष्टाचार सिस्टम के हिस्से से निकल कर अपने आप में ही सिस्टम दिखायी देगा। और ईमानदारी का नारा काग्रेस के हाथ नहीं बचेगा साथ ही मिं क्लीन की छवि मनमोहन सिंह पर चस्पां नहीं हो पायेगी। ऐसे में जो नयी तस्वीर मनमोहन सिंह या मिं क्लीन की उभरेगी उसमें प्रधानमंत्री की हैसियत कुछ ऐसी हो जायेगी जैसे देश में किसी हादसे का उपाय प्रधानमंत्री के पास ना हो तो वह प्रधानमंत्री राहत कोष से रकम बांट कर अपनी जिम्मेदारी पूरी मान ले। और बाद में पता यह चले कि हादसा करवाने के पीछे जो थे, उन्हीं की रकम ही प्रधानमंत्री राहत कोष में थी। ठीक इसी तरह स्पैक्ट्रम के जरीये देश को बेचने वालों में कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचाने वाले भी हैं और आंकडों का जुगाड कर सत्ता बनाने वाले भी हैं। वहीं मनमोहन सिंह के चकाचौंघ भारत के सपने को पूरा करने वाले कारपोरेट भी है और उस चकाचौंध का गुणगाण करने वाला मीडिया भी ।