10 महीने पहले बीजेपी अध्यक्ष नीतिन गडकरी ने ही येदियुरप्पा की कुर्सी बचायी थी तो क्या दस महीने बाद गडकरी येदियुरप्पा की कुर्सी लेने पर राजी हो चुके हैं। यह सवाल इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि अक्टूबर 2010 में भी लोकायुक्त जस्टिस संतोष हेगडे ने अवैध खनन को लेकर सीधे येदियुरप्पा पर ही निशाना साधा था और तब आरएसएस येदियुरप्पा के साथ खड़ी हो गई थी। और गड़करी ने खुले तौर पर येदियुरप्पा को क्लीनचीट दी थी। तो फिर दस महीने में ऐसा क्या हो गया जो बीजेपी के भीतर से ही येदियुरप्पा को हटाने की आवाज आने लगी। असल में येदियुरप्पा बीजेपी शासित राज्यो में सिर्फ भ्रष्टाचार के प्रतीक भर नहीं है बल्कि बीजेपी के भीतर चल रही सियासी बिसात के सबसे अहम प्यादे बन चुके हैं।
गडकरी इस प्यादे को बीजेपी की दिल्ली चौकडी तले कटने नहीं देना चाहते हैं तो दिल्ली की चौकडी ना सिर्फ येदियुरप्पा को भ्रष्टाचार पर बनते राष्ट्रीय मुद्दे तले प्यादा बनाकर काटना चाहती है बल्कि भ्रष्टाचार में फंसी मनमोहन सरकार के खिलाफ येदियुरप्पा सबसे गाढ़ा दाग मनवाने के लिये बेताब है। असल में बीजेपी की इस दिल्ली लड़ाई के पिछे सवाल सिर्फ येदियुरप्पा का नहीं है। बल्कि भ्रष्टाचार की बिसात पर अपनी पैठ बनाने की सत्ता की अनूठी लड़ाई है। कर्नाटक में इस वक्त डेढ दर्जन से ज्यादा पावर प्लांट पाइप लाइन में है। जिसमें नौ निजी कंपनियां ऐसी है जो सीधे बीजेपी की अंदरुनी सियासी संघर्ष में फिलहाल सत्ता के करीबी हैं। कर्नाटक का जो सच लोकायुक्त ने अपनी रिपोर्ट में दिखाया है, वह चार बरस में 16 हजार 85 करोड के राजस्व का चूना लगने का है। लेकिन पावर सेक्टर का खेल बताता है कि निजी कंपनियो के जरीये पावर प्लांट लगाने के लाइसेंस के पीछे 50 हजार करोड़ से ज्यादा के वारे न्यारे हैं। इसीलिये कर्नाटक पावर कारपोरेशन को सिर्फ दो पावर प्लाट से जोड़ा गया है बाकि की फेरहिस्त में रिलायंस, इंडो-भारत पावर, मुकुंद लिमेटेड,सुराना पावर, एटलस पावर , कोस्टल कर्नाटक पावर, और पावर कंपनी आफ कर्नाटक का नाम है जिसके पीछे इस वक्त बीजेपी के वही कद्दावर है जो नहीं चाहते कि येदियुरप्पा कुर्सी छोड़ें।
इसी तरह हाउसिंग और राजस्व मंत्रालय में भी तीस हजार करोड़ से ज्यादा का खेल जमीन पर कब्जे को लेकर चल रहा है और संयोग से दोनो की मंत्रालय के मंत्रियों के नाम घोटाले में आये हैं। इसलिये बैगलूर में सत्ता का जो संघर्ष योजनाओं के खेल से उभारता है वह दिल्ली पहुंचते पहुंचते भ्रष्टाचार की सियासी चाल से जुड़ जरुर रहा है । मगर उसका रंग अब भी घंघे से कमाई का ही है। गडकरी बतौर बीजेपी अध्यक्ष पार्टी के भीतर सीधे संघर्ष के मूड में हैं। क्योंकि उन्हे लगने लगा है कि अगर येदियुरप्पा पर फैसला आडवाणी के घर से निकलेगा तो उनकी हैसियत घटेगी। इसलिये फैसले की नब्ज गडकरी अपने हाथ में रखना चाहते हैं, चाहे आडवाणी के घर बैठक से जो भी निकले। इसीलिये येदियुरप्पा भी जिस फार्मूले के साथ दिल्ली पहुंचे हैं, उसमें चेतावनी दिल्ली की चौकडी के लिये ही है, जो अनंत कुमार कर्नाटक की कुर्सी पर भैठाने के लिये बैचेन है, जिससे करोड़ों के वारे-न्यारे का पाला झटके में बदल जाये।
उधर येदियुरप्पा का फार्मूला सीधा है। लोकायुक्त की रिपोर्ट में उनका नाम बतौर मुख्यमंत्री है। जबकि भ्रष्टाचार के घेरे में जो चार मंत्री फंसे है उनमें से दो मंत्री अंनत के करीबी हैं। राज्य के राजस्व, स्वास्थ्य , हाउसिंग और पर्यटन मंत्री का नाम लोकायुक्त की रिपोर्ट में है। येदियुरप्पा का कहना है पहले तो चारो मंत्रियो को हटाना होगा। फिर लोकायुक्त की रिपोर्ट में चूंकि काग्रेस के राज्यसभा सांसद लाड और कुमारस्वामी का भी नाम है तो भ्रष्टाचार के फंदे में उन्हे फांसने के लिये कोई व्यूहरचना करना जरुरी है। और इसके लिये बीजेपी सांसद सदानंद गौडा की अगुवाई में पहल तुरंत शुरु करनी चाहिये। यहां यह जानना भी जरुरी है कि सदानंद का मतलब कर्नाटक की सियासत में येदियुरप्पा की छांव का होना है। तो येदियुरप्पा का अपना चक्रव्यूह अपनों के जरीये बीजेपी की दिल्ली चौकडी के ही पर कतर अपने विकल्प का भी ऐसा रास्ता बनाने की दिशा में है, जहा गद्दी जाने पर भी सत्ता की डोर येदियुरप्पा के ही हाथ में रहे। और इस पूरे खेल की सियासी बिसात नीतिन गडकरी अपनी हथेली पर खेलना चाहते है जिससे आडवाणी के घर बैठक करने वालो का यह एहसास हो कि रांची में अर्जुन मुंडा से लेकर बैगलूरु में येदियुरप्पा तक को कुर्सी पर बैठाने या हटाने के पीछे वही रहेंगे। क्योंकि अब बीजेपी में अंदरुनी सत्ता का संघर्ष है कही ज्याद तीखा हो चला है क्योंकि भ्रष्टाचार में घिरती सरकार के सामने खडी बीजेपी किसके कहने पर किस रास्ते चले जो असल नेता कहलाये संकट यही है। इसलिये येदियुरप्पा की चलेगी तो दिल्ली की बीजेपी चौकडी की पोटली हमेशा खाली ही रहेगी और बीजेपी अद्यक्ष नीतिन गडकरी की पोटली पर आंच आयेगी नहीं ।