किसी भी देश की विदेश नीति और विदेश व्यापार को संचालित करने के लिए नेताओं और अफसरों की विदेश यात्राएं जरुरी होती हैं। जब विदेश-यात्राएं होंगी तो खर्च भी होगा लेकिन वर्तमान सरकार का खर्च पिछली सरकार से दुगुना हो गया है। पिछले साल प्रधानमंत्री और उनके मंत्रियों ने 567 करोड़ रु. खर्च किए तथा अफसरों ने 100 करोड़ रु. खर्च किए याने कुल मिलाकर 600-700 करोड़ रु. विदेश यात्राओं पर खर्च हो गए।
साल भर में हमारी सरकार ने लगभग दो करोड़ रु. रोज विदेश यात्राओं पर खर्च कर दिए। मोदी के मंत्रिमंडल में 64 सदस्य हैं जबकि कांग्रेसी मंत्रिमंडल में 75 सदस्य थे।
यहां सवाल यह है कि यह खर्च दुगुना कैसे हो गया? क्यों हो गया? संसद एक कमेटी बिठाकर इसकी जांच क्यों नहीं करती? यह ठीक है कि मंत्रियों और अफसरों की जेब में यह पैसा नहीं जाता। वे किसी तरह की लूटपाट नहीं करते लेकिन वे प्रथम श्रेणी में यात्रा क्यों करते हैं? उनका हवाई किराया तीन-चार गुना होता है। विदेशों की पांच या सात-सितारा होटलों में ही वे क्यों ठहरते हैं? वे हमारे दूतावासों के अधिकारियों के घरों या दूतावास के अतिथि-गृहों में क्यों नहीं ठहर सकते हैं? वे एक-एक पार्टी पर लाखों रु. क्यों खर्च करते हैं? शराब और मांस की दावतें उड़ाना जरुरी क्यों है? मालदार मुल्कों की नकल करना जरुरी क्यों हैं?
हमारे मंत्रियों और अफसरों को मालदार मुल्कों की नकल करने की बजाय अपने आचरण से तीसरी दुनिया के देशों के सामने सादगी की मिसाल पेश करनी चाहिए।
ऐसा करें तो यह खर्च एक-चौथाई ही रह जाएगा। एक तरफ यह अंधाधुंध खर्च है और दूसरी तरफ हाल यह है कि दो साल पूरे होने को हैं लेकिन अभी तक काले धन का कोई अता-पता नहीं है। हर नागरिक को 15 लाख क्या, 15 रु. भी नहीं मिले हैं। ‘बैंक आफ इटली’ के ताज़ा अंदाज के मुताबिक विदेशों में भारत का लगभग 152 से 181 बिलियन डालर कालाधन छिपा पड़ा है। यह लगभग 10 लाख करोड़ रु. तो नकद है, बेनामी जायदाद और शेयरों में पता नहीं कितना है? आम आदमियों पर टैक्स पर टैक्स थोपे जा रहे हैं लेकिन सरकार न तो अपना खर्च कम कर रही है और न ही विदेशों से कालाधन वापस ला रही है।