जब रोम में आग लगी थी तो नीरो चैन से बंसी बजाते हुए कैसा दिख रहा था इसका आंखो देखा हाल तो नहीं जाना जा सकता लेकिन आदिवासियों के नाम पर बने राज्य छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री रमन सिंह के जन्मदिन के जश्न के दौरान जब एक ही गांव में लुप्त होती एक जनजाति के 13 लोगों की डायरिया से मौत की खबर आई तो लगा नीरो ने वैसा ही कुछ किया होगा जैसा रमन सिंह और उनके समर्थक छत्तीसगढ़ में कर रहे हैं। खुद को गर्व से आदिवासी राज्य का मुख्यमंत्री बताने वाले रमन सिंह आदिवासी सभ्यता और संस्कृति की रक्षा कर पायें या न कर पाये लेकिन उनकी संवेदनहीनता का चरम उनके व्यवहार में दिखाई पड़ता है। उस पर राज्य की रमनभक्त मीडिया का आलम यह कि कोई सवाल उठाने को तैयार नहीं कि आदिवासियों की मौत पर मातम मनाएं या और अधिक गहरे जश्न में डूब जाएं?
बिलुप्त होती आदिवासियों को संरक्षण के लिए केंद्र सरकार ने उन्हें संरक्षित किया है। करोड़ों का फंड देकर उनके विकास की बात कही जाती है। समाज के मुख्यधारा से जोड़ने का दावा किया जाता है। लेकिन हकीकत यह है कि बीमार होने पर ये आदिवासी जानवरों की तरह तड़पते हुए मौत के मुंह में समाज रहे हैं। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में महज एकदिन में संरक्षित सूची के 7 आदिवासियों की मौत डायरिया से हो गई। जिस समय छत्तीसगढ़ के सत्तापक्ष का पूरा अमला मुख्यमंत्री रमन सिंह के 60वें जन्मदिन पर जश्न में डूबा रहा, उस वक्त इस तरह की मौत सुशासन के दावों को तोड़ती है। मुख्यमंत्री के 60वें बसंत के मौके पर छत्तीसगढ़ जनसंपर्क के एक वरिष्ठ अधिकारी का दावा है कि डा. रमन सिंह के अर्थशास्त्र में राज्य के विकास की रामबाण औषधियां हैं। लेकिन आश्चर्य होता है कि इस तरह की मौत को रोकने में मुख्यमंत्री की रामबाण फुस्स हो गई।
छत्तीसगढ़ के दुर्गम पहाड़ियों और भीषण जंगलों से घिरे कमार-भुजिया बहुल ग्राम आमामोरा-ओढ़ में उल्टी-दस्त से 17 अक्टूबर को ही दिन में 7 लोगों की मौत हो गई। इससे पहले भी एक पखवाड़े के भीतर 6 लोगों की जान जा चुकी है।
13 लोगों की अकाल मौत से प्रभावित गांव सहित आस-पास के गांव में रहने वाले ग्रामीण भी सहम गये हैं। जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर विकासखंड मैनपुर के कमार-भुंजियां बाहुल ग्राम आमामोरा-ओढ़ में पिछले महीने भर से डायरिया का प्रकोप जारी है। शनिवार तक उल्टी-दस्त से मरने वालों की संख्या 6 तक थी, जो रविवार को बढ़कर 13 तक पहुंच गई है। शनिवार की शाम व रविवार की सुबह तक 7 ग्रामीणों की इस बीमारी ने जान ले ली। उल्टी-दस्त से अब तक जिन ग्रामीणों की मौत हुई है उनमें आमामोरा कमार पारा निवासी बुधराम-समारू राम, ईतवारी-बुधराम 16 साल, पीलाबाई-गांडा राम 27 साल, अमलोर गांव के सुमेर सिंग-बुद्धू राम भुंजिया, बुधयारिन बाई-बेहड़ा राम,ओंढ़ ग्राम ओढ़ के श्यामलाल-समारू, जोबा पारा ग्राम के चैतराम-नजर सिंग, बिंदा-डोमार सिंह भुंजिया 2 साल, दुखबाई-धुरवाराम,पुन्नी बाई-डमरूधर, बामन व एक पांच साल का बच्चा सहित कुल 13 ग्रामीण शामिल हैं। जिले में उल्टी-दस्त से होने वाली मौतों के बढ़ते आंकडेÞ ने स्थानीय जिला प्रशासन के होश उड़ा दिये हैं।
तत्काल उपचार का अभाव
पीड़ितों ने बताया की शुरुआत में सर में दर्द होने के बाद सीने में दर्द होने लगता है फि र पेट को संक्रमित कर रहा है। इसके 2 से 3 घंटे पश्चात पीड़ितों की हालत गंभीर हो जाती है। तत्काल उपचार के अभाव में जान भी जा रही है। आमामोरा के सरपंच ने हालांकि मामले की जानकारी स्वास्थ्य विभाग तक पहुंचाया दिया था। किंतु चिकित्सकों के मुताबिक तब तक काफी देर हो चुकी थी। जानकारी के अनुसार उल्टी-दस्त का प्रकोप गांव में झरीया का पानी पीने के कारण फैला है, गांव में लगे हैण्ड पंपो में पानी गंदा निकलने के चलते यहां के ग्रामीण झरीया का पानी पीने मजबूर हैं। इसी प्रकार इन गांवों तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग नहीं होने के कारण कोई भी प्रशानिक अधिकारी नहीं पहुंच पाते और ना ही स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी आना चाहते हैं।
सायकल से पहुंचे डीएम, एसपी
उल्टी-दस्त से लगातार हो रही ग्रामीणों की अकाल मौत को गंभीरता से लेते हुए जिला कलेक्टर दिलीप वासनीकर व पुलिस अधीक्षक रामगोपाल गर्ग सहित एसडीएम जीपी चौधरी मोटर सायकल पर सवार होकर पहाड़ी पर बसे कमार-भुंजिया की बस्ती आमामोरा पहुंचे। वही अपने साथ स्वास्थ्य विभाग का एक अमला भी लिया हुआ था। जिला मुख्यालय के अधिकांश अधिकारी धुर नक्सल क्षेत्र के गांव आमामोरा में भारी पुलिस बल के सुरक्षा घेरे में आमामोरा गांव पहुंचे थे।
नीम के पत्तो का धुआं का सुझाव
जिला प्रशासन के अधिकारियों संक्रमित गांव पहुंच कर पीड़ितों से मुलाकात कर उत्पन्न हुए हालात का बारीकी से जायजा लिया। अधिकारी पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए आवश्यक सभी कार्यवाही तत्काल मौके पर ही कर रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग का पूरा अमला पीड़ितों को राहत देने में लगा हुआ है। पीड़ितो को हर जरूरत की दवाइयां उपलब्ध करा रहे हैं। वहीं गांव में घूम-घूम कर बचाव के उपाय ग्रामीणों को बता रहे हैं। डाक्टरों ने ग्रामीणों को पानी को उबाल कर पीने की सलाह दी है, वहीं नीम पत्ते का धुआं घरो में करने की भी सलाह दी है। अभी भी यहां के हालात गंभीर बने हुए हैं।