दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बीए और एमए की उपाधियों को लेकर जो आरोप लगाए थे, उन्हें अखबारों और टीवी चैनलों पर जगह तो मिल रही थी लेकिन उनके प्रति कोई गंभीर नहीं था। सब लोग उसे लगातार चलने वाली नौटंकी का हिस्सा समझ रहे थे लेकिन आज जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और वित्तमंत्री अरुण जेटली ने मोदी की मूल डिग्रियों को पत्रकारों के सामने पेश कर दिया तो सारे मामले ने तूल पकड़ लिया। शाह और जेटली का जवाब ‘आप’ पार्टी के नेताओं ने तुरंत दिया। उन्होंने पत्रकार-परिषद बुलाई और यह सिद्ध करने की कोशिश की कि मोदी की दोनों डिग्रियां फर्जी हैं और शाह व जेटली देश को गुमराह कर रहे हैं। वे फर्जीवाड़े का अपराध कर रहे हैं।
शाह और जेटली ने मोदी की बीए और एमए की डिग्रियां और एमए की मार्कशीट भी पत्रकारों को दिखाई। इस पर ‘आप’ पार्टी के नेता आशुतोष ने दो शंकाएं खड़ी कर दीं। एक तो उन्होंने यह पूछा कि बीए की डिग्री में मोदी का नाम ‘नरेंद्रकुमार’ लिखा है और एमए की डिग्री में सिर्फ ‘नरेंद्र’ लिखा है। यह अंतर क्यों? दूसरा, उनकी एमए की डिग्री 1978 की है लेकिन उसकी मार्कशीट पर 1977 लिखा है। ऐसा क्यों? उन्होंने अपने नाम के आगे से ‘कुमार’ हटाया तो उन्होंने अदालत में हलफनामा क्यों नहीं दिया?
आशुतोष इन तर्कों के आधार पर मोदी को दोषी नहीं ठहरा सकते। नाम लिखने में हमारे दस्तावेजों में अक्सर गलतियां हो जाती हैं। मेरा नाम वेदप्रताप है लेकिन मेरे पंजाबी मित्र मुझे अक्सर ‘वेदप्रकाश’ बना देते हैं। जहां तक मार्कशीट और डिग्री के वर्ष में अंतर होने का प्रश्न है, परीक्षा 77 में हो सकती है ओर डिग्री 78 में मिल सकती है। यह कौन बड़ी बात है?
यदि सचमुच मोदी ने ये परीक्षाएं पास नहीं की हैं और अपने चुनावी दस्तावेजों में गलत सूचना दी है तो यह चिंता का विषय है। और यदि शाह और जेटली ने उस झूठ को ढंकने की कोशिश की है तो यह और भी गंभीर मामला बन जाता है। इतना गंभीर कि यह इस सरकार को ही ले बैठेगा लेकिन मुझे लगता है कि मोदी, शाह और जेटली इतना बड़ा खतरा मोल नहीं ले सकते। संभावना यही है कि केजरीवाल के आरोप कच्चे और निराधार निकलें। यदि ऐसा हुआ तो केजरीवाल की छवि ध्वस्त हो जाएगी। केजरीवाल और उनके साथी, जो अच्छा काम कर रहे हैं, वह भी बट्टेखाते में चला जाएगा। आजकल केजरीवाल आगस्ता-वेस्टलैंड हेलिकाप्टर में मोदी-सोनिया की मिलीभगत का जो आरोप लगा रहे हैं, वह भी एकदम हास्यास्पद बन जाएगा। बेहतर यही होगा कि ‘आप’ पार्टी के नेता अपना ध्यान रचनात्मक कार्यक्रमों पर लगाएं ताकि देश में नेतृत्व का जो शून्य उभर रहा है, उसे वे बखूबी भर सकें।