नरेंद्र मोदी ने अपने ‘टाउन हॉल’ भाषण में गोरक्षकों के सवाल पर देश को जो टालू मिक्सचर पिलाया था वह अब दो टूक बयान में बदली है। कल उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं की सभा में नाटकीय ढ़ंग से अपनी बात कही। उन्होंने कहा कि ‘यदि तुम दलित पर गोली चलाना चाहते हो तो पहले मुझ पर चलाओ।’ क्या कभी किसी प्रधानमंत्री ने ऐसा मार्मिक बयान दिया? इस बयान की गहराई ने पता नहीं दलितों को कितना छुआ लेकिन विरोधी दल के नेताओं की नींद हराम कर दी। उन्हें लगा कि जो दलित वोट बैंक उनके हाथ अचानक आ लगा था, वह कहीं खिसक न जाए।
मोदी की वे सराहना करते, इसकी बजाय वे उनकी आलोचना कर रहे हैं। वे मांग कर रहे हैं कि विश्व हिंदू परिषद और संघ के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए लेकिन वे हैरान हो गए होंगे कि विहिप और संघ, दोनों ने मोदी के बयान का समर्थन किया है। दोनों संगठनों ने गोहत्या के नाम पर दलितों की हत्या की भर्त्सना की है। यहां गौर करने लायक बात यह है कि चेला अपने गुरु को पट्टी पढ़ा रहा है। संघ और विहिप मोदी की हां में हां मिला रहे हैं। ये संगठन पहले क्यों नहीं बोले? जब लोहा गरम था, उन्होंने चोट क्यों नहीं की? वे उंघते क्यों रहे? यह चिंता का विषय है।
मोदी ने अपने हैदराबाद भाषण में सिर्फ दलितों पर हमले की भर्त्सना की है। हमले के कारण पर वे अभी भी कन्नी काट गए हैं। उन्होंने तथाकथित ‘गोरक्षकों’ की हिंसा और मूर्खता के असली कारण पर उंगली नहीं रखी है जबकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महासचिव भय्याजी जोशी ने दो-टूक बयान दिया है। जैसे पाकिस्तान हमारे और तुम्हारे व अच्छे-बुरे आतंकवादियों में फर्क करता है, वैसे ही ‘गोरक्षकों’ में भी फर्क करना उचित नहीं है। जो भी ‘गोरक्षक’ गाय के नाम पर ‘नरभक्षक’ बनता है, उसे आतंकवादी माना जाना चाहिए।
आप जिन्हें अच्छा गोरक्षक या गोसेवक समझते हैं, उनमें से 99 प्रतिशत लोगों का गाय से कुछ लेना-देना नहीं है। वे गाय की सेवा नहीं, गाय की राजनीति करते हैं। यह सरकार उन्हें गोसेवा के लिए प्रेरित कर सके तो देश का बड़ा कल्याण हो लेकिन ऐसा करने के लिए नेताओं के पास गांधी और विनोबा-जैसा नैतिक बल होना चाहिए। वह तो शून्य है। उनके पास केवल कुर्सीबल है! लेकिन फिर भी संतोष का विषय है कि सरकारी नेता दलितों पर होने वाली हिंसा के खिलाफ खुलकर बोले तो हैं। देर आयद, दुरस्त आयद!