शब्दों की भी क्या माया है? द्रौपदी ने दुर्योधन को ‘अंधे का पुत्र अंधा’ क्या कहा, इस एक वाक्य ने महाभारत करवा दिया। दयाशंकर सिंह के तो एक शब्द ने ही भाजपा की जमीन हिला दी। हजार साल पहले राजा भर्तृहरि ने राजनीति को या नृपनीति को वारांगना (वेश्या) कहा था लेकिन भाजपा नेता ने नृप को ही वारांगना कह दिया।
भाजपा ने अपने उप्र के उपाध्यक्ष के विरुद्ध जितनी सख्त कार्रवाई की है, क्या कभी किसी नेता के खिलाफ किसी पार्टी ने की है? सिर्फ एक शब्द के कारण! क्यों की है, यह कार्रवाई? क्योंकि दयाशंकर ने बसपा की नेता मायावती को ‘वेश्या’ कह दिया था। यह एक शब्द बम बन गया है। पता नहीं, वह भाजपा के कितने वोटों का विनाश करेगा। उप्र में 21 प्रतिशत और पंजाब में 32 प्रतिशत वोट दलितों के हैं। मायावती दलित नेता हैं। इसलिए मायावती का अपमान देश के करोड़ों दलितों का अपमान माना जा रहा है।
दयाशंकर ने ‘वेश्या’ शब्द का प्रयोग किया लेकिन उसने मायावती के चरित्र के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा। कोई इशारा तक नहीं किया। स्वयं मायावती ने स्वीकार किया है कि वे दूसरे नेताओं की तरह धन्ना-सेठों से पैसा नहीं खाती हैं बल्कि आम आदमियों से पैसा लेती हैं। पैसा खींचने की इस प्रक्रिया से कौन नेता बचा है? लेकिन मायावती में इतना दम-खम तो है कि वे साफ-साफ कहती हैं कि हां, मैं पैसा लेती हूं। मैं तोपों और पनडुब्बियों की दलाली में पैसा नहीं खाती हूं। क्या पैसे खाना या पैसे लेकर टिकिट बेचना वेश्यावृत्ति है? बिल्कुल नहीं है।
यह राजनीति है। फिर मैं भर्तृहरि को उद्धृत करता हूं। भर्तृहरि पूछते हैं कि राजनीति क्या है? वे कहते हैं- नित्यव्यया और नित्यधनागमा च! जो धड़ल्ले से खर्च करती है और धड़ल्ले से रोज धन बटोरती है। इसे ही श्लोक के अंत में भर्तृहरि ‘वारांगना’ (वेश्या) कह देते हैं।
दयाशंकर यह फर्क नहीं समझ सके। एक शब्द के खिसककर दूसरी जगह चिपक जाने से दयाशंकर फंस गए। लेकिन मायावती और मायावती के चेलों ने गजब कर दिया। उनकी किस्मत का जो छींका अचानक टूटा था, उसकी मलाई उन्होंने नाली में बहा दी। उन्होंने दयाशंकर की पत्नी और बेटी के साथ जैसा बर्ताव करने की ललकार लगाई, वह तो शुद्ध अपराध है। वेश्यावृत्ति अनैतिक है लेकिन वह तो सहमति और स्वेच्छा से होती है लेकिन मायावती और उनके चेलों ने बलात्कार की धमकी खुले-आम दे डाली है। दयाशंकर की पत्नी और बेटी को भीड़ के सामने पेश करवाने के अर्थ क्या हैं? दयाशंकर ने शब्द-चयन में मूर्खता की तो बसपा ने अर्थ-चयन में महामूर्खता कर दी। उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई, जो होगी, सो होगी लेकिन भाजपा का जो नुकसान हुआ था, उसकी बहुत हद तक भरपाई हो गई। सेर को सवा सेर मिल गया। यह मामला अभी और तूल पकड़ेगा। भारत के भाग्य में यही फोकटिया राजनीति है।