आख़िरकार भारत सरकार के राष्ट्रीय जाँच अभिकरण (एन.आई.ए) ने २००८ में मालेगांव में हुये बम धमाकों के आरोपियों के खिलापाँच साल बाद ४५०० पन्नों का आरोप पत्र न्यायालय में दाख़िल कर ही दिया । इस आरोप पत्र में न तो कहीं स्वामी असीमानन्द का ज़िक्र है और न ही साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का । लेकिन पिछले कुछ सालों में इन दोनों के नाम पर संघ को आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त सिद्ध करने के लिये मीडिया के एक ख़ास वर्ग के साथ मिल कर सोनिया कांग्रेस और भारत सरकार हिन्दु आतंकवाद की काल्पनिक अवधारणा को स्थापित करने के लिये जितना प्रचार कर सकती थी वह उसने कर लिया था । एन .आई.ए का जाँच करने का अपना ख़ास मुसोलिनी तरीक़ा है । जांच के पहले भाग में सरकार को विरोध पक्ष के खिलाफ भ्रामक प्रचार के लिये सामग्री मुहैया करना है । जांच की इस सामग्री का सत्य से कुछ लेना देना नहीं होता । लेकिन इसका प्रस्तुतिकरण इस प्रकार किया जाता है कि दूर से देखने वाले को इसमें सत्य का आभास दिखाई दे । मालेगांव बम विस्फोट में इतने साल से यह एजेंसी यही धंधा कर रही थी । मालेगांव में विस्फोट का सारा षडयंत्र प्रज्ञा ठाकुर का रचा हुआ है , इसका एन आई ए ने मीडिया के साथ मिल कर व्यापक प्रचार किया । साध्वी को पकड़ कर , जांच के नाम पर पुलिस ने उसे पीटा , केवल यह कहने मात्र से काम चलने वाला नहीं । उसके साथ अमानुषिक व्यवहार किया गया । ऐसा व्यवहार जो एक साध्वी के साथ तो दूर , किसी सामान्य स्त्री के साथ भी नहीं किया जाता । धोखे से साध्वी को खाने में अंडे दिये गये । उनसे मनमानी बयान लेने के लिये थर्ड डिग्री तरीक़ों का इस्तेमाल किया गया । गिरफ़्तार करने के कई दिन बाद सरकारी रिकार्ड में उनकी गिरफ़्तारी दिखाई गई । इस बीच न जाने जाँच अधिकारी सावंत उन्हें कहाँ कहाँ घुमाता रहा और मार पीट करता रहा । सरकार को मुसलमानों के तुष्टीकरण हेतु अपनी ‘हिन्दु आतंकवाद’की थ्योरी सही सिद्ध करने के लिये साधु सन्तों की ज़रुरत थी ,और इसी जरुरत की पूर्ति हेतु साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और असीमानन्द को शारीरिक यातनाएं दी जा रहीं थीं , ताकि मुल्ला मौलवियों को बताया जा सके कि सरकार निष्पक्ष और पंथ निरपेक्ष है । अन्त में सोनिया कांग्रेस की इच्छा पूरी हुई और एक दिन पता चला कि जेल में प्रज्ञा ठाकुर कैंसर की एडवांस स्टेज पर पहुंच गई है । जिन दिनों सोनिया गान्धी अपने कैंसर का इलाज करवाने भारत के लोगों के पैसे ( कांग्रेस का कहना है कि सोनिया का इलाज पार्टी के पैसे से हुआ है , लेकिन वह पैसा भी तो भारत के लोगों का ही है) से अमेरिका में अपना आप्रेशन करवा रहीं थीं , उन्हीं दिनों भारत सरकार की राष्ट्रीय जाँच एजेंसी कैंसर का इलाज करवाने के लिये प्रज्ञा ठाकुर की ज़मानत की अर्जी का विरोध कर रही थी । प्रज्ञा ठाकुर भी बाहर आकर अपना कैंसर का इलाज करवाना चाहती थीं । पिछले पाँच साल से प्रज्ञा ठाकुर को सोनिया गान्धी की सरकार ने बिना किया प्रमाण के जेल में रखा हुआ है और आज २०१३ में वहीं जाँच एजेंसी कह रही है कि उसके पास प्रज्ञा के खिलाफ कोई सबूत नहीं था । सोनिया कांग्रेस जानती है कि अब सबूत की ज़रुरत भी नहीं है क्योंकि प्रज्ञा ठाकुर को कैंसर हो चुका है । हिन्दु आतंकवाद की अपनी कल्पित थ्योरी को सिद्ध करने के लिये सरकार द्वारा अपनाया गया यह तरीक़ा शायद इटली के तानाशाह मुसोलिनी की पुलिस द्वारा अपनाये गये तरीक़ों से भी कहीं ज़्यादा ख़तरनाक है । हिटलर के गैस चैम्बर अपने शिकार का एक बार अन्त कर देते थे लेकिन सोनिया कांग्रेस के जेल चैम्बर में प्रज्ञा ठाकुर को पिछले पाँच साल से निरन्तर तिल तिल कर मरना पड़ा है । उनके शरीर के भीतर कैंसर का मानव बम हर क्षण टिक टिक कर रहा है , लेकिन सरकार उसे बाहर निकालने की इजाज़त देने को तैयार नहीं है और अब पाँच साल बाद पता चलता है कि उसका कोई दोष नहीं है ।
सरकार ने लगभग यही क़िस्सा डांग में चर्च की राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को रोक देने वाले स्वामी असीमानन्द के साथ दोहराया । सोनिया कांग्रेस के लिये असीमानन्द की अहमियत तो और भी ज़्यादा थी । असीमानन्द को जेल में डाल देने से चर्च के रास्ते का काँटा भी साफ़ हो गया और चर्च को डाँग के जनजाति समाज के लोगों के मतान्तरित करने में आ रही कठिनाई भी दूर हो गई । असीमानन्द को यदि आतंकवाद का अपराधी सिद्ध कर दिया जाये तो दुनिया भर में सोनिया कांग्रेस हिन्दु आतंकवाद को प्रचारित कर सकेगी । इससे भारत में मुस्लिम वोटों की फ़सल काटी जा सकेगी और शेष विश्व में चर्च के हाथ में हिन्दु विरोध का हथियार थमाया जा सकेगा । सोनिया कांग्रेस चर्च को इससे बढ़िया तोहफ़ा और भला क्या दे सकती थी ? इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये असीमानन्द पर एन आई ए ने जो अत्याचार किये उसकी कहानी अलग है । यहाँ तक कि मार मार कर उनसे एक इकबालिया बयान भी लिखवा लिया गया । उस इकबालिया बयान में उनसे इन्द्रेश कुमार का नाम भी लिखवा लिया गया । एन आई ए भी जानती थी कि जाँच की सारी स्क्रिपट सोनिया कांग्रेस के राजनैतिक हितों और चर्च के मज़हबी हितों की रक्षा की ख़ातिर लिखी जा रही थी और उससे तैयार डाक्यूमैंटरी मीडिया की मदद से दुनिया भर को दिखाई जा रही थी । सोनिया कांग्रेस को हर हालत में हिन्दु आतंकवाद स्थापित करना था और उसके लिये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ज़िम्मेदार ठहराना था ।
एन आई ए यानि राष्ट्रीय जाँच अभिकरण को जांच के पहले भाग में केवल यह स्क्रिप्ट लिख कर सरकार को देनी भर थी । अलबत्ता इतना तो एन आई ए भी जानता था कि यह कहानी ज़्यादा देर तक नहीं चलाई जा सकती । इसे कहीं न कहीं तो रोकना ही पड़ेगा ।जांच का दूसरा भाग , पांच साल से चल रही डाक्युमैंटरी को रोक कर अब आरोप पत्र के रुप में न्यायालय में पेश किया गया है । और घोर आश्चर्य इस में न कहीं असीमानन्द हैं और न ही साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ! जब कि डाक्युमैंटरी के मुख्य पात्र ही ये दोनों थे । इससे सरकार की दशा और दिशा दोनों गी सबके सामने आ गये हैं ।
जाँच के मामलों में इन जाँच एजेंसियों की विश्वसनीयता कितनी है , इसका ख़ुलासा उच्चतम न्यायालय ने सी बी आई को सरकारी तोता कह कर किया है । यदि सी बी आई की हैसियत यह है तो एन आई ए जैसी संस्थाओं की क्या हैसियत हो सकती है , इसका अन्दाज़ा लगाया जा सकता है । सरकार की सारी उर्जा इशरत जहाँ व सोहराबुद्दीन जैसे कुख्यात आतंकवादियों को मारने वाले पुलिस अधिकारियों को पकड़ने में लगी हुई है या फिर साध्वी प्रज्ञा ठाकुर , स्वामी असीमानन्द व इन्द्रेश कुमार को आतंकवादी सिद्ध करने में । सरकारी नीति की दाद देनी पड़ेगी कि वह आतंकवादियों की रक्षा करना चाहती है और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को हर हालत में आतंकवादी सिद्ध करना चाहती है । लेकिन सोनिया कांग्रेस को ध्यान रखना चाहिये कि एन आई ए के दुरुपयोग की भी एक सीमा है और वह सीमा जाँच एजेंसी द्वारा न्यायालय में आरोप पत्र दाख़िल करवाते ही स्पष्ट हो गई । लेकिन प्रश्न है कि पाँच साल से बिना किसी अपराध के जेल में बन्द प्रज्ञा सिंह के कैंसर का कौन उत्तरदायी है और सबसे बढ़ कर कैंसर का पता लग जाने के बाद भी उसकी ज़मानत का निरन्तर विरोध करते रहने के पीछे किसकी साज़िश है ? मालेगांव ने सरकार के कुत्सित षड्यन्त्र का पर्दाफ़ाश किया है । सोनिया कांग्रेस को इसका उत्तर भारत की जनता को देना ही होगा ।