पहले ए राजा, फिर कनिमोजी, और अब कपड़ा मंत्री दयानिधि मारन भी अचानक लुटेरे के अवतार में। करोड़ों की कमाई के लिए करुणानिधि की कलाबाजियों के मोहरों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि साफ सुथरी छवि का लबादा ओढ़कर मारन भी वह सब पहले से ही कर रहे थे, जो उनकी पार्टी के बाकी लोगों ने किया। इसलिए अब यह अंदाज लगाना गैरजरूरी लगने लगा है कि अगला नाम किसका आएगा। जब अपने नाम के बिल्कुल विपरीत दयानिधि ने भी देश की निधि को लूटने में कोई दया नहीं दिखाई, तो फिर अगला नाम तो कोई भी हो सकता है।
मारन भी लुटेरों की जमात में शामिल हैं। इसीलिए वे अब सीबीआई के निशाने पर हैं। मारन, उनका सन डायरेक्ट टीवी, एयरसेल और मेक्सस शक की सुंई इन सभी पर है। हो सकता है आनेवाले दिनों में इन सभी पर शिकंजा सकता दिखे। बहरहाल, मारन की लूट की यह पोल उस वक्त खुली जब भारत सरकार के कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल यानी सीएजी की रिपोर्ट सामने आई। इस रिपोर्ट के एक खुलासे के मुताबिक टेलीकॉम सर्किल आवंटन की एवज में तत्कालीन दूरसंचार मंत्री दयानिधि मारन ने 2005 में एक ही डील में 830 करोड़ की भारी भरकम कमाई की। दयानिधि और उनके भाई कलानिधि मारन की कंपनी को मलेशिया की एक मामूली सी दूरसंचार कंपनी मेक्सस ने निवेश के रूप में 830 करोड़ रुपए दिए। सीबीआई ने जिस तर्ज पर यह साबित किया कि डीबी रियलिटी के मुखिया और शरद पवार के खासमखास के रूप में सामने आए शाहिद बलवा ने कलईनार टीवी को 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन डील में 200 करोड़ रुपए की कमाई करवाई।
बिल्कुल उसी तरह मारन बंधुओं की कंपनी ‘सन डाटरेक्ट टीवी’ को भी करीब 830 करोड़ रुपए निवेश के रूप में मेक्सस से मिले। यही नहीं, ‘सन डाटरेक्ट टीवी’ में मारन की 80 फीसदी हिस्सेदारी को जस की तस रखने के लिए 12.6 करोड़ रुपए के 74 फीसदी शेयर भी और जारी किए गए। टेलीकॉम सेक्टर को बेच बेच कर देश का खजाना लूटकर अपनी जेब में भरने का यह कांड, एयरसेल को टेलीकॉम सर्किल आवंटन प्रक्रिया से ही शुरू हुआ। साफ कहा जा सकता है कि मारन ने इतनी बड़ी रकम वसूलकर मेहरबानी नहीं की होती, तो एयरसेल आज देश की सातवीं सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी नहीं होती। मार्च 2006 में मलेशिया निवासी टी. आनंद कृष्णन की कंपनी मेक्सस ने एयरसेल में 74 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी। एयरसेल ने इस पूरी डील के लिए सिर्फ 1399 करोड़ रुपए चुकाए। इसके बाद एक छोटी सी इलाकाई कंपनी से एयरसेल देशव्यापी कंपनी बन गई। पूरे मामले पर ध्यान तब गया जब भारत सरकार के कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल यानी सीएजी की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि तत्कालीन दूरसंचार मंत्री दयानिधि मारन ने 22 हजार करोड़ रुपए कीमत के टेलीकॉम सर्किल को एयरसेल को आवंटित कर दिया था। जबकि सरकार को इसके एवज में सिर्फ 1399 करोड़ रुपए ही मिले। यही मामला अब सीबीआई के निशाने पर है।
करुणानिधि के लुटेरों ने गजब की लूट मचाई। आम आदमी की गाढ़ी कमाई को अपनी जेब में लगातार भरते रहने की भरपूर कोशिश करने वाले करुणानिधि के इन मंत्रियों को जहां, जैसा और जितना मौका मिला, सभी ने जमकर लूटा। या यूं भी कह लीजिए कि देश की सरकार में करुणानिधि ने हिस्सेदारी लेकर इन लोगों को मंत्री भी इसीलिए बनवाया, ताकि वे दिल्ली को लूटकर उनको कमाई करा सकें।देश को अब समझ में आ गया है कि आखिर क्यों तेज तर्रार दयानिधि मारन यूपीए – 2 में फिर दूरसंचार मंत्री ही बनना चाहते थे। और यह भी समझ में आ गया है कि करुणानिधि ने आखिर क्यों अपने परिवार के आज्ञाकारी पिल्ले ए राजा को यह मलाईदार मंत्री दिलवाया। दयानिधि रिश्ते में करुणानिधि के नाती हैं। वे जन्म से पहले से ही उनको जानते हैं। और यह भी जानते हैं कि मारन अपनी कमाई पर किसी भी और को हाथ धरने नहीं देते। साथ ही जहां कमाई हो, वहीं जमे रहने की जुगत भी उनको आती है। करुणानिधि ने दयानिधि के दूरसंचार मंत्री रहते हुए यह जान लिया था कि वे किस तरीके से, किसके जरिए, कितनी कमाई कर रहे हैं। इसीलिए अगली बार 2009 में जब वापस यूपीए की सरकार बनी तो उन्होंने मंत्रालय बदलकर दूरसंचार के दरवाजे पर अपने आदमी ए राजा को बिठा दिया। राजा ने बाकायदा उसी तरीके से पौने दो लाख करोड़ का घोटाला किया। जिस तरह से दयानिधि मारन ने काम शुरू किया था। मोड़स ऑपरेंडी बिल्कुल वैसी ही अपनाई गई। शाहिद बालवा की कंपनी ने भी उसी तरह करुणानिधि के बेटी कनिमोजी के कलाइनार टीवी में 200 करोड़ रुपए का निवेश किया, जैसे एयरसेल ने सन टीवी में किया था।
राजा की तो खैर, कोई छवि ही नहीं थी। घोटाले से पहले देश में कितने लोग राजा को जानते थे। और कनिमोजी अभी राजनीति में अपनी पहचान बनाने की कोशिश में ही थी। लेकिन इनके मुकाबले मारन काफी मजबूत थे। मगर, वह भी चोर निकले। इस सबसे अलग एक बड़ा सवाल यह है कि किसी देश की सरकार का मुखिया इतना बेवकूफ तो नहीं होता कि उसे यह पता ही नहीं हो कि उसकी नाक के नीचे क्या हो रहा है। और अगर ऐसा नहीं है, तो फिर मनमोहन सिंह इतने मम्मू क्यों बने हुए हैं। यह बहुत बड़ा सवाल है। है कि नही ?