ये दुनिया बड़ी रंग-बिरंगी है, मोह-माया के इर्द-गिर्द जीवन शुरू हो अंत तक भटकता ही रहता है। जब अंत समय आता है तब बात समझ में आती है कि ऊपरवाले को तो भजा ही नहीं, जीवन और समय रेत की तरह हाथ से रिस गया। कुछ बिरले ही पैदायशी, तो कुछ सांसारिक जीवन के भवसागर में प्रभु को भजते हुए ईश्वर के धाम को जाते है, अब काम चलाने के लिए हम उसे भगवान, अल्लाह, जीसस, नानक या कोई अन्य नाम दें। जब आदमी ईश्वर की बंदगी में पूर्ण कालिक पुजारी, इमाम, प्रीस्ट के रूप में रहता है फिर चाहे वह मंदिर हो, मस्जिद हो, चर्च हो, गुरूद्वारा हो या अन्य हो। ऐसे व्यक्तियों को विशेषतः राजनीतिक एवं मौकापरस्ती बयानों से न केवल बचना चाहिए बल्कि दूर भी रहना चाहिए। ऐसे लोग न दीन के रहते न ही दुनिया के।
वक्त है इमाम अहमद बुखारी के बेटे सैयद शाबान बुखारी की दस्तारबंदी का जिसमें उन्हांेने कानूनन देश के प्रधानमंत्री को नजर अंदाज कर पड़ोसी शत्रु मुल्क पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को बुलावा भेजने की धृष्टता कर देश के मान सम्मान पर करारी चोट जो की है। उनका ये कृत्य किसी भी दृष्टि से उचित नहीं ठहराया जा सकता। होना तो ये चाहिए भारत सरकार को उक्त मामले को संज्ञान में ले उन्हें तत्काल जामा मस्जिद के इमाम पद से पदच्युत कर देना चाहिए। क्योंकि उन्होंने खुलेआम देश की एकता अखण्डता को तोड़ने में जिस जहर बोल का इजहार किया है वह भी किसी देशद्रोह से कम नहीं है। भारत के संविधान ने हमें बोलने की स्वतंत्रता दी है लेकिन साथ में प्रतिबध भी है अर्थात् ऐसा कुछ भी न बोला जाए जिससे देश की एकता, अखण्डता प्रभावित होती हो। मसलन मुसलमानों के दिलों में जगह नहीं बनाई है मोदी के साथ मेरा कोई निजी रिश्ता नहीं है इसलिए मैंने उन्हें नहीं बुलाया। यहां कई यक्ष प्रश्न उठ खड़े होते है। मसलन अब राजा-महाराजाओं एवं नवाबों का शासन नहीं है। उन्होंने अपने शासनकाल में क्या कहा किसको क्या तमगा दिया अब अर्थहीन हो चुका हैं फिर भी इसके सहारे का दुःसहास क्यों? मंदिर मस्जिद का संचालन ट्रस्ट बोर्ड या शासन के अधीन कार्य करता हैं। इसी तरह जामा मस्जिद भी दिल्ली वक्फ बोर्ड के तहत् संचालित होती है। ऐसी स्थिति में मस्जिद पर निजी सम्पत्ति की तरह दावा इमाम बुखारी कैसे कर सकते हैं? यह न केवल इस्लाम के विरूद्ध है बल्कि कानूनन भी गैर कानूनी है और जिसकी इस्लाम भी इजाजत नही देता। अब जब मुद्दा स्वयं बुखारी ने उठा ही दिया है तो सरकार को भी कानूनी प्रक्रिया अपनाकर इस्लाम के विद्धानों के आवेदन बुला जामा मस्जिद के इमाम की चयन प्रक्रिया के शुरू कर देना चाहिए, ताकि ये नाजायज चिंगारी कही और भी न उठे।
इमाम बुखारी का बुखार उतरे वे स्वस्थ हो, होश में आये कि मस्जिद कभी किसी की भी जागीर नहीं हो सकती, मुसलमानों को फतवे जारी कर गुलामों की तरह व्यवहार करने का उनका भ्रम टूटे। अल्लाह की इबादतगाह में सभी बंदे है मालिक नहीं। इमाम के इस घातक, निजी स्वार्थ परख कृत्य से पूरे समाज को न केवल गलत संदेश गया बल्कि गलत परंपरा को आगे बढाने का भी जुर्म किया है।
अब वक्त आ गया है भारत के सभी मुस्लिम जागरूक हो, शिक्षित हो, प्रगति एवं न्याय के पथ पर आगे बढ़कर समाज में व्याप्त बुराईयों एवं कुरूतियों को मिटाने में आपकी सक्रिय भागीदारी निभाएं।