प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती हैं कि मुझे वीआईपी मत कहो। एलआईपी कहो। याने ‘लेस इंपॉर्टेंट परसन’। अर्थात ‘कम महत्वपूर्ण व्यक्ति’ लेकिन उनके शपथ-समारोह में अन्य मुख्यमंत्रियों की जैसी भीड़ लगी, उससे क्या सिद्ध होता है? यही कि वे वीआईपी ही नहीं, वीवीआईपी बन गई हैं। वे कहें या न कहें, अब 2019 में प्रधानमंत्री-पद की एक नई दावेदार खड़ी हो गई हैं। ममता को मैं नया इसलिए कह रहा हूं कि उनके पहले इस पद के दावेदार नीतीश कुमार दिखाई पड़ रहे थे। लालू के साथ मिलकर वे महागठबंधन बना रहे थे। उन्होंने देश के सबसे बड़े प्रांत उत्तरप्रदेश के मतदाताओं पर डोरे डालने भी शुरु कर दिए थे। वाराणसी और लखनऊ में सभाएं भी कर डाली थीं।
नीतीश के पहले इस पद के दावेदार मुलायमसिंह लग रहे थे। दो-ढाई साल पहले पांच-छह पार्टियों का एक गठबंधन उनके नेतृत्व में खड़ा होता-सा लग रहा था लेकिन अब उसका कहीं जिक्र तक नहीं है लेकिन ममता के यहां अखिलेश, नीतीश, केजरीवाल, लालू, फारुख अब्दुल्ला और कनीमोझी का एक साथ उपस्थित होना अपने आप में एक संदेश है। इस संदेश को लालू ने हवा में तैरा भी दिया है।
इसमें शक नहीं कि कांग्रेस का डूबता सितारा अभी तक दुबारा उगता-सा नहीं लगता। ऐसी स्थिति में नरेंद्र मोदी को यदि कोई हरा सकता है तो यह सर्वदलीय संघीय गठबंधन ही हरा सकता है। लेकिन पहला सवाल यही है कि क्या यह सर्वदलीय बन पाएगा? जिस गठबंधन में ममता शीर्ष पर हो, उसमें कम्युनिस्ट पार्टियां कैसे आएगीं? जिसमें मुलायमसिंह हों, उसमें मायावती और जिसमें कनीमोझी हों, उसमें जयललिता कैसे आएंगी? आंध्र और तेलंगाना के नेता साथ-साथ कैसे चलेंगे? जयललिता और मायावती कैसे मान लेंगी कि ममता उनकी नेता है?
इन सब नेताओं में मुलायमसिंह सबसे बड़े हैं और सबसे बड़े प्रदेश के नेता हैं। वे ममता को अपना नेता कैसे मान लेंगे? और कांग्रेस? उसके बल अभी तक नहीं निकले हैं। उसके बबुआ लोग बड़े से बड़े बाबा और दादा का झंडा कैसे उठा लेंगे? इन व्यक्तिगत मामलों के अलावा बड़ा प्रश्न यह है कि इन सभी पार्टियों को जोड़े रखने वाली कोई एक विचारधारा या एक कार्यशैली या एक कार्यक्रम नहीं है। यदि सिर्फ सत्ता या कुर्सी ही इन्हें जोड़े रखने वाला एक मात्र गोंद है तो इन पर भारत की जनता शायद ही भरोसा करे। और फिर संसदीय चुनावों में तो अखिल भारतीय छवि और दृष्टि वाला नेता भी चाहिए। इन प्रांतीय नेताओं के पास आज जयप्रकाश नारायण जैसा कोई महान व्यक्ति भी नहीं है।
इन सब प्रांतीय नेताओं के लिए आशा की बस एक ही किरण है। उसका नाम हैं-नरेंद्र मोदी। जैसे मोदी को सोनिया और मनमोहन बना गए, वैसे ही मोदी अपनी तरह किसी भी प्रांतीय नेता को अपनी गद्दी सौंप सकते हैं। वे अपनी प्रचारप्रियता, अपनी भाषणबाजी, अपनी आत्म-मुग्धता और अपनी शत्रु-निर्माण-कला पर डटे रहें तो उनके अच्छे काम भी दरी के नीचे सरक जाएंगे और ममता-जैसा कोई भी नेता भारत की छाती पर सवार हो जाएगा।