सीबीआई अगर वाकई सरकार के हिसाब से काम करती है तो 2जी स्पेक्ट्रम के साथ अब गैस को लेकर हुये घपले का खेल भी सामने आयेगा। नीरा राडिया के जरिये रतन टाटा ही नहीं अब रिलायंस ग्रुप या कहे मुकेश अंबानी को भी खंगाला जायेगा। और ए.राजा या कनिमोझी से आगे एनडीए के दौर में जो भी घपले नीरा राडिया के जरिये हुये उसे भी सामने लाया जायेगा। और इसके लिये नौकरशाहों को फंदे में लेने के लिये सीबीआई तैयार है जिन्होंेने नौकरी के दौरान निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिये फाइलों के हेर-फेर से लेकर अपने नफे-मुनाफे के लिये देश को चूना लगाया। असल में सरकार का रुख अब सीबीआई के जरिये उन रिटायर्ड नौकरशाहों पर दबिश करना है जो नीतियों की बारीकी को समझते हुये अपने कार्यकाल के दौरान निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाते रहे। इस कडी में ट्राई के पूर्व चैयरमैन प्रदीप बैजल अगर सीबीआई के पहला निशाना हैं तो अगर निशाना सुनील अरोड़ा हो सकते हैं।
दरअसल प्रदीप बैजल ने 2008 में रिटायर होने के बाद नीरा राडिया के जिस कंपनी नोएसीस में काम करना शुरु किया उसका मुख्य काम ही मुकेश गैस के जरिये रिलायंस को फायदा पहुंचाना था। और सीबीआई को जिन दस्तावेजों की तलाश है उसमें मामला 2जी स्पेक्ट्रम का नहीं बल्कि देश भर में गैस लाईन बिछाने की ग्रिड के लिये बने सरकारी पाइपलाईन रेगुलेटरी एंजेसी में रिलायंस के लोगों को नियुक्त कराना था। खास बात यह भी है कि सीबीआई, प्रदीप बैजल के जरिये एनडीए सरकार के दौर में बने डिसइन्वेस्टमेंट नीतियों के तहत जिन सरकारी कंपनियों या इमारतों को बेचा गया उसकी नब्ज भी पकडना चाह रही है। क्योंंकि 1966 बैच के प्रदीप बैजल ही पहले ड्सइनेवेस्टमेंट सचिव थे जिनके उपर उस वक्त कांग्रेस ने यह आरोप लगाया था कि सरकारी कंपनियों या होटल तक को कौडियों के मोल बेचकर खास निजी कंपनियों के लाभ पहुंचाया जा रहा है। चूंकि नीरा राडिया की चार कंपनियां चार क्षेत्रों में देश के बडे औद्योगिक घरानों के लिये फिक्सर का काम कर रही थीं, तो उन चारों क्षेत्र टेलीकॉम एविएशन, इन्फ्रस्ट्रचर और एनर्जी के मद्देनजर इन्ही से जुड़े नौकरशाहों पर सीबीआई नकेल भी कस रही है। राडिया के टेलीफोन टैपिंग में ये सारे मामले सामने भी आ रहे हैं। खासकर गैस की लड़ाई में पर्यावरण को लेकर कोई परेशानी रिलायंस को ना हो इसके लिये नीरा राडिया ने जिन रिटायर नौकरशाहों को काम पर लगाया था वह टेलीफोन टैप के जरिये अब सामने आ रहा है, कि किस तरह सुविधायें रिलायंस के जरिये बांटी जा रही थीं।
हाइड्रोकार्बन के डायेरेक्टर जनरल वीके सिब्बल के लिये बंगला खरीदने का जिक्र राडिया के साथ रिलायंस अधिकारियों के बीच बातचीत में दर्ज है। इसके लिये आरकॉम के जिन चार अधिकारियों को लगाया था उसकी फाइल सीवीसी दफ्तर में भी मौजूद है। लेकिन सीबीआई अब पर्यावरण प्रबंधन के नाम पर रिलायंस को लाभ पहुंचाने वाले नौकरशाहों की सूची भी बना रही है। इतना ही नही वित्त मंत्रालय के दो अधिकारियों ने उस दौर में कैसे रिलायंस को टैक्स माफ कराया जिसका आंकडा करीब 40 हजार करोड बताया जा रहा है उसकी फाइल भी अब सीबीआई ने अपने कब्जे में ले ली है। नीरा राडिया के फोन टैप से इंडियन एयरलाइंस के पूर्व सीएमडी सुनील अरोड़ा के जरिये सीबीआई बीजेपी को भी घेरने की तैयारी में है। क्योंयकि एयरलाइंस को लेकर जो भी गफलत सुनील अरोड़ा ने की वह तो राडिया फोन टैपिंग में सामने आया ही है आखिर कैसे सुनील अरोड़ा नीरा राडिया की पहुंच का इस्तेमाल कर एंडियन एयरलाइन्स के मैनेजिंग डायरेक्टर बनना चाहते थे। लेकिन सीबीआई की नजर सुनील अरोड़ा के जरिये राजस्थान में करोड़ों की जमीन को कुछ खास लोगों को दिलाने में कितनी भूमिका थी, इस पर है। क्यों कि सुनील अरोड़ा राजस्थान में तत्काखलीन मुख्यमंत्री के निजी सचिव थे। और तब सत्ता बीजेपी के पास थी। और बतौर निजी सचिव बिना सीएम के हरी झंडी के जमीनों को कौडियों के मोल खरीद कर बांटने की कोई सोच भी नही सकता है। उसी दौर में राजस्थान की कई जमीने कुछ खास नौकरशाहों को नीरा राडिया के जरिये मुफ्त या कौडियों के मोल बांटी गयी…यह भी टेलीफोन टैपिंग में सामने आ गय़ी है । खासकर गैस पर कब्जे को लेकर उस दौर में जमीन गिफ्ट में दी गयी और उसमें आरआईएल और एडीएजी में कौन नौकरशाह किस तरफ था इसे भी सीबीआई अब खंगाल रही है। क्योंीकि नीरा राडिया की चारों कंपनी में 16 ऐसे रिटायर्ड नौकरशाह काम कर रहे थे जो कि नौकरी के दौरान पहले भारत सरकार के लिय़े उन्हीं क्षेत्र में नीतियों को अमली जामा पहनाने में लगे थे जिसमें नीरा राडिया की रुचि थी, या कहें नीरा राडिया के जरिये कुछ खास कारपोरेट घराने अपना लाभ बनाना चाहते थे।
असल में दस्तावेजों के जरिये अब यह भी सामने आ रहा है कि नौकरशाहों की फेरहिस्त में नीरा राडिया ने अपनी कंपनी से रिटायर्ड आईएएस नौकशाहो के साथ साथ राज्यो के नौकरशाहों को भी जोड़ा जिससे किसी भी काम को अमली जामा पहनाने में कोई परेशानी ना हो। दिल्ली के अलावा मुंबई, बेगलुरु, चेन्नई, कोलकत्ता, हैदराबाद और अहमदाबाद में अगर कंपनियों का टारगेट टाटा के हर 31 प्रोडक्ट को लाभ पहुंचाना था तो मुकेश अंबानी के रिलांयस के साथ साथ छह से ज्यादा उन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भी भारत में घुसाना था जो यहां के खनिज संस्थानो के खनन में रुचि रखते थे। और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के काम में कोई रुकावट ना आये उसके लिये सहायक कंपनियां कोच्चि, लखनऊ, रांची और भुवनेश्वर में खोली गयीं। जिसमें राज्यों के रिटायर्ड उन प्रभावी नौकरशाहों को काम सौंपा गया जिनकी पहुंच राज्यों के मुख्यमंत्री तक या फिर मुख्यमंत्री कार्यालय में तैनात अपने पुराने साथी नौकरशाह के साथ थी।
असल में राडिया टैप के जरिये जो नजारा सीबीआई के सामने आ रहा है उसमें पहली बार बडा सवाल यह भी उभरा है कि अगर देश के लिये काम करने वाला कोई नौकरशाह रिटायर्ड होते ही या फिर रिटायरमेंट लेकर किसी निजी कंपनी को लाभ पहुंचाने में जुट जाये तो सरकार के पास क्या उपाय होगा। दूसरा बड़ा सवाल राजनीति के मद्दनजर उभरा है कि सरकार बदलने पर जैसे एनडीए के बाद यूपीए की सरकार केन्द्र में आयी या फिर झारखंड जैसे राज्य में मधु कोड़ा सरीखा एक निर्दलीय राजनीतिज्ञ के अंतर्विरोध की वजह से मुख्यमंत्री बन गया अगर वह किसी निजी कंपनी को लाभ पहुंचाने में जुट जाये तो उससे देश के राज्स्व को जो चूना लगेगा उसकी भरपाई कौन करेगा। यह खेल टाटा के लिये अगर झारखंड में हुआ तो वेदांत ग्रुप के लिये उड़ीसा में नवीन पटनायक ने भी किया। और केन्द्र में बडी मुश्किल यह हे कि एनडीए के बाद जब गठबंधन के दौर में मंत्रालय ऐसे-ऐसे क्षेत्रीय दलों के नेताओं के हिस्से में गये जिनके लिये मंत्रालय का मतलब ही पैसा उगाही था तो फिर नीरा राडिया सरीखे कारपोरेट फिक्सर को कौन कैसे रोकता।
जाहिर है यह सारे सवाल सीबीआई के पास दस्तावेजों में तो मौजूद हैं, लेकिन इन दस्तावेजों के जरिये कोई भी सरकार इस पहल को रोकने की दिशा में कदम उठयेगी या फिर इसे भी अपनी राजनीतिक सौदेबाजी का हिस्सा बना लेगी। अब देखना यही है क्योंकि पहली बार सत्ता ही एक कशमकश में नजर आ रही है, जहा दांव पर देश का लोकतंत्र है।