जब तक है काजल की कोठरी तब तक है दर्पण का डर, और आईना कभी झूठ नहीं बोलता। कहते भी है कि जिसने अपने आपको जान लिया अब उसे जानने के लिये कुछ नहीं बचता, न जानने की स्थिति में न केवल वह स्वयं भटकता रहता है। बल्कि औरों को भी भटकाता रहता है ऐसा ही कुछ आज देश में घटित हो रहा है, जिन लोगों की जवाबदेही आदर्श स्थापित करने की है वे गोरखधंधों में व्यस्त हैं जिससे न केवल भारत का लोकतंत्र कलंकित हो रहा है बल्कि दिशाहीन हो भ्रष्टाचार, कालेधन, भुखमरी, बेरोजगारी, बलात्कार घपले-घोटालों के साथ लूटतंत्र के भंवर में देश फंसा हुआ है, जिसे कभी राजनीतिक पार्टियां किसी बाढ़ के दृश्य की तरह दर्शक बन आनंद ले रही है। मरती-पिसती जनता की चीख इन दर्शकों को और भी आनंदित करती है पल भर के लिये ये दर्शक कभी-कभी सहानुभूति अवश्य प्रदान करते हैं, साथ ही कुछ भरोसा भी दिलाते हैं कि हम ही वो है जो तुम्हें इस नरक से निकाल सकते है राहत दे सकते है तुम हमें जिताओ? जीत के बाद फिर ढाक के तीन पात और फिर वही दृश्य प्रारंभ हो जाता है।
कहीं केन्द्र राज्यों पर तो कही राज्य केन्द्र पर अपनी अक्षमता को छिपाने के लिये आये दिन एक दूसरे पर आरोप लगा लड़ते रहते हैं आखिर ये क्यों भूल जाते हैं कि दोनों को ही उसी जनता ने अपनी बेहतरी के लिये उन्हें चुना है। फिर ये लड़ाई, ये दोषारोपण क्यों? इस तरह के कृत्य से दोनों का ही नाकारापन सिद्ध होता है, निःसंदेह ये बुरी आदत दोनों को ही छोड़ना होगी भारत की स्वतंत्रता के बाद भारतीयों में यदि कुछ बढ़ा है तो वह भ्रष्टाचार, कामचोरी, मक्कारी, कालाधान यदि कुछ घटा है तो वह है ईमानदारी, कर्तव्यपरायणता एवं जवाबदेहता।
मंत्री से संत्री तक, अधिकारी से चपरासी तक सभी भ्रष्टाचार एवं कालेधन की चासनी से लबरेज हैं। कालेधन केा ले समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट भी केन्द्र को बुरी तरह फटकार लगा चुकी है लेकिन, सरकार है कि उसकी कुम्भकरर्णीय नींद टूटने का नाम ही नहीं ले रही, सरकार की बेशर्मी यही नही खत्म होती वह लाज-हया छोड़ सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एस.आई.टी. के विरूद्ध पुनः कोर्ट की शरण में जाने का मन बना रही है। इस कृत्य से ऐसा लगता है कि केन्द्र सरकार पूरे जी जान से काले धन के चोरों को संरक्षण देने में न केवल लगी है बल्कि उन्हें बचाने का कोई चोर दरवाजा भी तलाश रही है, यूं तो देश में कालेधन की जांच के लिये विभिन्न जांच एजेंसियों पहले से ही गठित है। लेकिन, वह भी अपने आकाओं के लिये सिर्फ एक खानापूर्ति मात्र बन कर ही रह गई है।
केन्द्र के दयानिधि मारण को ही ले लीजिए 1995 में 45 करोड़ के आसामी थे 2000 में 450 करोड़, 2005 में 4500 करोड़, 2010 में 1500 करोड़ एवं 2011 एवं 18000 करोड़ के आसामी हो गए कैसे?
म.प्र. में जल संसाधन विभाग के एक सहायक यंत्री 15 करोड़ की अवैध संपत्ति का मालिक निकला, इसी विभाग का उपयंत्री राधेश्याम के पास पोने तीन करोड़ अवैध संपत्ति का पता चला। इसी तरह शाजापुर का एक डिप्टी कलेक्टर हुकुमचंद सोनी के पास 2.75 करोड़ बेनामी संपत्ति मिली वहीं म.प्र. में परिवहन विभाग के एक हवलदार रवीन्द्र जैन के यहां 8 करोड़ की संपत्ति मिली, इसी तरह उड़ीसा के एक चपरासी भाग्यधर दास से 2 करोड़ की अवैध संपत्ति मिली, कहने का अर्थ नेताशाही से नौकरशाही सभी भ्रष्टाचार में मस्त है।
अब इंतजार है तो बस ‘‘बेनामी लेन देन निषेध बिल 2011का।’’ कटु सत्य तो यह है कि हम भ्रष्टाचार से लड़ना कम दिखावा करना ज्यादा चाहते हैं। हमारे पड़ोसी देश चीन ने अपने फौलादी इरादों से पूरे विश्व में भ्रष्टाचारियों को फांसी की सजा दे अपनी नेक नियत एवं भ्रष्टाचारियों पर एक चट्टानी इरादे से अवगत करा दिया। साथ ही भारत समेत पूरे विश्व को जता दिया है कि, भ्रष्टाचार एक लाइलाज बीमारी नहीं है। चीन शायद पहला देश होगा जिसने अपने दो पूर्व उपमहापोरों को फांसी की सजा दी होगी वो भी दो से तीन साल के कम समय में ही फंांसी के तख्त पर पहुंचा दिया। यह संदेश उन देशों के लिये भी है जो भ्रष्टाचार को ले केवल हल्ला तो करते हैं लेकिन कार्यवाही के नाम पर बचते ही नजर आते हैं ऐसे लोगों को नौटंकी छोड़ चीन को ही भ्रष्टाचार उन्मूलन में आदर्शमान भ्रष्टाचारी एवं कालेधन चोरों को ऐसी ही सजा दे स्पष्ट संदेश बिना भेद-भाव, ऊँच- नीच के देना ही होगा।