प्रधानमंत्री आते हैं और जाते हैं। किसी को उनके नाम भी याद नहीं रहते। 15-20 साल बाद लोग यह भी भूल जाते हैं कि भारत का राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री कौन कब रहा है? आगरा, दिल्ली और काबुल में कई बादशाह हुए, अब उन्हें कौन जानता है? उनका जन्म-दिन न कोई मनाता है और न ही पुण्यतिथि। लेकिन कभी-कभी वे कुछ काम ऐसे कर जाते हैं कि जिनके कारण उन्हें सदियों तक याद रखा जाता है। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी तीन साल बाद कुछ अन्य प्रधानमंत्रियों की तरह इतिहास की गुफाओं में खो सकते हैं।
दो साल उन्होंने खाली ही निकाल दिए। दोनों साल नौटंकियों और बंडलबाजियों के साल होकर रह गए लेकिन उन्होंने अभी तक सिर्फ एक काम ऐसा किया है, जिसके कारण भारत ही नहीं सारा विश्व उन्हें सदियों तक याद रखेगा। वह काम है, भारत के योग को विश्व का सिरमौर बनवा देना। संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा 21 जून को विश्व योग दिवस मनाना आखिर क्या है? यह भारत को विश्व-गुरु बनाना नहीं है तो क्या है? विश्व का कौनसा कोना है, जहां 21 जून को हजारों-लाखों स्त्री-पुरुषों ने योगाभ्यास नहीं किया? दुनिया के सभी ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध और यहूदी देशों ने योग को मान्यता दी याने भारत को गुरु धारण किया। योग सिर्फ आसन-प्राणायाम नहीं है।
आसान-प्राणायाम तो समाधि तक पहुंचने की पहली सीढ़ी है। यदि भारत की प्रेरणा से दो-तीन अरब लोग भी इस पहली सीढ़ी को पकड़ ले तो हमारी दुनिया का नक्शा ही बदल जाएगा। पिछली दो-तीन सदियों में पश्चिम ने अपनी वैज्ञानिक प्रतिभा से दुनिया का बाहरी रुप एकदम बदल दिया है। लेकिन अब विश्व-सभ्यता को भारत की यह अनुपम देन होगी कि भारत योग के जरिए दुनिया के अंदरुनी रुप को बदल देगा। अंदरुनी रुप बदलने का अर्थ है, चित्त-शुद्धि। यदि मनुष्य का चित्त शुद्ध हो, निर्विकार हो तो हिंसा, आतंक, शोषण, दमन, भेद-भाव– ये सब दोष कहां टिक पाएंगे? भारत के योग से प्रभावित नई दुनिया की जरा हम कल्पना करें। यो तो योग पहले भी दुनिया के कई देशों में फैल चुका था लेकिन अब इसे विश्व-स्वीकृति मिल गई है। इसका प्रमाण यह है कि इसे सभी मजहबों, सभी जातियों, सभी रंगों, सभी विचारधाराओं वाले देशों ने अपना लिया है। इसका श्रेय नरेंद्र मोदी को मिले बिना नहीं रहेगा।