पाकिस्तान के स्कूलों से भारतीय राजनयिकों के बच्चों को हटाया जा रहा है। इस साधारण-सी कार्रवाई को लेकर खबरपालिका हरकत में आ गई है। जैसा कि होता है, वे इस बात को भी तूल देना चाहते थे। वे अपने करोड़ों दर्शकों को बताना चाहते थे कि भारत और पाकिस्तान के संबंधों में कितनी गिरावट आ गई है। इस खबर के साथ उन्होंने यह सवाल भी खड़ा कर दिया कि गृहमंत्री राजनाथ सिंह को 4 अगस्त को पाकिस्तान जाना चाहिए या नहीं? उन्हें दक्षेस-गृहमंत्रियों की बैठक में भाग लेना चाहिए या नहीं? उन्हें पाकिस्तानी गृहमंत्री से पठानकोट-कांड के बारे में खुलकर बात करनी चाहिए या नहीं?
दोनों देशों में तनाव बढ़ गया है, इसके प्रमाणस्वरुप नवाज शरीफ और सुषमा स्वराज के बयानों को दोहराया जा रहा है। मियां नवाज ने ‘कश्मीर-दिवस’ पर कह दिया कि कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा बनकर रहेगा और सुषमा बहनजी ने कह दिया कि ऐसा अनंत काल तक नहीं हो सकता।
नवाज़ और सुषमा ने कौन सी नई बात कह दी है? दोनों की यही बातें सैकड़ों बार कही जा चुकी हैं। यह हमारे दोनों देशों का पारंपरिक कर्मकांड बन गया है। इन बयानों में से कोई तनाव ढूंढना ऐसा ही है जैसा कि घास के ढेर में से मोती बीनना! जहां तक भारतीय बच्चों को पाकिस्तानी स्कूलों से हटाने की बात है, यह जून 2015 में ही तय हो गई थी। 2014 में पेशावर में मारे गए 141 पाकिस्तानी बच्चों के बाद।
आतंकियों ने पाकिस्तानी बच्चों को इतनी बेरहमी से मार डाला, वे हिंदुस्तानी बच्चों को क्यों बख्शेंगे? यह ठीक है कि इस फैसले को अब लागू किया गया है जबकि कश्मीर में हंगामा बरपा है लेकिन यह मत भूलिए कि यह जुलाई का महिना है, जबकि भारतीय स्कूलों में नया सत्र शुरु होता है। इसके अलावा पाकिस्तान स्थित कई दूतावासों के बच्चे वहां नहीं रखे जाते और पढ़ाए जाते हैं। इन देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, कनाडा आदि कई देश हैं। क्या इन देशों का भी पाकिस्तान से संबंध खराब हो रहा है? कहने का मतलब यही कि तिल का ताड़ बनाना ठीक नहीं है।