‘हू इज रियल आॅनर आॅफ इण्डिया?’
‘हू इज रियल आॅनर आॅफ इण्डिया?’ अर्थात् भारत के वास्तविक मूलमालिक कौन हैं? यह एक ऐसा महत्वपूर्ण सवाल है, जिसे वर्तमान समय में दुराशयपूर्वक लगातार उलझाया जा रहा है। एक ओर तो आर्य—वैदिक—मनुवादी व्यवस्था के संवर्धक संघ द्वारा भाड़े के कट्टरपंथी और रुग्ण एवं आपराधिक मानसिकता के लेखकों के मार्फत कूटकरण करके भारत के इतिहास का पुनर्लेखन करवाकर विदेशी आर्यों को भारत के मूलवासी—आदिनिवासी सिद्ध करने की कुटिल चाल चली जा रही है।
दूसरी ओर आजादी के बाद से लगातार भारत के मूल मालिक आदिनिवासियों की अनेकों प्रजातियों और जातियों को दुराशयपूर्वक अजा, अजजा एवं ओबीसी वर्गों में अधिसूचित करके भारत के मूल मालिकों की एकता को तोड़ने का सरकारी एवं प्रशासनिक षड़यंत्र चलता रहा है। जिसके पीछे भी मूलत: भारत की व्यवस्था पर काबिज आर्य—वैदिक—मनुवादी मानसिकता के लोगों का ही हाथ है।
तीसरा बाबा साहब द्वारा अपने अध्ययन एवं गहन शोध से यह बात प्रमाणित कर दिये जाने के उपरान्त भी कि सूर्यवंशी—क्षत्रिय—आर्यों का ब्राह्मणों द्वारा उपनयन संस्कार बन्द करने के कारण आर्य—क्षत्रियों में से ही शूद्र वर्ण की उत्पत्ति हुई है। साथ ही वर्तमान कथित अछूत जातियॉं ही शूद्रों की वंशज हैं, इस बात का कोई प्रमाण नहीं है, इसके उपरान्त भी वामण मेश्राम की बामसेफ एवं उनके अंधभक्त येनकैन प्रकारेण और अविश्वसनीय एवं तथ्यहीन—संदिग्ध डीएनए रिपोर्ट को आधार बनाकर भारत की 85 फीसदी अजा, अजजा, ओबीसी एवं धर्मपरिवर्तित अल्पसंखक आबादी को जबरन सूर्यवंशी—क्षत्रिय—आर्यों शूद्रों की वंशज और भारत के मूलनिवासी घोषित करने का षड़यंत्र संचालित है।
चौथा संविधान लागू होने के तत्काल बाद से ही भारत के वंचित वर्गों के तथाकथित जनप्रतिनिधि जानबूझकर अपने—अपने वर्गों को गुमराह करके, अपने ही वंचित समूहों को अपने—अपने राजनैतिक दलों के गुलाम बनाने में जुटे हुए हैं।
उक्त कारणों से भारत के वंचित तबके की एकता को तो बहुत बड़ा खतरा उत्पन्न हो ही चुका है, इस कारण से भारत के मूलमालिक अर्थात् ‘रियल आॅनर आॅफ इण्डिया’ की मौलिक पहचान और भारत के मालिक की हैसियता को बहुत बड़ा खतरा उत्पन्न हो चुका है।
इतिहास के प्रकाश में देखने पर इस बात में कोई दो राय नहीं है कि भारत के मूलवासी—आदिनिवासी ही भारत के मूल मालिक हैं, लेकिन भारत के मूलवासी—आदिनिवासी कौन हैं? यह सवाल बहुत बड़ा है, क्योंकि संविधान लेखन के समय तत्कालीन प्रभावशाली ताकतों के दबाव में आदिनिवासियों की मौलिक आदिनिवासी पहचान को छीनकर संविधान निर्माताओं ने भारत के मूलवासी—आदिनिवासियों की अधिकतर जातियों को अजजा वर्ग में शामिल कर दिया गया। जबकि यह भी सच है कि अजा वर्ग में भी कुछ मूलवासी—आदिनिवासी जातियां शामिल कर दी गयी हैं। यही नहीं, बल्कि बाद में घोषित ओबीसी में भी भारत की मूलवासी—आदिनिवासी जातियां शामिल हैं।
अत: बहुत जरूरी है कि ‘रियल आॅनर आॅफ इण्डिया’ अर्थात् भारत की मूलमालिक जातियों को सभी वर्गों में निकालकर उन्हें प्रथक से मूलवासी—आदिनिवासी या आदिवासी के नाम से अधिसूचित किया जावे। यद्यपि कुछ कथित विद्वान जो अपने आप को मूलनिवासी नाम के जरिये भारत के मूलमालिक तो बताना चाहते हैं, लेकिन उन्हें अपने आप को भारत के आदिनिवासी या आदिवासी मानने में शर्म का अनुभव होता है, इस कार्य में बाधक हैं। वास्तव में ऐसे लोग ही सर्वाधिक संदिग्ध मूलवासी—आदिनिवासी हैं, क्योंकि जो व्यक्ति भारत के मूलमालिक हैं, उन्हें इण्डीजिनियश पीपुल आॅफ इण्डिया या भारत के मूलवासी—आदिनिवासी या आबोरिजनल इण्डियन कहने, बोलने और लिखने में कोई शर्म या हीन भावना का अनुभव नहीं होना चाहिये। ऐसे संदिग्ध लोग खुद को मूलनिवासी कहने में दिखावटी गर्व, लेकिन मूलवासी—आदिनिवासी कहने में शर्म का अनुभव करते हैं। यही एक बड़ा कारण और आधार है जिसके आधार पर यह कहा जा सकता कि ऐसे संदिग्ध लोगों के पूर्वज ‘रियल आॅनर आॅफ इण्डिया’ नहीं हो सकते।
अत: ऐसे संदिग्ध जाति समूहों की पहचान करके, वास्तविक मूलवासी—आदिनिवासी जातिसमूहों को, जिनके पूर्वज ‘रियल आॅनर आॅफ इण्डिया’ रहे हैं, उन्हें भारत में एकजुट किये जाने/होने की जरूरत है, जिससे कि उक्त चार प्रकार के षड़यंत्रों से मुक्त होकर भारत को विदेशी मनुवादियों के षड़यंत्र से मुक्त करवाया जा सके।