‘परमाणु सप्लायर्स ग्रुप’ (एनएसजी) में तीन दिन पहले हमने जो पटकनी खाई थी, उसके मुकाबले हम खम ठोककर अब फिर खड़े हो गए हैं। भारत अब औपचारिक तौर पर ‘प्रक्षेपास्त्र तकनीक नियंत्रण संगठन’ (एमटीसीआर) का सदस्य बन गया है। इस 34 सदस्यीय संगठन ने भारत का हार्दिक स्वागत किया है। यदि हम उस ‘ग्रुप’ में शामिल होने का ढिंढौरा नहीं पीटते और अर्जी नहीं डालते तो हमारी इतनी बेइज्जती नहीं होती। चीन की चालाकी में हमारे नेता और अफसर फिसल गए लेकिन खुद चीन इस ‘प्रक्षेपास्त्र संगठन’ का सदस्य नहीं है। वह इसका सदस्य बनने के लिए बेताब है। अब भारत को जवाबी कूटनीति करनी होगी। जब तक चीन हमें ‘ग्रुप’ का सदस्य न बनने दे, तब तक हम उसे इस ‘प्रक्षेपास्त्र संगठन’ में घुसने न दें।
परमाणु अप्रसार के बारे में भारत का आचरण दुनिया के किसी भी परमाणु-राष्ट्र से बेहतर रहा है जबकि चीन का परमाणु-अप्रसार आचरण और प्रक्षेपास्त्र-अप्रसार आचरण, दोनों ही निकृष्ट रहे हैं। उसने उत्तर कोरिया और पाकिस्तान के साथ बहुत घाल-मेल किया है।
अभी भारत को परमाणु सप्लायर्स ग्रुप के साथ-साथ ‘आस्ट्रेलिया ग्रुप’ और ‘वाजनर-व्यवस्था’ का सदस्य भी बनना है। इन संगठनों का उद्देश्य पारंपरिक, परमाणु, जैविक और रासायनिक हथियारों और उनकी तकनीकों पर नियंत्रण रखना है। भारत का रास्ता अब आसान हो जाएगा। चीन को असली डर यह है कि इन सब संगठनों की सदस्यता भारत को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता दिलवाने में मदद करेगी। एशिया में चीन की दादागीरी को यह सबसे बड़ी चुनौती होगी।
अब एमटीसीआर की सदस्यता मिल जाने से भारत को सबसे बड़ा लाभ तो यह होगा कि उसके द्वारा निर्मित ब्राह्मोज क्रूज मिसाइल वह दुनिया भर में बेच सकेगा। इसी प्रकार अब वह दुनिया के सर्वश्रेष्ठ मिसाइल और उनकी तकनीक खरीद सकेगा। इस संगठन के सदस्य देश 300 किमी से अधिक दूरी और 500 किग्रा से अधिक वजन के प्रक्षेपास्त्र नहीं बना सकते। 1987 में बने इस संगठन का उद्देश्य विश्व-शस्त्रीकरण पर नियंत्रण रखना है।
‘प्रक्षेपास्त्र तकनीक नियंत्रण संगठन’ (एमटीसीआर) की सदस्यता भारत की पगड़ी में लगा नया मोरपंख है। हमारे श्रेष्ठ परमाणु-आचरण और शांत कूटनीति का यह तार्किक प्रमाण है। तीन दिन पहले के गहरे घाव पर लगा हुआ यह ठंडा मरहम है। बधाई!