इस्राइल के प्रधानमंत्री एरियल शेरोन की भारत-यात्रा में यहॉं तो कोई विघ्न नहीं हुआ लेकिन वह निर्विध्न भी नहीं रह सकी | तेल-अवीव और जेरुसलम में विध्न हो गया | पहले वे एक दिन देर से आए और अब उन्हें बीच में ही लौटना पड़ा | जिस आतंकवादी खतरे के खिलाफ भारत में कड़ा बन्दोबस्त था, वह इस्राइल में फूट पड़ा | शेरोन के लौटने का जो कारण बना, वह ही भारत और इस्राइल को जोड़ने का भी मूल कारण है | आतंकवाद वह कड़ी है, जो भारत और इस्राइल को ही नहीं, इन दोनों के साथ अमेरिका को भी जोड़ती है | अमेरिका तो अभी ताज़ा-ताज़ा शिकार है, भारत और इस्राइल पुराने भुक्तभोगी हैं | दोनों प्रधानमंत्र्िायों ने अपने संयुक्त वक्तव्य में आतंकवाद को सारे संसार का दुश्मन बताया है | उसके हर रूप की भर्त्सना की है | दोनों पक्षों ने फलस्तीन और पाकिस्तान का नामोल्लेख नहीं किया लेकिन यह जरूर कहा है कि वे दोनों सीमा-पार से आनेवाले आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होंगे |
फलस्तीन का नामोल्लेख भारत कैसे करता ? फलस्तीनियों के प्रति भारत की गहरी सहानुभूति है | भारत ने सदा उनका समर्थन किया है | फलस्तीनी राज्य और उसके नेता यासर अराफात को मान्यता देनेवाले राष्ट्र्रों में भारत सबसे आगे है | यदि फलस्तीनी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए कुछ सिरफिरे लोग आतंकवाद का सहारा लेते हैं तो भारत उन्हें सही नहीं ठहराता है लेकिन नाम लेकर वह उनकी भर्त्सना भी कैसे कर सकता है ? स्वयं इस्राइल का जवाबी आतंकवाद दिल दहलानेवाला होता है लेकिन पाकिस्तानियों के विरुद्घ भारत वैसा आतंकवाद नहीं फैलाता, जैसा कि इस्राइल फलस्तीनियों के खिलाफ़ फैलाता है | भारत ने आज तक पाकिस्तान की सीमा के अंदर घुसकर आतंकवादियों को कभी मार नहीं लगाई | पाकिस्तानके इस एकतरफा आतंकवाद की भर्त्सना करना इस्राइल के लिए ज्यादा आसान था, लेकिन इस्राइल ने भी उसका जि़क्र तक नहीं किया | क्यों नहीं
किया ? इसलिए नहीं किया कि पाकिस्तान भी इस्राइल से गुप-चुप संबंध स्थापित करने की कोशिश कर रहा है | उसामा बिन लादेन के सहयोगी अल-जवाहरी ने अपने ताज़ा बयान में आरोप लगाया है कि पाकिस्तान इस्राइल को मान्यता देनेवाला है| वे दिन लद गए, जब जुल्फिकार अली भुट्रटो ने ‘यहूदी बम’ के खिलाफ़ ‘इस्लामी बम’ का नारा दिया था | अब पाकिस्तान उसी विश्व-आतंकवाद-विरोधी अभियान का अग्रणी सदस्य है, जिसका झंडा अमेरिका और इस्राइल ने उठा रखा है | ऐसी स्थिति में दिल्ली में बैठकर पाकिस्तान के विरुद्घ कोई इस्राइली प्रधानमंत्री खुल्लमखुल्ला बयान कैसे दे सकता था | शेरोन ने चाहे पाकिस्तान का नाम नहीं लेने की सावधानी बरती लेकिन पाकिस्तान ने उन्हें नहीं बख्शा | पाकिस्तानी अखबार कह रहे हैं कि इस्राइल से भारत हाथ इसीलिए मिला रहा है कि वह पाकिस्तान पर हमला कर सके| पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने यहॉं तक कह दिया कि यदि भारत-इस्राइल धुरी पाकिस्तान तथा दुनिया के सभी मुसलमानों के विरुद्घ है तो यह बहुत ही चिन्ता की बात है | भारत-इस्राइल सैनिक-सहकार दक्षिण एशिया में अस्थिरता और अशांति फैलाएगा |
पाकिस्तान का अंदेशा एक हद तक सही है | परमाणु बम बनाने के बाद पाकिस्तान यह मान बैठा था कि दक्षिण एशिया में पूर्ण शक्ति-संतुलन स्थापित हो गया है | पारम्परिक सैन्य-शक्ति की दृष्टि में वह कई वर्षों से भारत के मुकाबले कमजोर पड़ता था | वह कमजोरी अब दूर हो गई है | लेकिन अब पाकिस्तान को यह डर लग रहा है कि इस्राइल की मदद लेकर भारत पाकिस्तान की परमाणु शक्ति को शून्य में बदल देगा | इस्राइल के पास ऐसे सैन्य-उपकरण हैं कि सीमा-पार से आनेवाले बमों और प्रक्षेपास्त्रों की काट वे पाकिस्तान की सीमा में ही कर देंगे | ज़रा याद करें कि बाइस साल पहले जब एराकी परमाणु बम की अफवाहें फैलने लगीं तो इस्राइल ने कैसे ओसीराक का एराकी परमाणु कंेद्र उड़ा दिया था और पिछले अमेरिका-एराक़ युद्घ में एराकी प्रक्षेपास्त्रों को आसमान में ही मार गिराया था | इस्राइली उप-प्रधानमंत्री योसेफ लेपिड ने यह तो स्पष्ट कर ही दिया है कि इस्राइल भारत को फाल्कन रेडार प्रणाली दे रहा है, जो रूसी इल्यूशिन-76 विमानों पर लगाई जाएगी और जिसका काम यह पता लगाना होगा कि पाकिस्तानी ठिकाने कहॉं-कहॉं हैं और यह अगि्रम जानकारी देना होगा कि उधर से इधर आनेवाले आक्रामक शस्त्रास्त्र कब और कैसे आ रहे हैं | बराक नामक प्रक्षेपास्त्र-रोधी व्यवस्था का भारतीय जल-सेना पहले से ही उपयोग कर रही है| इतना ही नहीं, अगर ‘एरो’ नामक प्रक्षेपास्त्र-रोधी प्रणाली भी भारत को मिल जाए तो पाकिस्तान का आत्मविश्वास डिगे बिना नहीं रहेगा | इस्राइली नेताओं का कहना है कि इसके लिए उन्हें अपने पार्टनर अमेरिका की अनुमति लेनी होगी |
अमेरिका की अनुमति मिल जाए, यह आवश्यक नहीं है, क्योंकि दक्षिण एशिया में वह मध्यस्थ की भूमिका निभाना चाहता है | वह भारत और पाकिस्तान, दोनों में से किसी को भी नाराज़ नहीं करना चाहता लेकिन जो भूमिका अमेरिका अदा कर रहा है, वही भूमिका इस्राइल भी अदा करे, यह बिल्कुल भी जरूरी नहीं है | दूसरे शब्दों में, यदि इस्राइल चाहें तो भारत के लिए वह अमेरिका से भी ज्यादा उपयोगी भूमिका अदा कर सकता है | इसी डर के मारे पाकिस्तान के सर्वेसर्वा जनरल मुशर्रफ आजकल इस्राइल के खिलाफ़ काफी दबी जुबान से बोल रहे हैं | भारत-इस्राइल सैन्य-सहकार सचमुच पाकिस्तान के लिए प्राणलेवा सिद्घ हो सकता है |
भारत-इस्राइल सहकार को पाकिस्तान सारी दुानिया में मुस्लिम-विरोधी गठबंधन कहकर बदनाम करने की कोशिश करेगा लेकिन यह कोशिश सफल नहीं होगी, क्योंकि भारत फलस्तीनियों का समर्थन कभी बंद नहीं करेगा | फलस्तीनी न तो इस्लाम के लिए लड़ रहे हैं और न ही अन्तरराष्ट्र्रीय इस्लामी आतंकवाद से उनका कोई संबंध है | वे अपनी राष्ट्र्रीयता के लिए लड़ रहे हैं | शेरोन की यात्रा के दौरान यदि भारत ने उनका समर्थन नहीं किया होता तो संयुक्त वक्तव्य में यह क्यों कहा जाता कि ”दोनों पक्षों ने अपने-अपने विचार रखे” याने उनमें सहमति नहीं थी | समझा यह जाता है कि यासर अराफात और ईरान के सवाल पर भी दोनों देशों के विचार भिन्न-भिन्न थे | इस्राइल अराफात को फलस्तीनी आतंकवाद का जनक और पोषक मानता है जबकि भारत उन्हें फलस्तीनी आकांक्षाओं का प्रतीक मानता है| ईरान से भारत के संबंध जिस तरह घनिष्ट होते जा रहे हैं, वह बुश और शेरोन के इस विचार से कैसे सहमत हो सकता है कि एराक़ और उत्तर कोरिया की तरह ईरान भी ‘बुराई की जड़’ है | इस्राइली नेताओं को भारत ने भली-भांति समझा दिया है कि ईरान से उसके संबंध अफगानिस्तान के कारण घनिष्ट हुए हैं| वह ईरान को न तो परमाणु-तकनीक देगा और न ही अत्याधुनिक शस्त्रास्त्र ! इस्राइल के लिए यह जवाब काफी था| यह अच्छा है कि दोस्ती के मादक माहौल में भारत मदहोश नहीं हुआ और वह अपनी टेक पर डटा रहा लेकिन यह असंभव नहीं कि भारत और इस्राइल के संबंध सचमुच घनिष्ट हो गए तो भारतीय विदेश नीति के कई रवैयों में काफी फेर-बदल हो जाएगा |
सबसे पहले तो अमेरिका के साथ भारत की वास्तविक घनिष्ठता बढ़ सकती है| दुविधा खत्म हो सकती है| अमेरिका पाकिस्तानी आतंकवाद के विरुद्घ स्पष्ट रुख अपना सकता है | दूसरा, भारत और इस्राइल मिलकर शस्त्रास्त्र-निर्माण में इतनी प्रगति कर सकते हैं कि इस्राइल अमेरिकी छत्रछाया के परित्याग की बात भी सोचने लग सकता है| तीसरा , यदि अमेरिका अपनी चौधराहट जमाने के लिए अरब तानाशाहों को शै देने लगे तो भारत और इस्राइल मिलकर दुनिया की लोकतांत्र्िाक मध्यम शक्तियों का कोई संतुलनकारी गुट खड़ा करने का विकल्प भी सोच सकते हैं | चौथा, भारत-इस्राइल सहकार के कारण भारत की कृषि और सिंचाई का जबर्दस्त आधुनिकीकरण भी हो सकता है, जो अन्ततोगत्वा भारत को महाशक्ति बनने में सहायता करेगा | रेगिस्तानी इलाके को हरा-भरा करने में इस्राइल ने जो महारत हासिल की है, उसका लाभ लेना भारत ने शुरू कर दिया है
शेरोन की यात्रा के दौरान भारत और इस्राइल के बीच इस बात पर भी सहमति हुई है कि अन्तरराष्ट्र्रीय मंचों पर भारत इस्राइल के विरुद्घ भाषण देने और प्रस्ताव लाने में जरा सावधानी बरतेगा | इस पारम्परिक कूटनीतिक समझ का दूरगामी संकेत यही है कि दोनों राष्ट्र्र अपने पॉंच दशकों के दुराव-छिपाव से मुक्ति पाने को तत्पर हैं | इस पहल पर कुछ उग्र अरब राष्ट्र्र नाराज़ भी हो सकते हैं लेकिन सारी दुनिया जानती है कि कई प्रमुख अरब राष्ट्र्र इस्राइल से सीधे संबंध बनाए हुए हैं और उन्होंने फलीस्तीनियों को चोट पहॅुंचाने का काम भी किया है| भारत ने यह काम कभी नहीं किया| स्वयं यासर अराफात की सरकार अमेरिकी मध्यस्थता या दबाव के कारण इस्राइल से सीधे बात कर रही है| ऐसी स्थिति में भारत से क्यों आशा की जाए कि वह विदेश नीति के नेहरू-युग से बाहर निकलने की कोशिश न करे | स्वयं जवाहरलाल नेहरू ने 1958 में कहा था कि इस्राइल-विरोध “के पीछे कोई गुरू-गंभीर सिद्घांत नहीं है, बल्कि नफे-नुक्सान का गणित है|”
जहॉं तक नेहरू-युग और इंदिरा-युग का प्रश्न है, उन दिनों भारत चाहे इस्राइल की कड़ी भर्त्सना करता रहा लेकिन 1962, 1965 और 1971 के युद्घों के समय भारत ने इस्राइल से सैनिक साजो-सामान प्राप्त करने में कोई संकोच नहीं किया| 1999 के करगिल युद्घ के समय इस्राइल ने सच्ची दोस्ती की मिसाल पेश की| उसने अपने सैनिकों के कंधों से उतारकर अपने शस्त्रास्त्र और सैन्य साजो-सामान भारत भिजवाए| पिछले कई वर्षों से इस्राइल भारतीय गुप्तचरों को न केवल प्रशिक्षण दे रहा है बल्कि भारत-पाक सीमा पर बिजली के तारों की बागड़ लगाने में भी सहायता कर रहा है| भारत की आम जनता में इस्राइल की बहादुरी के प्रति सम्मान का गहरा भाव सदा बना रहा है | भारत का आदमी हमेशा यही सोचता रहा कि जो छोटा-सा इस्राइल इन दर्जनों विशालकाय अरब राष्ट्र्रों को पटकनी मारता रहा, भारत उससे संबंध क्यों नहीं बढ़ाता है ? 1992 में नरसिंहराव सरकार ने कूटनीतिक संबंध स्थापित करके इस्राइल की अस्पृश्यता समाप्त कर दी| यों तो मोरारजी देसाई सरकार ने इस्राइली रक्षा मंत्री मोशे दयान को गुप-चुप भारत बुलवाकर बड़े साहस का परिचय दिया था लेकिन प्रधानमंत्री नरसिंहराव की पहल का ही परिणाम है कि आज इस्राइली प्रधानमंत्री ससम्मान भारत की यात्रा कर सके|
1992 से अब तक दोनों देशों के बीच बहुविध संबंध निरंतर बढ़ते गए | अगर उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, सेनापति वेदप्रकाश मलिक, वैज्ञानिक डॉ. अब्दुल कलाम, नेता ज्योति बसु आदि इस्राइल हो आए तो इस्राइल के विदेश मंत्री शिमोन पेरोज़, राष्ट्र्रपति एज़र वाइज़मैन आदि भी भारत आए | 1992 में पारस्परिक व्यापार लगभग 1 अरब़ रु. का था | अब वह 70 अरब रु. से भी आगे निकल गया है | आगामी कुछ वर्षों में भारत इस्राइल से अगर अत्याधुनिक हथियार खरीदेगा तो वे कई अरब डॉलर के होंगे और इस्राइल भी भारत से हीरे के अलावा सैकड़ों चीजें खरीदकर भारत का बड़ा बाजार बन सकता है | भारत-इस्राइल इस समय लगभग डेढ़ सौ प्रयोजनाओं में एक-दूसरे का सहकार कर रहे हैं| दोनों राष्ट्र्र व्यापार की दृष्टि से ही एक-दूसरे के सहायक नहीं होंगे बल्कि वे विश्व राजनीति में भी संयुक्त भूमिका निभा सकते हैं | इस्राइल को भारत ने जो सम्मान दिया है, उसका असर सारी तीसरी दुनिया में दिखाई पड़ेगा और इस्राइल के ज़रिए गोरी दुनिया के अंतरंग कक्षों में भारत की पैठ बढ़ जाएगी|
दोनों राष्ट्र्रों की अपनी-अपनी नियति है | भारत और इस्राइल दोनों राष्ट्र्रों का इतिहास हजारों साल पुराना है | अपनी-अपनी ज़मीन में दोनों की जड़ें काफी गहरी हैं | इस्राइल छोटा है और भारत कमजोर, तो भी दोनों राष्ट्र्र अपने-अपने क्षेत्र की महाशक्तियॉं हैं | भारत के पास परमाणु बम है और इस्राइल के पास जब भी वह चाहे, बम हो सकता है | दोनों राष्ट्र्र लगातार पड़ौसियों से जूझते रहे हैं | दोनों राष्ट्र्र लोकतांत्रिक हैं | तो भी जैसे भारत एक है, वैसे ही, बल्कि उससे भी अधिक इस्राइल चट्रटान की तरह अडिग है | दोनों एक-दूसरे से बहुत कुछ सीख सकते हैं | बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक का द्वंद्व दोनों देशों में है| यदि भारत इस्राइल से बहादुरी सीख सकता है तो इस्राइल भारत से सहिष्णुता सीख सकता है | दोनों देशों के बीच केवल आतंकवाद ही एक-मात्र मिलन-बिन्दु नहीं है बल्कि इतिहास, परम्परा, मूल्यमानों की दोनों धाराऍं अनेक बिन्दुओं पर एक-दूसरे को स्पर्श ही नहीं करतीं, बलवान भी बनाती हैं | यह असंभव नहीं कि भारत-इस्राइल सहकार का बढ़ता हुआ कारवाँ पश्चिम एशिया और दक्षिण एशिया में युद्घ का नहीं, शांति का संदेशवाहक सिद्घ हो| फलस्तीनियों के प्रति इस्राइल को नरम करने का काम भारत कर सकता है और पाकिस्तान की हडि्रडयों में कँपकँपी दौड़ाने का काम इस्राइल कर सकता है| दोनों इलाकों में शांति हो, इसके लिए जरूरी है कि इस्राइल और पाकिस्तान, दोनों नरम पड़ें | अगर इस लक्ष्य की सिद्घि में शेरोन की भारत-यात्रा कण-भर योगदान भी कर पाए तो अन्तरराष्ट्रीय राजनीति के इतिहास में उसका मन-भर योगदान माना जाएगा|