कर्नाटक विधान सभा के नतीजे , लगभग उसी तर्ज पर आये , जिसका डर मतदान के बाद व्यक्त किया जा रहा था । कांग्रेस राज्य में सरकार बना लेगी , ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही थी । लेकिन उसे सरकार बनाने के लिये किसी की सहायता की ज़रुरत पड़ेगी , ज़्यादातर विश्लेषक यही मान कर चल रहे थे । देवगौडा के बेटे कुमारस्वामी और कर्नाटक जनता पार्टी के निर्माता निर्देशक येदियुरप्पा भी इसी ज़रुरत को मद्देनज़र रखते हुये अपनी भविष्य की रणनीति बना रहे थे । प्यासा कुएँ के पास आयेगा , यह सोच कर कुमारस्वामी और येदियुरप्पा अपने अपने कुँए में ज़्यादा से ज़्यादा पानी भर लेने के प्रयास में जुटे हुये थे । लेकिन कर्नाटक की जनता ने कांग्रेस को प्यासा नहीं रहने दिया । उसने उनके घड़े में ही इतना पानी भर दिया कि उसे इस कड़कती धूप में इन दो कुओं के पास जाने की ज़रुरत से मुक्त कर दिया । बैसे भी जनता ने जनता दल सैक्युलर के कुमारस्वामी के कुएँ में तो फिर भी इतना पानी भर दिया कि फ़िलहाल उनके परिवार और नज़दीक़ के मित्रों की कुछ वर्षों तक प्यास बुझती रहेगी , लेकिन उसने येदियुरप्पा के कुएँ में ज़्यादा पानी नहीं भरा । उथला कुआँ गर्मी में जल्दी सूख जाता है । हाँ , यदि येदियुरप्पा अपना सारा ज़ोर इस की रक्षा में ही लगा दें तो यह थोड़े पानी के बाबजूद देर तक चल सकता है ।
लेकिन असली प्रश्न भारतीय जनता पार्टी का है । कर्नाटक के लोगों ने इस बार शर्त लगा दी थी कि भाजपा को सत्ता के तालाब से पानी पीने से पहले उसके कुछ प्रश्नों का सही सही उत्तर देना पड़ेगा । भाजपा के लोगों के हार के बाद जो बयान आ रहे हैं , उससे लगता है कि भाजपा को अभी भी यह विश्वास है कि उसने जनता के यक्ष प्रश्नों का उत्तर सही सही दे दिया था । भाजपा का कहना है कि येदियुरप्पा भ्रष्टाचारी थे , जैसे ही उनके इस आचारण का पार्टी को पता चला , वैसे ही तुरन्त कार्यवाही करते हुये , पार्टी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया । अब जब जनता को उसके प्रश्न का सही उत्तर मिल गया था , तब भी जनता ने पार्टी को क्यों हराया ? भाजपा इस पर हैरानी ज़ाहिर कर रही है । यह एक ऐसा चौराहा है जिसे पार किये बिना भाजपा की हार के कारण तक नहीं पहुँचा जा सकता ।
असली मामला इसके बाद ही शुरु होता है । क्या भाजपा सचमुच कर्नाटक की जनता के यक्ष प्रश्न को समझ पाई थी ? या ध्यान से उसने प्रश्न को सुना भी था ? कर्नाटक में कन्नड़ बोली जाती है । वहाँ की जनता अपने यक्ष प्रश्न कन्नड़ भाषा में पूछ रही हो और दिल्ली वाले अंग्रेज़ी भाषा में पकड़ होने के कारण उसको समझ ही न पाये हों ? जनता ने प्रश्न कोई और पूछा और भाजपा ने उत्तर किसी और प्रश्न का दे दिया । येदियुरप्पा भ्रष्टाचारी हैं , यह प्रश्न तो शायद संतोष हेगड़े ने पूछा था ।यह भी कहा जाता है कि संतोष हेगड़े के प्रश्नों के पीछे भी उनके पिता रामकृष्ण हेगड़े के वक़्त की राजनीति रही है । कर्नाटक की जनता का शायद संतोष हेगडे के इस प्रश्न से कुछ लेना देना था ही नहीं । भाजपा ने संतोष हेगड़े के प्रश्न को ही कर्नाटक की जनता का प्रश्न समझ लिया और हर गली कूचे से उसका उत्तर देना शुरु कर दिया । इसी उत्तर देने में येदियुरप्पा का बलिदान हुआ । कर्नाटक की जनता ने तो अपने यक्ष प्रश्न तब पूछने शुरु किये जब चौराहे पर येदियुरप्पा का बलिदान दिया जा रहा था । जनता सवाल पूछ रही थी कि येदियुरप्पा का बलिदान क्यों किया जा रहा है और बलिदान देने वाले संतोष हेगड़े की सीडी सुना रहे थे । सवाल चना जवाब गन्दम । जब सवाल चना हो और जबाव गन्दम का दिया जा रहा हो तो परिणाम वही आता है जो बेंगलुरु से आया है ।
कर्नाटक के पूरे चुनाव में कांग्रेस कहीं नहीं थी । केवल भाजपा थी या येदियुरप्पा थे । कर्नाटक के लोगों ने बस भाजपा को हराया है । उन्होंने कांग्रेस को जिताया नहीं है । कांग्रेस को जिताने का दोष कर्नाटक की जनता पर नहीं मढ़ा जा सकता । जब भाजपा को हारना था तो स्वभाविक ही किसी न किसी की जीत की लाटरी लगनी ही थी । कर्नाटक में यह लाटरी कांग्रेस की लग सकती थी । इस लिये कर्नाटक में जीतने का दोष कांग्रेस को नहीं दिया जा सकता । अब कुछ विद्वानों ने भाजपा को एक और ही पाठ पढ़ाना शुरु कर दिया है और भाजपा ने भी पढ़ाकू बच्चे की तरह उसे दोहराना शुरु कर दिया है । उनका कहना है कि भाजपा तो भ्रष्टाचार से लड़ रही है , लेकिन जब जनता ही भ्रष्टाचारियों का साथ दे तो क्या किया जा सकता है ? अब इस जनता से कोई आशा नहीं रखी जा सकती । भाजपा को ऐसे मार्गदर्शकों से तुरन्त छुटकारा पा लेना चाहिये । यदि कोई राजनैतिक दल जनता से ही निराश होने लगे और उस पर ही दोषारोपण करने लगे तो यह उसके स्वास्थ्य के लिये सचमुच चिन्ताजनक है । इस मनोवृत्ति से जितनी जल्दी छुटकारा पाया जाये उतना ही भाजपा के लिये श्रेयस्कर रहेगा ।
कर्नाटक चुनाव में विकल्पहीनता के कारण अनायास मिली जीत के बाद कांग्रेस ने फिर भालू और बन्दर वाला नाच जनता को दिखाना शुरु कर दिया है । सारे दरबारी एक स्वर से कांग्रेस की जीत का दोष भाजपा को न देकर , उसका श्रेय राहुल गान्धी को दे रहे हैं । कांग्रेस भ्रष्टाचार के भार से डूबती है या नहीं , इस पर दो राय हो सकती है , लेकिन दरबारी परम्परा निश्चित ही कांग्रेस को डुबो देगी । वैसे भी कर्नाटक का पुराना हिसाब किताब रखने वालों ने बताना शुरु कर दिया है कि कर्नाटक में जब भी कोई पार्टी जीतती है तो वह अगले चुनाव में केन्द्र की सत्ता से अवश्य हाथ धो बैठती है ।
अब थोड़ा आँकड़ों पर भी दृष्टिपात कर लिया जाये । राज्य में विधानसभा की २२३ सीटों के लिये चुनाव हुये । कांग्रेस को १२१ सीटें मिलीं और उसे ४१ सीटों का फ़ायदा हुआ । भाजपा को चालीस सीटें मिलीं और उसे ७० सीटों का नुक़सान हुआ । जनता दल सैक्युलर को भी चालीस सीटें मिलीं और उसे भी १२ सीटों का लाभ हुआ । येदुरप्पा की कर्नाटक जनता पार्टी को छह सीटें मिलीं ।यहाँ तक मतों के प्रतिशत का हिसाब किताब है , कांग्रेस को ३७ प्रतिशत मत प्राप्त हुये । भाजपा को बीस प्रतिशत और येदुरप्पा की पार्टी को दस प्रतिशत मत मिले । यानि दोनों को कुलमिला कर तीस प्रतिशत मत मिले । कुछ प्रतिशत मत दोनों की लड़ाई के कारण दोनों से ही खिसक गये होंगे । मोटे तौर पर यदि येदुरप्पा और भाजपा अलग न होते तो भाजपा को सीटों का बहुमत ही नहीं , मतों का प्रतिशत भी कांग्रेस से ज़्यादा मिलता । लेकिन इन चुनाव परिणामों से एक बात और भी स्पष्ट हो गई है कि भाजपा के भीतर कोई नेता कितना भी ताक़तवर क्यों न हो , यदि वह पार्टी से बाहर जाता है , तो वह पार्टी को नुक़सान तो पहुँचा सकता है , लेकिन उसका अपना राजनैतिक भविष्य भी हाशिये पर चला जाता है । परन्तु इस कारण से ही दोनों पक्ष ख़ुश होते रहें , वह बुद्धिमत्ता नहीं राजनैतिक हाराकीरी ही कहलायेगी ।
भाजपा को आन्तरिक झगड़े सुलझाने के लिये अपना सक्षम आन्तरिक तंत्र विकसित करना होगा । आगामी लोकसभा चुनावों को देखते हुये यह जितना जल्दी विकसित हो सके उतना ही श्रेयस्कर रहेगा । दूसरा उसे जनता के यक्ष प्रश्नों को ठीक तरीके से समझने की क्षमता भी विकसित करनी पड़ेगी । इस क्षेत्र में प्रश्नों की ग़लत समझ कितना नुक़सान कर सकती है , यह कर्नाटक ने बता ही दिया है । जिन कारणों से भाजपा उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में हारी थी , उन्हीं कारणों से उसे कर्नाटक में पराजय मिली है । इसका समाधान पार्टी को जल्द कर लेना चाहिये ।