अब आंबेडकर को भुनाए भाजपा
डॉ. भीमराव आंबेडकर की 125वीं जयंती जिस जोर-शोर से भाजपा सरकार मना रही है, वह देखकर कांग्रेसी लोग दंग रह गए हैं। भाजपाइयों ने कांग्रेसियों को भी मात कर दिया है। इसमें ज़रा भी शक नहीं है कि आजादी के बाद कांग्रेसियों ने आंबेडकर को बहुत महत्व दिया जबकि अंग्रेजों के जमाने में गांधी और आंबेडकर के बीच बार-बार मुठभेड़ होती रही। गांधी को नीचा दिखाने में आंबेडकर ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। गांधी तो अंग्रेजों का विरोध करने पर तुले हुए थे। लेकिन आंबेडकर गांधी को विफल करने के लिए अंदर ही अंदर अंग्रेजों से मिलीभगत बनाए रखते थे।
गांधी चाहते थे कि अस्पृश्यता खत्म हो और हरिजन लोग हिंदू समाज में घुल-मिलकर रहें लेकिन डा.आंबेडकर सवर्णों के हाथो कड़वे घूंट पिए हुए थे। वे हिंदू धर्म छोड़कर अंतिम समय में बौद्ध बने। हैदराबाद के निज़ाम ने उन्हें मुसलमान बनाने की कोशिश भी की। आंबेडकर ने ‘अनुसूचितों’ या ‘दलितों’ के लिए 1932 के गोलमेज सम्मेलन में पृथक निर्वाचन-क्षेत्र की मांग का समर्थन किया था, जिसके विरोध में गांधी को आमरण अनशन करना पड़ा था। ‘दलितों के मसीहा’ कहलवाने वाले आंबेडकर ने खुद ‘दलित’ शब्द का कड़ा विरोध किया था लेकिन अंग्रेजों के उकसावे पर इसी शब्द को मान्यता देकर हिंदू समाज में अलगाववाद को पैदा करने की कोशिश हुई।
ध्यान रहे अंग्रेजों ने जैसे 1909 के एक्ट में मुसलमानों और 1919 के एक्ट में सिखों के अलग निर्वाचन-क्षेत्र बना दिए थे, वैसे 1935 के एक्ट में वे दलितों के लिए अलग व्यवस्था बनाने पर तुले हुए थे। एम.सी. राजा जैसे लोकप्रिय दलित नेता को दरकिनार करके अंग्रेजों ने आंबेडकर-जैसे बुद्धिजीवी को दलितों का प्रतिनिधि मान लिया था, वैसे ही उन्होंने मुसलमानों का नेता मुहम्मदअली जिन्ना को बना दिया था। आंबेडकर जितना द्वेष गांधी से रखते थे, उससे ज्यादा जिन्ना से रखते थे । वे पाकिस्तान और मुस्लिम तुष्टिकरण के उतने ही विरोधी थे, जितने सावरकर थे। इस दृष्टि से भाजपा यदि आंबेडकर को भुनाने पर तुली हुई है तो क्या गलत कर रही है?
इसमें शक नहीं कि आंबेडकर प्रखर बुद्धिवादी थे। स्वाधीनता-संग्राम के बड़े-बड़े नेताओं से भी ज्यादा सम्मान आंबेडकर को इसीलिए मिला कि वे स्वतंत्र भारत में दलित वोट खींचने के चुंबक बन चुके हैं। कांग्रेसियों ने गांधी और नेहरु के बाद सबसे ज्यादा मूर्तियां आंबेडकर की ही खड़ी की हैं। कांग्रेसियों ने आंबेडकर को संविधान-निर्माता घोषित कर दिया जबकि वे संविधान की ‘ड्राफ्टिंग कमेटी’ के अध्यक्ष-भर थे। अब भाजपा की नरेंद्र मोदी सरकार भी डा. आंबेडकर के नाम पर प्रांतीय चुनावों में दलितों के वोट झाड़ना चाहती है। जो आंबेडकर ‘जाति का समूलनाश’-जैसा क्रांतिकारी ग्रंथ लिख गए हैं, वे जातिवाद के सबसे बड़े मसीहा बन गए हैं। इस जातिवाद के जहर को खत्म करने की बजाय हमारे सभी नेता आज उसे पनपाने की कोशिश कर रहे हैं। क्या करें, वे सब वोट और नोट के गुलाम जो हैं।