नरेंद्र मोदी की नाव भंवर में हैं। 17 दिन बीत गए लेकिन कोई किनारा नहीं दीख पड़ रहा है। खुद मोदी को खतरे का अहसास हो गया है। यह नाव मझधार में ही डूब सकती है। वरना मोदी-जैसा आदमी, जो 2002 में सैकड़ों बेकसूर लोगों की हत्या होने पर भी नहीं हिला, वह सभाओं में आंसू क्यों बहाता? खुद के कुर्बान होने का डर जो है। संसद के सामने दो हफ्तों से घिग्घी क्यों बंधी हुई है? यह बताता है कि मोदी पत्थरदिल नहीं है, तानाशाह नहीं है। वह इंदिरा गांधी या हिटलर नहीं है। वह सख्त दिखने में है, बोलने में है लेकिन अंदर से काफी नरम है। क्या आपने कभी हिटलर, मुसोलिनी या इंदिरा गांधी को सार्वजनिक रुप से रोते हुए देखा है या सुना है?
इसका अर्थ यह नहीं कि मोदी पराई पीर पर पिघल रहे हैं। जिस बात ने मोदी को पिघलाया है, वह यह है कि उन्होंने इतनी जबर्दस्त पहल की थी और यह क्या हो गया? लेने के देने पड़ गए। जिन लोगों की पसीने की कमाई मारी जाएगी, क्या वे मोदी को 2017 के प्रादेशिक और 2019 के राष्ट्रीय चुनाव में माफ करेंगे? मोदी भी मजबूर हैं। खुद से मजबूर ! वे जिस सीढ़ी से ऊपर चढ़ते हैं, उसे ढहाने की कला में वे उस्ताद हैं। केशूभाई व लालकृष्ण आडवाणी मिसाल हैं। इस बार उन्होंने भाजपा और संघ की सीढ़ियों पर भी प्रहार कर दिया है। भाजपा और संघ देश के छोटे व्यापारियों के दम पर चलने वाले संगठन हैं। वे संघ और भाजपा की रीढ़ हैं। मोदी ने इस रीढ़ पर ही डंडा जमा दिया है। मोटे पैसे वाले और विदेशी गुप्त खातेवाले तमाशा देख रहे हैं और मजे ले रहे हैं। उन्होंने रातों-रात अपने अरबों-खरबों रुपयों को सोने-चांदी, डालरों और संपत्तियों में बदल लिया है। जन-धन योजना खातों में एक सप्ताह में ही 21 हजार करोड़ रु. कहां से आ गए? काला धन दुगुनी गति से सफेद हो रहा है।
मोदीजी ने आम आदमी को भी काले धन की कला में पारंगत कर दिया है। दो हजार के नोट ने बड़ी सुविधा कर दी है। करोड़ों गरीब लोग काले को सफेद करने के लिए रात-रात भर लाइन में लगे रहते हैं। अमित शाह ने 15 लाख रु. के वादे को चाहे चुनावी जुमला कहकर उड़ा दिया हो लेकिन मोदी की जादूगरी जिंदाबाद कि अब करोड़ों लोगों के खातों में लाखों रु. रातों-रात पहुंच गए हैं। सरकार घबरा गई है। मोदीजी पीछे हटना नहीं जानते लेकिन जिस अदा से वे लड़खड़ा रहे हैं, उसे देखकर लाल किले में बैठा हुआ मुहम्मद शाह रंगीला भी गश खा जाए।
अब काले धन, रिश्वतखोरी और आतंक की रेल नए नोटों की पटरी पर दौड़ेगी।रोज-रोज फरमान जारी करनेवाली यह सरकार अपनी गलती खुद ही स्वीकार कर रही है। वह आम जनता को राहत पहुंचाने के लिए बेताब दिखाई पड़ रही है। नौसिखिया प्रधानमंत्रीजी फंस गए हैं लेकिन उन्हें बचाने की कोशिश न तो उनकी पार्टी कर रही है और न ही विरोधी दल। विरोधी दल तो चाहते हैं कि उनकी नय्या जल्दी से जल्दी डूब जाए। लेकिन इस बचाने और डुबाने के खेल में कहीं भारत का भट्ठा न बैठ जाए। इसे राष्ट्रीय संकटकाल समझकर आज जरुरत है कि मोदी की मदद की जाए। सरकार को अच्छे-अच्छे ठोस सुझाव दिए जाएं। यदि दिसंबर में भी हालात पर काबू न हो तो मोदी से कहा जाए कि हिम्मत करो और इस तुगलकी फरमान को वापस ले लो। वापसी के लिए मोदी की पीठ ठोकी जाए। उत्साह बढ़ाया जाए। उनका अपमान न किया जाए। उन्होंने नोटबंदी अच्छे इरादे से की थी लेकिन कभी-कभी तीर गलत निशाने पर भी लग जाता है। मोदी की नाव भंवर में डूब जाए, उससे कहीं अच्छा है कि उसे खींचकर किनारे पर ले आया जाए।