मुझे इन दिनों लोग फोन कर रहे हैं और व्हाट्साप भेजकर कह रहे हैं कि आप धोखा खा गए। आपने बोया था मोदी और उसमें से निकला मनमोहन! आपका यह कहना भी फिजूल साबित हुआ कि कश्मीर में अब खुलेगा शिवजी का तीसरा नेत्र! पिछले 10 दिन में तीसरा नेत्र तो क्या खुला, बाकी दोनों नेत्र भी बंद हो गए। उड़ी में आतंकी हमला हुआ और हमारी 56 इंच की यह सरकार 6 इंच कार्रवाई भी नहीं कर सकी। कोरा जबानी जमा-खर्च करती जा रही है। भारत की जनता की आंखों में बस धूल झोंक रही है। इधर उसने दो कागजी गोले उछाले हैं।
एक तो संयुक्तराष्ट्र में सुषमा का भाषण और दूसरा सिंधु-जल समझौते के तहत बांधों का निर्माण ताकि पाकिस्तान को हमारी नदियों से मिलने वाले पानी में कटौती हो जाए। सुषमा स्वराज को बधाई कि उन्होंने अपना भाषण हिंदी में दिया, जिसे भारत और पाकिस्तान की जनता समझ सकती है। सुषमाजी अपने नेताओं में सर्वश्रेष्ठ वक्ता हैं लेकिन उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कौन सी ऐसी बात कही, जिससे आतंकवादी आतंकित हो जाएंगे या उनको शह देने वाले पस्त हो जाएंगे? दुनिया के अन्य देश क्या उनके भाषण से जरा भी प्रेरित होंगे? क्या उन्हें कश्मीर पर कृष्ण मेनन और शीतयुद्ध पर निकिता ख्रुश्चौफ के भाषणों की याद दिलाऊं?
सुषमा के शब्दों में इतना दम है कि वे चाहतीं तो वे आतंकियों की चमड़ी पर फफोले उपाड़ सकती थीं लेकिन वे क्या करें? उन पर मोदी का असर हो गया लगता है। जो कुछ अफसर लोग लिखकर निगला दें, उसी को उगल दीजिए।
जैसे कि मोदी ने एक जुमला उगल दिया। पानी और खून एक साथ नहीं बह सकता। क्या मतलब? कुछ नहीं! निरर्थक शब्द-जाल! खून को रोकने में तो मोदी बन गए मनमोहन! न पठानकोट में कुछ कर सके और न उड़ी में! पानी को भी वे रोक नहीं सकते। सिंधु जल संधि रद्द नहीं कर सकते। सिर्फ अपनी तरफ की नदियों पर बांध बना सकते हैं। बांध बनकर जब तक तैयार होंगे, तब तक मोदीजी पता नहीं कहां होंगे। याने खून भी बहता रहेगा और पानी भी!
पता नहीं, हमारी सरकार का यह रवैया इतना गोलमाल क्यों हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि उड़ी के हमले के बारे में हमारी सरकार ही अंधेरे में हो। उसे अभी तक यह ठीक से पता ही न हो कि ये हमलावर कौन थे? कहीं आत्मविश्वास की इस कमी के कारण ही यह 56 इंच की जबान इतनी हकला तो नहीं रही है? यदि ऐसा ही है तो यह तो मनमोहन होने से भी बदतर है। मनमोहन के मौन में कम से कम गरिमा तो होती थी। यहां तो नौटंकी वाले पद्मासन लगाए बैठे हैं और अनुलोम-विलोम खींच रहे हैं।