एक तरफ देशभर में बाल दिवस में बच्चों का सम्मान किया जाता रहा, बच्चे विविध कार्यक्रमों में भाग लेते, खेलते कूदते और खुशियां मनाते रहे, वहीं नसबंदी के आपरेशन के बाद मौत की शिकार महिलाओं के बच्चे अपनी मां के यादों में खोए नजर आए। डरे-सहमे बच्चे घर में ही गमगीन माहौल में मां की मौत के बाद पिता से चल रही पुलिस की पूछताछ को टकटकी लगाए देखते रहे। शहर से लेकर गांव तक के किसी भी अफसर या नेता ने उन बच्चों का सम्मान करना तो दूर याद करना भी मुनासिब नहीं समझा।
14 नवम्बर बाल दिवस के दिन मृतका के बच्चों के जायजा लेने के पत्रकारों की टीम जब शहर से 20 किमी दूर ग्राम अमसेना पहुंची तो मृतका फूलबाई के दोनों बच्चे घर में ही बैठे दिखाई दिए। मृतका के आठ वर्षीय बड़े बेटे नारायण श्रीवास से टीम ने बातचीत कर बाल दिवस के संबंध में पूछना चाहा, तो इस पर आठ वर्षीय नारायण ने बताया कि हर साल वह स्कूल में जाकर बाल दिवस मनाता था। नारायण के अनुसार हर साल स्कूल में बाल दिवस के दिन कुछ-कुछ खाने को मिलता था, तो कई तरह के नाच-गाने होते थे। मां की मौत के बाद अबोध नारायण स्कूल नहीं जाने की वजह तो नहीं बता पाया, लेकिन वह घर में परिजन के रोना-गाना, मेहमानों के आने-जाने से भयभीत जरुर दिखाई दिए।
टीम ने नारायण से बाल दिवस के दिन की दिनचर्या के बारे में जानना चाहा तो वह बताया कि वह पिछले कुछ दिनों से स्कूल नहीं जा रहा है, घर में ही छोटी बहन के साथ खेलता रहता है। उसने बताया कि आज सुबह कुछ लोगों के रोने की आवाज सुनकर उसकी नींद खुली। नारायण ने बताया कि सुबह से शाम तक बड़े-बड़े गाड़ी में साहब व पुलिसवाले आते रहते हैं, आज भी पुलिस के साहब आकर पापा से कुछ-कुछ पूछ रहे थे। घर के सामने पूरे दिन गांववालों की भीड़ लगी रहती है, ये सभी लोग मम्मी के बारे में ही बात करते रहते हैं। मेरी मम्मी मुझे रोज स्कूल भेजती थी, मम्मी होती तो आज भी स्कूल गया रहता।
मृतका फूलबाई के तीन बच्चे थे, इसमें सबसे बड़ा लड़का आठ साल का नारायण है, 4 साल की नीमिता दूसरे नम्बर की बच्ची है, सबसे छोटा नितेश एक साल का ही है। मां के चले जाने के बाद मासूम बालक नारायण अपने छोटे भाई-बहन के साथ ही रहता है। गांववालों ने बताया कि नारायण अपनी छोटी बहन नीमिता को पूरे दिन साथ रखा रहता है, एक साथ ही दोनों घर के सामने खेलते रहते हैं। इस बीच बच्चे कई बार घर के बाहर से ही अपने मां को आवाज देते नजर आते हैं। मृतका के पति रुपचंद श्रीवास ने बताया कि सबसे छोटे बेटा नितेश एक साल का ही है, वह अपने माँ के साथ ही सोता था। दिन में परिवार वालों व बच्चों के बीच नितेश खेलता रहता है, डिब्बा बंद दूध पीता रहता है, लेकिन रात के समय मां को याद करके खूब रोता है। नितेश पूरी रात इधर-उधर टकटकी लगाए देखते रहता है। मां को याद करके बिलखते नितेश को रात में चुप करना काफी मुश्किल होता है।
गांव में सरकारी स्कूल होने के बावजूद बच्चे को अच्छे शिक्षा दिलाने की सोच से मां-बाप ने अपने आठ वर्षीय बेटे नारायण को सरस्वती शिशु मंदिर में दाखिल कराया है। नारायण ने बताया कि स्कूल हर रोज सुबह 7 बजे लगता है, 12 बजे तक छुट्टी हो जाती है। परिजन के अनुसार मृतका अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाकर साहब बनाना चाहती थी। मृतका के पूत्र नारायण ने बताया कि इसी साल छोटी बहन नीमिता का स्कूल में एडमिशन कराया है, इस साल नीमिता का नाम केजी वन में लिखवाया गया है। दोनों एक साथ ही स्कूल जाते हैं, मैं स्कूल नहीं जा रहा हॅूं इसलिए मेरी बहन भी स्कूल नहीं गई, इसलिए बाल दिवस भी नहीं मना पाई।
नसबंदी के बाद मां की मौत से सहमे बच्चों को दो दिन में ही नेता व अफसर भूल गए। मृत्यु के बाद घर जाकर श्रेय लेने वाले अधिकारी व नेता बाल दिवस के दिन बच्चों को याद करना भी उचित नहीं समझा। शुक्रवार को दोनों राजनीतिक पार्टी के एक भी नेता व प्रशासनिक अधिकारी बच्चों को देखने के लिए घर नहीं पहुंचे। मां की मृत्यु से अबोध बच्चे पूरे दिन घर के सामने ही खेलते रहे। पत्रकारों की टोली जब अमसेना के मृतका फूलबाई के घर पहुंची तो पुलिस का अमला मृतका के पति से पूछताछ कर रहा था। चारों तरफ से पुलिस अमला से घिरे अपने पिता को देखकर नारायण व निमिता दोनों भयभीत दिखाई दिए, साथ ही पिता के पूछताछ को टकटकी लगाए देखते रहे।
पिछले तीन दिनों से जिला अस्पताल, सिम्स व अपोलो पहुंचकर बच्चों की पूछपरख करने वाले नेता व अधिकारी शुक्रवार को नहीं दिखाई दिए। अन्य दिनों की तरह ही शुक्रवार को बाल दिवस के दिन भी जिला अस्पताल, सिम्स व अपोलो हास्पिटल में बच्चे बिलखते रहे, बच्चों के परिजन बच्चों को झुला झुलाकर व खिलौने के सहारे मन बहालते दिखाई दिए। बाल दिवस के दिन बच्चों के पास मिलने नहीं आने की चर्चा पूरे दिन अस्पतालों में होती रही।
नसबंदी के बाद अमसेना निवासी रेखा निर्मलकर की मौत ने भाई-बहन को ही अलग कर दिया है। मृतका रेखा निर्मलकर के एक ढाई साल की पुत्री कीर्ति एवं एक चार माह का पुत्र शुभम है। मृतका के पति जगदीश निर्मलकर ने चार माह के शुभम को पास रखने से असमर्थ बताते हुए उसे उसके नानी के घर ही छोड़ दिया है, जबकि बड़ी बेटी कीर्ति को खुद के पास रखा हुआ है। अब चार माह का शुभम सुबह शाम व रात को मां को याद करके रोता रहता है। इसे संभालना घर वालों के लिए चुनौती बन चुकी है। इसे भी बाल दिवस के दिन देखने के लिए कोई भी नेता या अधिकारी नहीं पहुंचा ।