लगता है कि हमारी सरकार की पाकिस्तान-नीति रामभरोसे ही चल रही है। प्रधानमंत्री नया पैंतरा खोल रहे हैं और विदेश सचिव पुराना राग ही अलाप रहे हैं। हो सकता है कि दोनों में कोई सलाह-मश्विरा ही न हुआ हो। मोदी ने कहा कि पाक अधिकृत कश्मीर असली मुद्दा है। गिलगित है। बल्तिस्तान है। ये दोनों इलाके कश्मीर से भी बड़े हैं। यदि ये मुद्दे हैं तो फिर इन पर बात क्यों नहीं होनी चाहिए? आप इन मसलों पर बात करेंगे और पाकिस्तान बदले में कश्मीर पर बात करेगा? इसमें हम कमजोर नहीं है। कश्मीर पर हमकों दुम दुबाने की जरुरत क्या है? हम जब दुम दबाते हो तो दुनिया को संदेश जाता है कि भारत की दाल में कुछ काला है।
पहली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने हिम्मत की है और उस बात को दोहराया है तो आगे उसे परवान चढ़ाने का काम विदेश मंत्रालय के जिम्मे है लेकिन विदेश सचिव जयशंकर कह रहे हैं कि वे पाकिस्तान से कश्मीर पर कोई बात नहीं करेंगे। वे पाकिस्तान जाने को तैयार हैं लेकिन सिर्फ वे आतंकवाद पर बात करेंगे। एक हद तक वे ठीक हैं, क्योंकि आतंकवाद के कारण ही किसी अन्य मुद्दे पर भी बात नहीं हो पा रही है। आतंकवाद पर जरुर बात करें लेकिन सिर्फ उसी पर क्यों?
पिछले साल यह तय हुआ था कि दोनों विदेश सचिव लगभग दर्जन भर मुद्दों पर बात करेंगे। जो सूची बनी थी, उसमें कश्मीर का मुद्दा ऊपर था। जयशंकर जब जाएं, तब जाएं, अभी अरुण जेटली खुद जाए। पाकिस्तानी नेताओं, फौज के जनरलों और पत्रकारों से वे सीधी बात करे? जेटली भी अपनी बात आतंकवाद से ही शुरु करें लेकिन आतंकवाद की अम्मा को न भूलें? वह क्या है? वह कौन है? वह कश्मीर है। कश्मीर का मसला हल हो जाए तो फिर क्या आतंकवाद जिंदा रहेगा?
मगर आप सिर्फ पत्ते तोड़ने की फिराक में हैं। मैं आपसे जड़ खोदने की सिफारिश कर रहा हूं। प्रधानमंत्री ने ‘आजाद कश्मीर’ (मकबूजा कश्मीर) का मसला छेड़ा है याने बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है तो हमारे अफसरों से मैं उम्मीद करता हूं कि वे हमारे नेताओं को महाभारत के अभिमन्यु की तरह चक्र-व्यूह में फंसने नहीं देंगे। वे पुरानी लकीर पीटने के बजाय नई लकीर को लंबी खींचने की कोशिश करें। पाकिस्तान को ‘नरक’ कहने से काम नहीं चलेगा। यदि वह ‘नरक’ है तो भी भारत के सहयोग के बिना वह स्वर्ग नहीं बन सकता।