लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान की दुखती रग बलूचिस्तान का जिक्र क्या किया कि उसकी पूरी बौखलाहट दुनिया के सामने आ गई। बलूचिस्तान, गिलगित, बाल्टिस्तान और पाक के कब्जे वाले कश्मीर में लोगों पर पाकिस्तानी हुकूमत के अत्याचारों के खिलाफ जारी मानवाधिकार आंदोलनों का समर्थन करने और वहां के लोगों की प्रतिक्रिया का प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में जिक्र किया। उनका कहना था कि बलूचिस्तान के लोगों ने उनका मुद्दा उठाने पर भारत का आभार जताया है। इस बात पर पाकिस्तान को बौखलाना था, सो बौखालाया, इस पर तो कोई अचरज नहीं हुआ। पर पाकिस्तान की दुखती रग पर हाथ रखने से हुए दर्द से कांग्रेस के नेताओं, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, नेशनल कांफ्रेस और कुछ अन्य लोगों की बौखलाहट समझ से बाहर है। पहले कांग्रेस के नेता और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने इसे पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में दखल बताया। माकपा नेता सीताराम येचुरी ने भी कह दिया कि बलूचिस्तान का मुद्दा उठाकर हम पाकिस्तान को अवसर दे रहे हैं। अब पाकिस्तान कह सकता है कि चूंकि भारत बलूचिस्तान की बात करने लगा है तो उन्हें कश्मीर की बात करने का अधिकार है। इस तरह की विदेश नीति के साथ हम दूसरों को कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने का अवसर दे रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने बलूचिस्तान का मुद्दा उठाने के लिए केंद्र की निंदा की और कहा कि यह मुद्दा ऐसे समय में उठाया गया है जबकि कश्मीर हिंसा से जूझ रहा है। प्रधानमंत्री के पाकिस्तान को ललकारने पर पूरे देश में बड़े जोरदार ढंग से स्वागत किया गया। सलमान खुर्शीद के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया होने के बाद कांग्रेस के नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने प्रधानमंत्री के भाषण का समर्थन किया और कुछ और बातें भी की। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अज़ीज़ ने भी कहा कि इससे वहां हालात बिगाड़ने में भारत के हाथ की पुष्टि होती है। हमारे देश के नेता प्रधानमंत्री के भाषण को पाकिस्तान के अंदरूनी मामलों में दखल बता रहे हैं तो दूसरी तरफ दुनियाभर में उनकी प्रशंसा हो रही है।
बलूचिस्तान या अन्य मामलों को लेकर पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में दखल देने का आरोप लगाने वाले नेताओं को क्या यह जानकारी नहीं है कि हमारा पड़ोसी देश हमारे पर पहले भी इस तरह के आरोप लगाता रहा है और वह भी बिना सुबूत। इस साल अप्रैल महीने में पाकिस्तानी सेना के एक वरिष्ठ अफसर ने भारत पर बलूचिस्तान प्रांत में हिंसा फैलाने का आरोप लगाया था। पाकिस्तानी सेना ने तब एक भारतीय जासूस की गिरफ्तारी का दावा भी किया था। पाकिस्तानी सेना के सभी आरोप फर्जी पाए गए।
पाकिस्तान के दक्षिण पश्चिम में बसे बलूचिस्तान की सीमाएं ईरान और अफगानिस्तान से लगती हैं। दक्षिण में अरब सागर के साथ लगे बलूचिस्तान क्षेत्रफल में पाकिस्तान का आधा हिस्सा है। क्षेत्रफल में इतना बड़ा होने के बावजूद पाकिस्तान की कुल आबादी में से केवल 3.6 प्रतिशत लोग बलूचिस्तान में रहते हैं। प्राकृतिक संसाधनों से मालामाल बलूचिस्तान के लोग गरीबी की हालत में जी रहे हैं। लोगों को बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिली हैं। बलूचिस्तान में यूरेनियम, पेट्रोल, नेचुरल गैस, तांबा, सोना और अन्य धातुओं के खजाने को पहले अंग्रेजों ने लूटा और उनके जाने के बाद पाकिस्तानी हुकूमत की लूटमार जारी है। 1948 में पाकिस्तानी सेना ने बलूचिस्तान पर जबरन कब्जा जमा लिया था। एक समझौते के तहत पहले पाकिस्तान ने बलूचिस्तान को संप्रभु राज्य का देने का प्रस्ताव माना था। पाकिस्तानी सेना के जबरन कब्जा करने के खिलाफ तब से वहां आजादी की लड़ाई चल रही है। पाकिस्तानी सरकार ने बलूचिस्तान में आजादी के लिए लड़ रहे संगठनों के खिलाफ 1948, 1858-59, 1962-63 और 1973-77 में सैन्य कार्रवाई की थी। साल 2000 से बलूचिस्तान में बड़े पैमाने पर संघर्ष शुरू हुआ।बलूचिस्तान लिबेरशन आर्मी, बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट, यूनाइटेड बलोच आर्मी, लश्कर-ए-बलूचिस्तान, बलूचिस्तान लिबेरशन यूनाइटेड फ्रंट जैसे कई और संगठन बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 2006 में तानाशाह परवेज मुशर्रफ सरकार ने बड़े पैमाने पर आंदोलनों को कुचलने के लिए सेना भेजी। बलूचों के सबसे बड़े नेता सरदार अकबर बुगती की 2006 में फौजी कार्रवाई में मौत के बाद से अत्याचार का सिलसिला और तेज हो गया। पाकिस्तान के इस संसाधन संपन्न और सबसे बड़े राज्य में राजनीतिक स्वायत्तता हासिल करने के लिए बुगती ने कबाइली आंदोलन की अगुवाई की थी। दक्षिण पश्चिमी प्रांत के दौरे के दौरान तानाशाह मुशर्रफ पर राकेट से हमला किया गया। 2005 के अंत में बलूचिस्तान में कबाइली आंदोलन कुचलने के लिए मुशर्रफ सेना के जरिये हमले कराए। बुगती की हत्या के खिलाफ मुशर्रफ पर हत्या के आरोप में मुकदमा भी चला। हाल ही बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा स्थित अदालत ने मुशर्रफ के साथ पूर्व प्रांतीय गृहमंत्री मीर शोएब नौशेरवानी और कौमी वतन पार्टी के प्रमुख एवं नेशनल असेंबली के सदस्य आफताब अहमद खान शेरपाओ को बरी कर दिया। अदालत के इस फैसले को लेकर बलूची नेताओं में भारी नाराजगी है। बलूचिस्तान में नरसंहार का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उठा है। इस बारे में मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्ट में बताया जाता रहा है कि किस तरह बलूचिस्तान में लोगों को सताया जा रहा है। हजारों लोग जेल में हैं।
बलूची नेताओं के खात्मे के लिए पाकिस्तानी सरकार ने आतंकी संगठनों को भी बढ़ावा दिया है। बलूचिस्तान की राजनीतिक स्वायत्ता की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना द्वारा मारे गए बलूची नेता अकबर बुगती के पोते बुद्राग बुगती ने भारत के प्रधानमंत्री का इस बात के लिए आभार जताया है। बुद्राग स्विट्जरलैंड में हैं और बलूचिस्तान की आजादी के लिए जनमत जुटा रहे हैं। इसी तरह स्विट्जरलैंड में रह रहे बलूच रिपब्लिकन पार्टी के नेता अजीजुल्लाह बुगती ने भारत के समर्थन के बाद पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई में सहयोग की अपील की है। दुनियाभर में बलूचिस्तान के लिए समर्थन जुटाने में लगे बलूची नेता नाएला कादरी बलूत ने तो मोदी को एक महान राष्ट्र का महान नेता करार दिया है। भारत के साल 70 बाद बलूचिस्तान को मिले समर्थन पर भी उन्होंने खुशी जताई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बलूची नेताओं को समर्थन देने पर जो राजनीतिक दल सवाल उठा रहे हैं, उसका जवाब तो बलूची नेताओं ने दे दिया है। बलूची नेताओं ने याद दिलाया है कि 1970 में पाकिस्तानी हुकूमत के अत्याचारों से बचाने के लिए भारत ने दखल दिया था। तब भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पक्ष में पूरा देश खड़ा हो गया था। राजनीतिक दलों का पूरा समर्थन उन्हें मिला था। नेशनल मूवमेंट के अध्यक्ष खलील बलूच के इस बयान पर कि दुनिया को यह समझना होगा कि पाकिस्तान के धार्मिक आतंकवाद को नीतिगत हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के काफी दूरगामी परिणाम होंगे, सभी को गौर करने की जरूरत है। पाकिस्तान के दोहरे चरित्र को भी बलूचिस्तान में जारी नरसंहार के खिलाफ दुनिया के सामने लाने में कामयाबी मिल रही है। एक तरफ पाकिस्तान कश्मीर में घायल लोगों के इलाज के लिए दुनियाभर ढिंढोरा पीट रहा है और दूसरी तरफ बलूची कबाइली नेताओं का केवल समर्थन करने से ही उसको जोर का दर्द उठा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के बलूचिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर के लोगों पर पाकिस्तानी सरकार के अत्याचारों के खिलाफ बोलने के बाद नवाज सरकार ने बलूची नेताओं को बातचीत के लिए बुलाया है। भारत की पहल के बाद अब पाकिस्तान को वार्ता की सबसे बड़ा रास्ता दिखाई दे रहा है। बलूची नेताओं को भी भारत की पहल के बाद अपने वतन लौटने की उम्मीद जगी है।