दिल्ली में जो घटना घटी है, वैसी शायद देश में पहले कभी नहीं घटी। ऐसा तो कई बार सुना है कि किसी अपराधी ने शर्म के मारे आत्महत्या कर ली। उसे अदालत सजा दे, उसके पहले ही उसने खुद को सजा दे दी लेकिन आपने कभी ऐसा भी सुना है कि किसी आरोपी के पूरे के पूरे परिवार ने आत्महत्या कर ली? कारपोरेट अफेयर्स मंत्रालय के महानिदेशक बालकृष्ण बंसल के परिवार के साथ यही हुआ है। बंसल पर आरोप था कि उसने मुंबई की किसी कंपनी से 9 लाख रु. रिश्वत खा ली है। रिश्वत इसीलिए खाई गई कि उस कंपनी ने अपने हजारों शेयर होल्डरों को चकमा देकर उनके करोड़ों रु. हजम कर लिये। उस कंपनी को अपने मंत्रालय से ‘क्लीन चिट’ देने का वादा बंसल ने किया था। बंसल के घर पर छापे में 60 लाख रु. नकद भी पकड़े गए थे। बंसल की जांच चल रही थी। अभी उन पर आरोप जरुर लगे थे लेकिन सिद्ध नहीं हुए थे। इस बीच वे जेल की हवा भी खा आए थे।
दो माह पहले उनकी पत्नी और बेटी ने आत्महत्या कर ली थी और अब खुद बंसल और उनके बेटे ने भी आत्महत्या कर ली। बेटे और बेटी, दोनों के विवाह की बात भी इन दिनों चल रही थी। यह अत्यंत मार्मिक और दुखद घटना है। बंसल और उनके बेटे ने खुद को बिल्कुल निर्दोष घोषित किया है।
अपने आत्महत्या-पत्र में उन्होंने सीबीआई के कुछ अफसरों पर उन्हें तंग करने के आरोप भी लगाए हैं। यदि बंसल निर्दोष थे तो उन्हें डटना चाहिए था और लड़कर अपनी ईमानदारी का सिक्का कायम करना चाहिए था। उनकी पत्नी और बेटी ने आत्महत्या क्यों की? क्योंकि वे आत्म-ग्लानि से भर गई होंगी। चारों की आत्महत्या यह संकेत देती है कि दाल में जरुर कुछ काला है। रिश्वत लेने वाले अफसर और नेता तो अपराधी होते ही हैं, उनके परिवार वाले उनसे कम बड़े अपराधी नहीं होते। रिश्वत की मलाई पर जब हाथ साफ करने में उन्हें कोई एतराज नहीं होता तो उसका दंड भुगतने में भी उन्हें क्यों बख्शा जाना चाहिए? उनके लिए किसी न किसी सजा का प्रावधान जरुर होना चाहिए।
रिश्वतखोरों से भी कड़ी सजा रिश्वतदाताओं को मिलनी चाहिए। ईमानदार अफसरों और नेताओं को भ्रष्ट करने की भी जिम्मेदारी उनकी ही है। बंसल-परिवार की आत्महत्या के बदले में रिश्वतदाता कंपनी के कर्ताधर्ताओं को सूली पर क्यों नहीं लटकाया जाता? उनकी सारी संपत्तियां जब्त क्यों नहीं की जातीं?